अखिलेश अखिल
फिर से बजट सामने है। सरकार की पूरी तैयारी है। महीने भर से नौकरशाहों ने पसीने बहाये। खूब माथापच्ची की। कुछ लिखते रहे,मिटाते रहे। नए आदेश मिलते रहे ,पुरानी बातो को डिलीट किया जाता रहा। आखिर में बजट बनकर तैयार हुआ। हालांकि यह कोई मामूली प्रैक्टिस नहीं है। कई तरह के जोड़ घटाव करने होते हैं। हिसाब का मुँह मिलाया जाता है। नफा नुकसान को आंका जाता है तब जाकर कुछ बातें बनती है। सरकार की असली चिंता यही होती है कि देश के लोगों का भले ही कोई भला हो या नहीं हो सरकार और पार्टी को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। सत्ता पक्ष को एक बड़ी चिंता बजट के बाद विपक्ष के प्रहार का भी रहता है। लेकिन सरकार घबराती नहीं। पक्ष और विपक्ष का यह खेल वर्षो से चलता है। जनता मूकदर्शक होकर पहले देखती है और फिर शांत हो जाती है। वह कर भी काया सकती है ? उसकी मजाल ही क्या है ?
सवाल है कि बजट में आम लोगो को क्या मिलेगा ? देश के विकास के नाम पर तो बहुत से खेल होते हैं ,असली सवाल है कि देश के सामने जो दो बड़ी चुनौतियाँ महंगाई और बेरोजगारी है है उसके लिए क्या होना है। अगर इस बजट में सरकार रोजगार निर्माण के लिए कोई बड़ा धमाका करेगी तो बात बनेगी। सरकार का इकबाल बनेगा और मोदी की जयकार होगी। चुनावी साल है। अगले साल तो लोकसभा चुनाव होने हैं। मोदी सरकार के लगभग 9 साल हो चुके हैं। इसलिए युवाओं को इस बजट से बड़ी उम्मीद है।
युवा लोग आंकलन कर रहे हैं कि जब मोदी जी पहली बार देश के प्रधान मंत्री बने थे तब उन्होंने कहा था कि हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार दिया जाएगा। इस हिसाब से अभी तक करीब 18 करोड़ युवाओं को रोजगार मिल जाना चाहिए था। क्या यह संभव हो सका ? इसका जबाब बार -बार लोग मांग रहे हैं लेकिन सरकार बात को बदलती है और नए मुद्दे गढ़कर आगे बढ़ती रही है। युवा परेशान है। क्या वित्त मंत्री इस बार कुछ रोजगार को लेकर कुछ करेंगी ? कई जानकार मान रहे हैं कि कोई भी सरकार इतनी तादात में रोजगार नहीं दे सकती। यह सब कहने की बात होती है। नेता लोग झूठ बोलते हैं और फिर भूल जाते हैं ,नेताओं की असलियत यही होती है कि वे जो कहते हैं ,याद नहीं रखते। जो लोग उनकी बातो को याद रखते हैं उनकी मरम्मत सरकार के लोग करते रहते हैं।
दूसरी बात महंगाई को लेकर है। क्या सरकार महंगाई पर कोई अंकुश लगा पाएगी ? सरकार ही कहती है कि लोगों की आमदनी पहले से कम हुई है तभी तो वह 80 करोड़ लोगो को मुफ्त राशन पहुंचा रही है। यह देश का अजीब विरोधाभास है। सरकार ये भी कहती है कि देश आगे बढ़ रहा है लेकिन दूसरी तरफ सरकार ये भी कहती है कि सरकार 80 करोड़ गरीब लोगों को भोजन करा रही है। यह खेल समझ से परे है। कोई गरीब आदमी भला विकास का स्वाद क्या जाने !
चुकी सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट है इसलिए सरकार इस बजट के जरिये बहुत कुछ भविष्य की योजना लोगों के सामने रखेगी। सब कुछ चमचमाता नजर आएगा। कई योजनाओं की शुरुआत भी होगी। चुनावी खेल से लवरेज उन योजनाओं का हश्र क्या होगा कोई नहीं जान सकता। लेकिन चुनाव में उन योजनाओं की चर्चा करके लोगों को अपनी तरफ खींचने का जो प्रयास होगा ,अद्भुत होगा। जनता बहुत कुछ जानती है लेकिन वह लाचार भी तो होती है। चंद लोभ ,लालच के जाल में वह फंसती है और फिर फंसती ही चली जाती है।
देश के किसानो की हालत क्या है कौन नहीं जानता ! लेकिन सरकार करती क्या है ? किसानो की समस्या स्थाई रूप से ख़त्म कर दी जाए इस पर कोई बात नहीं होती। उसे चंद लाभ पहुंचाने की बात होती है। किसान लाचार होकर मौन हो जाते हैं। भारत जैसे गरीब देश में कोई बड़ा सवाल उठ भी तो नहीं सकता। गजब का खेल तो ये है कि संसद में बैठने वाले 80 फिस्फी से ज्यादा सदस्य खुद को किसान कहलाते हैं लेकिन किसानो के मसले पर कभी अपना जुबान नहीं खोलते।
बजट के लिए पैसे कहाँ से आएंगे और कहाँ खर्च होंगे इससे आम लोगो को क्या मतलब है ? उनका मतलब तो यही है कि उनको रहत कितनी मिल रही है। अगर रहत मिले तो बात बने। बेहतर तो होता कि सरकार को जितना टैक्स लगाना हो लगाए। लेकिन सबको रोजगार दे दे। महंगाई कम कर दे। देश की सुरक्षा बढाए और भविष्य की पीढ़ी को सुरक्षित रखे। लेकिन ऐसा होता कहाँ है ?
देश के भीतर कुछ महीने बाद बाढ़ की समस्या दिखने लगेगी। चारो तरफ अफरातफरी मचेगा .राहत और बचाव की बातें होंगी। लेकिन पिछले साल सरकार ने बाढ़ रोकने के जो उपाय की घोषणा की थी उस पर कोई अमल हुआ या नहीं इस पर कोई बात नहीं होगी। कोई पूछेगा भी नहीं। सरकार के सामने मौजूदा वक्त की समस्याएं होती है। वह न भूत के बारे में चिंता करती है और न ही भविष्य पर सोंचती है। वर्तमान राजनीति को अपने अनुसार कैसे मोड़ा जा सकता है उसमे उसकी गतिशीलता ज्यादा होती। ऐसे में साफ़ तौर से कहा जा सकता है कि माजूदा बजट देश की हालत के अनुसार नहीं मौजूदा राजनीति के अनुसार सामने आएगा जिसमे बीजेपी की कामयाबी झलकेगी। विपक्ष तड़पेंगे और जनता झाल मजीरा पीटेंगे। भारत का सच यही है।