Homeदेशढहता लोकतंत्र : राजनीति का अपराधीकरण, लोकतंत्र में दागियों को आरक्षण!

ढहता लोकतंत्र : राजनीति का अपराधीकरण, लोकतंत्र में दागियों को आरक्षण!

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अखिलेश अखिल
आजादी के अमृतकाल की दुदुम्भी और शंखनाद से इतर जब राजनीति के अपराधीकरण पर हम नजर डालते हैं तो शर्म से सिर झुक जाता है। जो सदन कभी जनता के सवालों पर गूंजता था,एक से बढ़कर एक वक्ताओं के ऐतिहासिक भाषणों की संसद से लेकर सड़क तक चर्चा होती थी, आज वही लोकतंत्र, वही सदन दाग़ी नेताओं की उपस्थिति और उसके खेल से शर्मसार है।

आजादी के 75 बरस। आगामी 15 अगस्त को देश आजादी का अमृतकाल मनाएगा। सरकार गदगद है और देश की जनता में उल्लास। आजादी का अमृतकाल, मने यह कौन नहीं चाहता! लेकिन चाहत तो यह भी है कि हमारा लोकतंत्र अक्षुण्ण भी रहे। इसका इकबाल भी बुलंद हो। लेकिन सवाल है कि भारत क्या अपने लोकतंत्र को जीवंत, मजबूत और आदर्श बनाये रखने में सफल हुआ है?

एक सफल लोकतंत्र के जितने भी आयाम हैं क्या भारत उसपर खरा उतरा है? किसी भी लोकतंत्र की साख उसकी विधायिका पर ज्यादा निर्भर है। नेता के गुण-अवगुण और चरित्र लोकतंत्र को ज्यादा प्रभावित करते हैं। आजादी के बाद भारतीय विधायिका और उसके नेताओं की जनता के प्रति वफादारी और उत्तरदायित्व की तूती बोलती थी लेकिन अब वही विधायिका आपराधिक कुकृत्यों से कलंकित है। राजनीति में आपराधिक तत्वों का आधिपत्य है और संसद से लेकर विधान सभाएं अपराधी, दागी नेताओं से भरी हुई है। ऐसे में भला एक ईमानदार लोकतंत्र की कल्पना कैसे की जा सकती है।

आजादी के अमृतकाल की दुदुम्भी और शंखनाद से इतर जब राजनीति के अपराधीकरण पर हम नजर डालते हैं तो शर्म से सिर झुक जाता है। जो सदन कभी जनता के सवालों पर गूंजता था,एक से बढ़कर एक वक्ताओं के ऐतिहासिक भाषणों की संसद से लेकर सड़क तक चर्चा होती थी, लोकतंत्र की इस खूबी पर दुनिया को भी जलन होती थी आज वही लोकतंत्र ,वही सदन दागी नेताओं की उपस्थिति और उसके खेल से शर्मसार है। भारतीय संसद के अबतक के इतिहास पर नजर डाले तो लगता है कि जिस तेजी से संसद और विधान सभाओं में दागी नेताओं की उपस्थिति बढ़ रही है, एक दिन ऐसा आएगा जब संसद में बेदाग़ नेता-मंत्रियों की सूची तैयार करने में भी परेशानी होगी।

संसद और विधान सभाओं का अगला भविष्य क्या होगा यह कोई नहीं जानता। लेकिन मौजूदा सदन की कहानी को गौर से पढ़ें और देखे तो लगता है कि भले ही महिलाओं को संसदीय राजनीति के लिए अब तक 33 फीसदी आरक्षण का लाभ तो नहीं मिला हो लेकिन सच यही है कि गुपचुप तरीके से सभी राजनीतिक दलों ने सदन में दागी नेताओं के लिए 33 फीसदी से ज्यादा सीटें आरक्षित कर रखी है। इसे आप दागियों के पैरों तले लोकतंत्र को कुचलना कहिये या फिर दागियों के प्रति लोकतंत्र की आस्था। यही हाल धनकुबेर नेताओं का भी है। अगर दागियों के लिए 33 फीसदी से ज्यादा सीटें आरक्षित है तो धनकुबेर नेताओं के लिए भी 80 फीसदी से ज्यादा सीटें आरक्षित हैं।

हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि देश की संसद और विधान सभाएं दागी नेताओं की पहुँच और उनके बदनाम चरित्र से दागदार हुई है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि संसदीय राजनीति करने वाले बहुत सारे नेताओं पर राजनीतिक मुक़दमे भी बड़ी तादाद में दर्ज होते रहे हैं। कभी विरोधी पक्ष सामने वाले की राजनीति को दागदार बनाने के लिए झूठे मुक़दमे दर्ज करने में कोई कोताही नहीं बररते तो कभी एक ही पार्टी के सामानांतर नेता दूसरे की तुलना में अपने को श्रेष्ठ बनाने के लिए सामने वाले नेताओं को दागी बनाने से नहीं चूकते। लोकतंत्र का यह खेल भी काम मनोरंजक नहीं। उदहारण के लिए मौजूदा समय में कांग्रेस की राजनीति करने वाले कन्हैया कुमार को ही ले सकते हैं। कन्हैया कुमार पर देश विरोधी नारे लगाने का मामला दर्ज है। उन्हें देशद्रोही भी कहा गया लेकिन आज तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई। लेकिन उनके चेहरे पर भारत विरोध और देशद्रोह का दाग लगने की बात विपक्षी पार्टियां कहने से नहीं चूकती। जारी —–

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