कोलकाता (बीरेंद्र कुमार): पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर के नंदीग्राम में छुरिया सहकारिता कृषि विकास प्रबंध समिति के चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस और भाजपा समर्थकों के बीच झड़प हो गई। इस झड़प में 7 लोग जख्मी हो गए जिन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है।
क्या है मामला?
यह मामला जयपुरिया सहकारिता कृषि विकास प्रबंधन समिति के चुनाव से जुड़ी हुई है इस चुनाव के सभी 12 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। और बीजेपी ने भी इस चुनाव में इन सभी सीटों पर तृणमूल पार्टी के उम्मीदवारों के विरोध में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। जब इन सभी सीटों के चुनाव परिणाम घोषित किए गए तो इसमें सभी सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को विजयी घोषित किया गया। इस घोषणा के बाद से ही वहां दोनो पक्षों के बीच तनाव देखा गया। थोड़ी देर के बाद यह तनाव हिंसा में बदल गया और कांग्रेस तथा बीजेपी के कार्यकर्ता आपस में मारपीट और तोड़फोड़ करने लगे। काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने स्थिति पर नियंत्रण किया और घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया।
तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी ने एक दूसरे पर लगाए आरोप
घटना के बाद तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने एक दूसरे पर हिंसा करने का आरोप लगाया। तृणमूल कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव की शुरुआत से ही बीजेपी समर्थकों ने उन पर हमला कर दिया था, बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने डरा धमका कर उनके एक उम्मीदवार को वहां से हटने के लिए मजबूर कर दिया था। वहीं बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस के इस आरोप आरोप को आधारहीन करार दिया और पलटवार करते हुए तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने उसके पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की है।
शुभेंदु अधिकारी ने की घटना की निंदा
नंदीग्राम में सहकारिता समिति के चुनाव में हुई झड़प को लेकर नंदीग्राम के विधायक और पश्चिम बंगाल विधानसभा के नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया की सत्तारूढ़ दल टीएमसी के नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में अराजकता की स्थिति है। विपक्षी दलों को हराने के लिए सत्ता पक्ष द्वारा असामाजिक तत्वों का सहारा लिया जा रहा है। पुलिस महत्त्व मूकदर्शक की भूमिका निभा रही है। मैं हर हालत की खबर रख रहा हूं, समय आने पर सब का जवाब जनता ही दे देगी।
हर चुनाव में होती है हिंसा और मारपीट
पश्चिम बंगाल चुनावी हिंसा के लिए प्रसिद्ध है। यहां चुनाव चाहे सहकारिता समितियों और स्थानीय निकायों के हों या फिर विधानसभा या लोकसभा का हो। हर चुनाव में यहां हिंसा होती है और कई बार तो कई कई लोगों की इस हिंसा में जान भी चली जाती है।