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छत्तीसगढ़ में आत्मविश्वास से लबरेज कांग्रेस क्यों हारी चुनाव, Bhupesh Baghel और सिंहदेव की खटपट ने कर दिया ‘हाथ’का सफाया

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विकास कुमार
छत्तीसगढ़ में आत्मविश्वास से लबरेज कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव में चारों खाने चित हो गई। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक छत्तीसगढ़ की 90 सीट पर बीजेपी ने 54 सीटों पर जीत का परचम लहराया है,तो वहीं कांग्रेस पार्टी को महज 35 सीट से संतोष करना पड़ा है। बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के चुनाव में 46 दशमलव तीन शून्य फीसदी वोट हासिल किया है तो वहीं कांग्रेस पार्टी को 42 दशमलव दो शून्य फीसदी वोट हासिल कर पाई है। इस तरह से बीजेपी ने कांग्रेस से चार दशमलव एक फीसदी के अंतर से बढ़त बना ली।

अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार की वजहों पर चर्चा हो रही है,क्योंकि यहां खुद बीजेपी के नेता इस बात को अंदर ही अंदर मान चुके थे कि इस बार कम से कम वह सत्ता में नहीं लौट रहे हैं। कांग्रेस हर बार 75 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही थी लेकिन चुनाव परिणाम ने सारे अनुमान उलट दिए हैं,इसलिए ये समझना जरूरी है कि अति आत्मविश्वास के पहाड़ पर बैठी कांग्रेस के हाथ से सत्ता कैसे छिन गई।

इस बार छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के कर्ता धर्ता जातीय समीकरण बिठाने में भी असफल रहे। इस बार कांग्रेस ओबीसी की अलग-अलग जातियों का समीकरण बिठाने में सफल नहीं रही। साहू समाज का एक बड़ा वोट बैंक कांग्रेस से छिटक गया जो जातियां कांग्रेस को वोट करती रहीं थी इस बार वह उससे दूर चली गई।

कांग्रेस का संगठन यह सपना देखने में व्यस्त थी कि वह आसानी से सत्ता में वापसी कर लेगी,इसलिए संगठन ने बूथ स्तर पर ना तो मैनेजमेंट किया और ना ही वोटरों को घर से निकालने में दिलचस्पी दिखाई। सरकार और संगठन में एक तरह की दूरी दिखाई दी। संगठन की उपेक्षा भी बीते पांच सालों में दिखी,इसका साफ असर चुनाव नतीजों में नजर आया।

बीते पांच सालों में भूपेश बघेल सरकार का मुख्य फोकस छत्तीसगढ़ी संस्कृति और किसान रहे हैं। कांग्रेस शहरी क्षेत्रों के विकास कार्यों से दूर रही है। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के बाकी शहरों में जो योजनाएं बीजेपी पिछली सरकारों में लेकर आई थी कांग्रेस उन्हें आगे नहीं बढ़ा सकी। इसका नुकसान ये हुआ कि शहरी इलाकों के वोटर बीजेपी के पाले में चले गए।

कांग्रेस सरकार खेमों में बंटी नजर आई। टीएस सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच में खटपट है यह बात कोई राज नहीं थी। दोनों ही खेमे के लोग ये चाहते थे कि टिकट में उनकी चले ताकि जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद पर उनकी मजबूत दावेदारी हो। इस रस्साकस्सी का नतीजा ये हुआ कि टीएस सिंह देव अंबिकापुर में चुनाव हार गए।

कांग्रेस सरकार के ऊपर भष्ट्राचार के आरोपों ने भी बघेल की नकारात्मक छवि बना दी। ऐन चुनाव के वक्त महादेव ऐप के प्रकरण ने सारा खेल बिगाड़ दिया। आम वोटर को यह संदेश गया कि सरकार किसी ना किसी रूप में भष्ट्राचार के मामलों में शामिल होती दिख रही है। भूपेश अपनी सरकार की एक नीट एंड क्लीन इमेज नहीं बना रख सके और आखिरकार विधानसभा चुनाव में हार कर सत्ता से बाहर हो गए।

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