विकास कुमार
पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर नीतीश-तेजस्वी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। ऐसे में माना जा रहा है कि लालू यादव और नीतीश कुमार इस फैसले पर पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश करेंगे। जातीय जनगणना के पॉलिटिकल इम्पैक्ट पर पूरे देश में चर्चा हो रही है। बताया जा रहा है कि जातीय जनगणना के बाद सरकारी नौकरी में आरक्षण का दायरा बढ़ाने की कोशिश हो सकती है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि जातीय जनगणना को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद लालू यादव और नीतीश पिछड़ो, अतिपिछड़ो और दलितों की हिस्सेदारी बढ़ाने की डिमांड कर सकते हैं। यानी आरक्षण में भी इजाफे की डिमांड शुरू हो सकती है। लालू प्रसाद यादव लगातार कहते रहे हैं कि समाज में जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी। जातीय जनगणना के नंबर दिखाकर लालू यादव कहेंगे कि अगर किसी जाति की आबादी में इजाफा हुआ है,और उसी के मुताबिक समाज और सरकार में उनको उतनी हिस्सेदारी दी जाए। साफ है कि जातीय जनगणना के बाद आरक्षण की सीमा में इजाफा किया जा सकता है।
जातीय जनगणना के बाद आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का कैप हटाने की मांग हो सकती है। लालू यादव और नीतीश कुमार आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाए गए कैप को हटाने की मांग कर सकते हैं,और आबादी के मुताबिक सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी के फॉर्म्यूले को लागू किया जा सकता है।
जातीय गणना के मुद्दे पर बिहार में नए सिरे से मंडल कमंडल की पॉलिटिक्स शुरू हो सकती है। जातीय गणना के आंकड़े के बाद पिछड़ों की राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियां इसे नए सिरे से मुद्दा बना सकती है। वहीं दूसरे राज्य भी जातीय गणना की मांग उठ सकती है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी इसे कराने की मांग उठ सकती है। अखिलेश यादव पहले भी उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना कराने की मांग को उठा चुके हैं।
वहीं लोकसभा चुनाव को देखते हुए इंडिया गठबंधन जातीय जनगणना के मुद्दे को एजेंडे में शामिल कर सकती है। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बनाए गए गठबंधन इंडिया की मुंबई में होने वाली बैठक में भी इसपर चर्चा हो सकती है। हो सकता है कि इंडिया के घटक दल जातीय जनगणना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने पर विचार करें, क्योंकि इस मुद्दे पर बीजेपी को आराम से घेरा जा सकता है।