अखिलेश अखिल
लगता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो के दिन अभी ठीक नहीं चल रहे हैं। शायद समय की गति अभी उनके खिलाफ है। राजनीति की धारा कब किसे कहाँ मात दे जाए यह कौन जनता है ? ममता बनर्जी अभी पूरी ताकत के साथ बीजेपी के खिलाफ मोर्चा तैयार करने और विपक्षी एकता को गोलबंद करने में जुटी थी। ममता को लग रहा था कि विपक्षी दलों को एक मंच पर लेकर बीजेपी को हराया जा सकता है और यह संभव भी है लेकिन पिछले दो दिनों में ममता को दो बड़े झटके लग गए हैं। सबसे बड़ी बात तो चुनाव आयोग ने ममता की पार्टी टीएमसी को राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे से बाहर कर दिया है। जिस गुना -गणित के आधार पर किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलता है उसी के मुताबिक चुनाव आयोग ने टीएमसी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन लिया है। यह ममता के लिए बड़ा झटका है। इस झटके को ममता कैसे सहन करेगी इसे देखना होगा। आगे लोकसभा चुनाव और और फिर बंगाल में नगर निगम चुनाव। इन चुनाव में ममता क्या कुछ करेगी इस पर अब सबकी निगाह टिक गई है। हालांकि ममता की पार्टी की तरफ से कहा गया है कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हटने के बाद भी टीएमसी आगे बढ़ती रहेगी और चुनाव अभियान पर इससे कोई फर्क नहीं पडेगा। लेकिन सच इतना भर ही नहीं है।
वहीं दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस से राज्य सभा सांसद रहे लुइजिन्हो फलेरो ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। माना जा रहा है कि लगातार इस तरह के घटनाक्रम के चलते पार्टी बैकफुट पर आती दिख रही है। जिससे कि ममता बनर्जी की टेंशन बढ़ सकती है। वहीं बंगाल में होने वाले पंचायत चुनावों से पहले यह सब ममता बनर्जी के लिए बड़ा डेंट है। जिससे कि पार पाना ममता और टीएमसी के लिए इतना आसान नहीं होगा। हालांकि यह देखना बड़ी बात होगी कि ममता किस तरह से इस दंगल में खुद को साबित करने में कामयाब होती हैं।
बता दें कि गोवा के पूर्व सीएम रह चुके लुइजिन्हो फलेरो से ममता और टीएमसी के रिश्ते बीते कई समय से सही नहीं चल रहे थे। जिसके पीछे की बड़ी वजह पार्टी की गतिविधियों से फलेरो का दूरी बनाए रखना भी रहा। इसको लेकर ममता बनर्जी और फलेरो के बीच काफी तनाव था। पार्टी चाहती थी कि किसी भी तरह से फलेरो को विवश कर दिया जाए कि वे टीएमसी से खुद ही नाता तोड़ लें। या फिर यूं कहें कि टीएमसी की ओर से यह एक तरह का किया जाने वाला उकसावा था। जिसके चलते फलेरो और टीएमसी की दूरियां और भी बढ़ गई थीं।
गोवा विधानसभा चुनाव में फलेरो ने पार्टी के निर्देश को मानने से इनकार कर दिया था। यह भी उन सबसे बड़ी वजहों में से एक है जिसके चलते फलेरो को टीएमसी पसंद नहीं कर रही थी। दरअसल टीएमसी की ओर से फलेरो को गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई के खिलाफ फतोर्दा से चुनाव लड़ने के लिए बोला गया था। लेकिन फलेरो ने इससे इनकार कर दिया था। इसके बाद से ही ममता बनर्जी की टीएमसी फलेरो से खासा नाराज चल रही थी। अब यह भी कहा जा रहा कि फलेरो के समर्थक भी टीएमसी से अलग हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो टीएमसी को गोवा में भी बड़ा झटका लग सकता है।