अखिलेश अखिल
राजनीति में वंशवादी कौन नहीं है ? देश की राजनीति में नेताओं के इतिहास पर नजर डाले तो बहुत कम नेता ही सामने आएंगे जिनका वंश वृक्ष राजनीति से परे रहा। उंगुलियों पर ऐसे नेताओं की गिनती की जा सकती है। क्षेत्रीय पार्टियों को परिवार की पाकिट संस्था ही कही जाती है। जिस परिवार के लोगों ने किसी भी पार्टी की स्थापना की ,उसके बंशज ही उस पार्टी को आगे बढ़ाते रहे हैं। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक चश्मा लगाकर भी खोजियेगा तो हर जगह यही सीन मिलेगा। जातीय राजनीति को साधती ये क्षेत्रीय पार्टियां आज भी कई राज्यों में काफी अहम् है और कई तो ऐसी है जो राष्ट्रीय पार्टियों को भी आँख दिखाती है। राजनीति का यह खेल बड़ा ही रोचक है। यह भ्रम भी पैदा करता है और लुभाता भी है। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है या लोकतंत्र के नाम पर तमाचा इसको परिभाषित कौन कर सकता है ?
लेकिन वंशवादी राजनीति के सबसे ज्यादा आरोप कांग्रेस पर ही लगते रहे हैं। और यह सच भी है। कांग्रेस का इतिहास ही इस खेल से भरा हुआ है। जबतक कांग्रेस ताकतवर थी ,कोई नहीं बोलता था लेकिन जैसे -जैसे बीजेपी की ताकत राजनीति में बढ़ती गई कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति को लेकर हमले तेज होते गए। सबसे ज्यादा हमले इन दस वर्षों में हुए हैं। सबसे ज्यादा हमले मौजूदा बीजेपी और पीएम मोदी ने किये हैं। हालांकि इन हमलों के पीछे बीजेपी का कोई भी तर्क साफ़ नहीं रहा। कांग्रेस की तरह ही बीजेपी के लोगों ने अपने बाल बच्चो को राजनीति में उतारा। बहु बेटियों को चुनावी मैदान में उतारा लेकिन बीजेपी ने कभी इस खेल को स्वीकार नहीं कहा। बीजेपी के इस चरित्र को आप क्या कहेंगे ,आप ही जानिए।
मौजूदा समय में कर्नाटक में चुनावी दुदुम्भी बज रही है। नामांकन की तारीख खत्म हो गई। अब आमने सामने बीजेपी ,कांग्रेस और जेडीएस खड़े हैं। चुनाव दस तारीख को होने हैं। सबके अपने दावे हैं। लेकिन सच यही है कि एक ही हार तो होगी ही। कर्नाटक चुनाव में अब जो मैदान में खड़े हैं उनके वंश वृक्ष की पड़ताल की गई है। इस पड़ताल में बीजेपी सबको मात दे रही है। बीजेपी ने बड़ी संख्या में वंशवादी राजनीति को इस चुनाव में बढ़ावा देती नजर आ रही है। हम कांग्रेस और जेडीएस की वंशवादी राजनीति की चर्चा करेंगे लेकिन अभी बीजेपी की तस्वीर आपके सामने रखने की जरूरत है। क्योंकि बीजेपी अभी वहाँ सत्ता में है।
कर्नाटक विधान सभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची राजनीतिक परिवारों के प्रत्याशियों से भरी हुई है। शिग्गांव विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एसआर बोम्मई के बेटे हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र उनकी जगह शिकारीपुरा से मैदान में हैं। कुमार बंगारप्पा सोराब सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पिता एस. बंगारप्पा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
बोम्मई सरकार में मंत्री शशिकला जोले निप्पानी सीट से उम्मीदवार हैं। उनके पति अन्ना साहब जोले चिक्कोडी से सांसद हैं। कर्नाटक के परिवहन मंत्री बी श्रीरामुलु बल्लारी सीट से और उनके भतीजे टीएच सुरेश बाबू कामप्ली सीट से प्रत्याशी बनाए गए हैं। पर्यटन मंत्री आनंद सिंह की जगह उनके बेटे सिद्धार्थ सिंह को विजयनगर से उम्मीदवारी थमाई गई है।
बेंगलुरु दक्षिण के सांसद तेजस्वी सूर्या के चाचा और विधायक रवि सुब्रमण्यम बसवनगुडी से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं। कोप्पल से बीजेपी सांसद कराडी संगन्ना की बहू मंजुला अमरेश को टिकट दिया गया है। चिंचोली प्रत्याशी अविनाश जाधव गुलबर्गा सांसद उमेश जाधव के बेटे हैं।
पूर्व मंत्री गली जनार्दन रेड्डी के दो भाई सोमशेखर रेड्डी और करुणाकर रेड्डी भी इस चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। सोमशेखर बेल्लारी सिटी से तो करुणाकर हरपनहल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं। रमेश जारकीहोली और बालचंद्र जारकीहोली भाई हैं। रमेश को गोकक सीट से और बालचंद्र को अराभवी से टिकट थमाया गया है। पूर्व मंत्री उमेश कट्टी के परिवार को दो टिकट मिले हैं। उनके बेटे निखिल कट्टी हुक्केरी सीट से उम्मीदवार हैं और दिवंगत मंत्री के भाई रमेश कट्टी चिक्कोडी-सदलगा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
गुलबर्गा उत्तर से उम्मीदवार चंद्रकांत पाटिल पूर्व एमएलसी बीजी पाटिल के बेटे हैं। महादेवपुरा (एससी) निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा विधायक अरविंद लिंबावली की जगह उनकी पत्नी मंजुला अरविंद लिंबावली को सीट से उम्मीदवार बनाया है। सीवी रमन नगर के मौजूदा विधायक और प्रत्याशी एस रघु, पूर्व मंत्री अरविंद लिंबावली के बहनोई हैं।
रत्ना विश्वनाथ ममानी को सौंदत्ती येल्लम्मा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। रत्ना, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष विश्वनाथ ममानी की पत्नी हैं। गुलबर्गा दक्षिण से फिर से चुनाव लड़ रहे दत्तात्रेय पाटिल के माता-पिता विधायक रह चुके हैं। हनूर से प्रत्याशी प्रीतम नागप्पा पूर्व मंत्री एच. नागप्पा के बेटे हैं। उनकी मां परिमल नागप्पा भी विधायक थीं। हुमनाबाद सीट से उम्मीदवार सिद्दू पाटिल भाजपा के पूर्व एमएलसी बासवराज पाटिल के भतीजे हैं।
अफजलपुर से चुनाव लड़ रहे पूर्व मंत्री मलिकय्या गुट्टेदार और अलंद विधायक सुभाष गुट्टेदार रिश्तेदार हैं। हुबली-धारवाड़-पश्चिम के विधायक और इस चुनाव के प्रत्याशी अरविंद बेलाड पूर्व विधायक चंद्रकांत बेलाड के बेटे हैं। धारवाड़ सीट से विधायक और प्रत्याशी अमृत देसाई पूर्व विधायक अयप्पा बसवराज देसाई के बेटे हैं।
भालकी उम्मीदवार प्रकाश खंडरे पूर्व मंत्री भीमन्ना खंड्रे और ईश्वर खंड्रे के रिश्तेदार हैं। हिरियूर से प्रत्याशी पूर्णिमा श्रीनिवास पूर्व मंत्री ए कृष्णप्पा की बेटी हैं। चित्रदुर्ग विधायक और प्रत्याशी जी.एच. थिप्पारेड्डी, पूर्व मंत्री अश्वथ रेड्डी के भाई हैं। तुमकुरु शहर के उम्मीदवार जी.बी. ज्योति गणेश तुमकुरु सांसद जीएस बसवराज के बेटे हैं। सिरा उम्मीदवार राजेश गौड़ा चित्रदुर्ग, पूर्व सांसद सी.पी. मुदाल गिरियप्पा के बेटे हैं। गांधीनगर से प्रत्याशी सप्तगिरि गौड़ा पूर्व मंत्री रामचंद्र गौड़ा के बेटे हैं।
रामनगर के उम्मीदवार गौतम गौड़ा के पिता, मारिलिंगे गौड़ा, जेडीएस के एमएलसी थे। नंजनगुड से उम्मीदवार बी हर्षवर्धन चामराजनगर के सांसद श्रीनिवास प्रसाद के दामाद हैं।
क्या बीजेपी इस पर कोई सफाई देगी ? सफाई जब वह पहले नहीं देती थी तो अब क्या देगी ?एक सच और। सभी दल अपराधी लोगों को चुनाव में नहीं उतारने की बात तो जरूर करते हैं लेकिन दागी उम्मीदवारों के बिना इनका काम कहाँ चलता ! जो पूंजीपति होगा वही चुनाव लड़ेगा और दागी के बिना पूंजीपति कैसे कोई हो सकता है ? चुनाव के बाद यह आंकड़ा भी सामने आएगा कि कितने दागी चुनाव जीतने में सफल रहे। क्या जनता से पूछकर कोई भी पार्टी दागियों को टिकट देती है ?चुनाव आयोग इस पर हमेशा मौन ही रहता है।

