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ज्ञान भारतम्

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नवगठित उदय भारतम् पार्टी भारत के प्राचीन गौरव की पुनर्स्थापना के साथ – साथ इसकी व्यापकता सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर पूरे जोर से जुट गया है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसने 10 महत्वपूर्ण सिद्धांतों को अपनाया है। इन्हीं सिद्धांतों में से एक प्रमुख सिद्धांत ‘ ज्ञान भारतम्’ है।

उदय भारतम् पार्टी के अनुसार “ज्ञानभारतम्” संस्कृत से लिया गया एक शब्द है, जिसका अनुवाद “ज्ञान की भूमि” या “ज्ञान का भंडार” है। “यह एक ऐसे क्षेत्र का प्रतीक है जहां ज्ञानोदय और बौद्धिक गतिविधियां फलती-फूलती हैं। ज्ञान भारतम् विभिन्न विषयों में निरंतर सीखने, अन्वेषण और ज्ञान के प्रसार का सार प्रस्तुत करता है। यह ज्ञानोदय और सत्य की खोज के लिए एक सामूहिक प्रयास का प्रतीक है।यह एक ऐसे समाज को बढ़ावा देता है, जहां शिक्षा और ज्ञान श्रद्धेय हैं। आज के संदर्भ में, ज्ञान भारतम ज्ञान के शाश्वत मूल्य और एक ऐसी संस्कृति के पोषण के महत्व की याद दिलाता है जो बौद्धिक विकास को महत्व और बढ़ावा देती है।

प्राचीन भारत में ज्ञान को कितनी महत्ता दी जाती थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में प्राचीन काल में व्याकरण को वेद का मुख कहा गया है, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को श्रोत्र, कल्प को हाथ, शिक्षा को नासिका और छन्द को दोनों पैर कहा गया है।

बात भारत के प्राचीन ज्ञानियों की की जाय तो तब मुनियों और तपस्वियों के रूप में ऐसे – ऐसे तत्वज्ञानी हुए, जिन्हें सम्मान देने में चक्रवर्ती सम्राट ही नहीं बल्कि देवता तक भी अपना गौरव समझते थे ।

बात चिकित्सा विज्ञान की की जाय तो देवताओं के वैद्य अश्वनी कुमार को छोड़ भी दें तो प्राक वैदिक और वैदिक काल में धन्वंतरि,चरक और सुश्रुत जैसे कई चिकित्सा विज्ञानी हुए जिनके बारे में कहा जाता है कि इनमें मुर्दा को भी जिंदा कर देने की क्षमता थी। धनवंतरी तो अमृत कलश लेकर ही उत्पन्न हुए थे,चरक और सुश्रुत के बारे में भी कहा जाता है कि खुद वनस्पतियां और खनिज- लवण इनसे कहा करते थे कि वह किस बीमारी को दूर करने की क्षमता रखता है।इतना ही नहीं तब रोग निदान में औषधि और तंत्र – मंत्र उपचार के साथ – साथ शल्य चिकित्सा तक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था।

प्राचीन भारत में विज्ञान और गणित उच्च स्तर तक विकसित हो चुका था। ज्योतिष विद्या में ही तब विज्ञान और गणित का भरपूर उपयोग किया जाता था।भारत में ऐसे- ऐसे ज्योतिष शास्त्री थे, जिन्हें वर्षों पश्चात होने वाली घटनाओं के हर गतिविधियों की जानकारी पहले से ही प्राप्त रहा करता था। बौधायन, आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य और महावीराचार्य जैसे प्रसिद्ध प्राचीन गणितज्ञ और ज्योतिषाचार्यों ने कई – कई संहिताओं की रचना की थी,जिसमें से अब बहुत कम ही रचनाएं उपलब्ध है। इनके अलावे कणाद, वराहमिहिर और नागार्जुन जैसे कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी प्राचीन भारत में हुए,जिनका लोहा पूरा विश्व मानता था।कणाद ने परमाणुवाद का सिद्धांत वर्षों पूर्व ही विश्व को दे दिया था। 1 से 9 तक के अंकों का प्रयोग कर ये महाशंख तक की गणना तो करते ही थे। शून्य और दशमलव का अंकों में प्रयोग तो पूरी दुनिया में सबसे पहले प्राचीन भारत में ही किया जाता था।यहां से ही यह पूरे विश्व में फैला।

बात कला क्षेत्र की की जाए तो प्राचीन भारत में ही रामायण काल में दशरथ पुत्र श्री राम के 12 कलाओं के साथ मर्यादा पूर्ण अवतार और महाभारत काल में कृष्ण के 16 कलाओं के साथ अवतार लेने की बात कही गई है।साहित्य के क्षेत्र में रामायण और रामचरितमानस के रचनाकार वाल्मिकी और तुलसीदास तथा महाभारत के रचनाकार व्यास देव के अलावे कल्हण,चंदबरदाई आदि कई कवि आज भी अपनी कालजयी रचनाओं के लिए जाने जाते है।नाट्यशास्त्र और सौंदर्य शास्त्र में कालिदास अनुपमेय थे।

बात शस्त्र ज्ञान की की जाय तो प्राचीन भारत में परशुराम, द्रोणाचार्य , कर्ण,अर्जुन,भीम,दुर्योधन,बर्बरीक और घटोत्कच जैसे धार्मिक ग्रंथों में वर्णित महावीर जिनके पास विस्मयकारी ब्रह्मास्त्र थे ,के अलावे मध्यकालीन भारत में भी पृथ्वीराज चौहान, आल्हा ऊदल के संरक्षक परमार्दि आदि कई राजाओं की वीरता का वर्णन मिलता है।

दूसरे शब्दों में कहें तो प्राचीन भारत हर कलाओं और हर प्रकार के ज्ञान में अग्रगण्य था। उदय भारतम् पार्टी प्राचीन भारत के इसी ज्ञान गौरव को भारत से लेकर विश्व में जन-जन तक फैलाने में जुटा हुआ है।

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