अखिलेश अखिल
राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा चार महीने से जारी है और अब यह यात्रा पंजाब से गुजर रही है। आगामी 18 दिनों में यह यात्रा अपनी मंजिल श्रीनगर पहुँच जाएगी। यात्रा के समापन दिवस पर बड़े जैसे की तैयारी है और एक बड़ा सन्देश देश वासियों को देने की तैयारी भी। इसी लिहाज से कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने देश के सभी विपक्षी दलों को समापन समारोह में आने का न्योता दिया है। इस न्योते के पीछे का सच यही है कि मौजूदा राजनीति और माहौल के खिलाफ बोलने वाले सभी दल एक साथ खड़े हों। दूसरा सच ये है कि भावी राजनीति को लेकर विपक्ष लामबंद हो। इस लामबंदी का अंतिम सच किसी को पता नहीं। लेकिन एक बात जो सामने दिख रही है वह यह है कि पस्त हो चुकी कांग्रेस में जान तो आ ही गई है।
लेकिन इस यात्रा को लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया का जो रवैया रहा है वह बेचैन करता है। मीडिया को भीड़ ,जान सैलाव ,बच्चे ,बूढ़े ,नवजवान और महिलों सुख ,दुःख की जरुरत होती है। उसे लाल ,पीले ,हरे इंद्रधनुषी रंग और विजुअल की जरुरत होती है। उसे नेताओं और लोगों के बयान की जरूरत होती है और पक्ष -विपक्ष के बीच चल रहे रार की कहानी की जरूरत होती है ताकि विशेषण के साथ देश की राजनीति की बात जनता तक पहुंचाई जा सके। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता दिख रहा है। राहुल गाँधी अपनी हर सभा और प्रेस वार्ता में मीडिया को आरोपित करने से नहीं चूकते,फिर भी आला मीडिया समूह मौन है। क्या इससे पहले भी मीडिया के इस रूप को किसी ने देखा था? क्या सचमुच मीडिया गोदी में चली गई है? क्या सचमुच सच कहने का मादा अब मीडिया के पास नहीं रहा ?
भला कीजिये उस नयी मीडिया का जिसे डिजिटल मीडिया के नाम से हम जानते हैं ,आज गोदी मीडिया पर भारी पड़ता दिख रहा है। देश में करीब 75 हजार से ज्यादा मेन स्ट्राम मीडिया से जुड़े पत्रकार और स्ट्रिंगर्स हैं। इनमे से 200 -400 पत्रकारों को छोड़ भी दें तो जिला में काम करने वाले पत्रकार आज भी जनता से जुडी ख़बरें देने को आतुर रहते हैं लेकिन आकाओं की गोद में बैठे चाँद चरण चुम्बक पत्रकारों ने पत्रकारिता को न सिर्फ गिरवी रखा है बल्कि दुनिया के सामने कलंकित भी। यही वजह है कि दुनिया की पत्रकारिता वाले इंडेक्स में भी भारत सबसे नीचे जा चुका है और भारत के पत्रकारों पर दुनिया हंसती नजर आ रही है। चिढ़ा रही है।
भारतीय मीडिया को भारत जोड़ो यात्रा में रूचि नहीं
लेकिन विदेशी मीडिया इस यात्रा को खूब कवर कर रही है। दुनिया का ऐसा कोई देश नहीं जहां के बड़े मीडिया समूह ने इस यात्रा पर नहीं लिखा है। और लगातार लिख भी रहे हैं और दिखा भी रहे हैं।
जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डी डब्ल्यू पिछले हफ़्ते प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कांग्रेस पार्टी इस यात्रा के ज़रिए महंगाई, बेरोज़गारी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे उठाकर न सिर्फ़ अपनी खोई राजनीतिक ताक़त फिर से हासिल करना चाहती है, बल्कि वह राहुल गांधी को एक जननेता के रूप में भी स्थापित करना चाहती है। डी डब्ल्यू लिखता है, ‘एक राजनीतिक पार्टी जिसने अपने 100 साल के लंबे इतिहास में से ज़्यादातर समय भारतीय राजनीति को दिशा दी है, वह अब 2024 के आम चुनाव से पहले किसी तरह ख़ुद में एक नई जान फूंकने के लिए छटपटा रही है। एक दौर में भारतीय राजनीति में प्रभुत्व रखने वाली कांग्रेस पार्टी इस समय भारत के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ़ तीन राज्यों में सरकार चला रही है। ये तीन राज्य छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश हैं, जहाँ कांग्रेस को बहुमत हासिल है। वहीं, तमिलनाडु, बिहार और झारखंड में वह क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सत्ता में है।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस के ढलान को बहुसंख्यकवाद के उभार और पार्टी की अंदरूनी कमियों को ध्यान में रखते हुए देखना चाहिए। राजनीतिक विश्लेषक ज़ोया हसन ने डी डब्ल्यू से कहा , ‘कांग्रेस इस समय जिस संकट का सामना कर रही है, उसकी वजह पार्टी की ओर से हिंदू राष्ट्रवाद का प्रभावशाली ढंग से सामना करने में विफल रहना है। यही नहीं, इसके लिए धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण के चलते सिकुड़ते मध्य मार्ग के साथ-साथ व्यक्तिगत और सांगठनिक असफलताएं भी ज़िम्मेदार हैं।’डी डब्ल्यू के साथ बातचीत में हसन कहती हैं, “हिंदू राष्ट्रवाद ने कांग्रेस पार्टी के भारत को लेकर विविधतावादी विचार के लिए अहम चुनौती पेश की है। ”
न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि भारत में इस साल एक के बाद एक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अहम राज्य भी शामिल हैं। कांग्रेस पार्टी ने पिछली बार इन तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाई थी। लेकिन बीजेपी की कथित सियासी रणनीति और कांग्रेस की आंतरिक कलहों के चलते कांग्रेस इनमें से सिर्फ़ दो राज्यों में अपनी सरकार बचा सकी। इन अहम चुनावों के कुछ महीनों बाद 2024 में भारत में आम चुनाव हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी किसी तरह आम मतदाताओं में अपनी पार्टी को लेकर उत्साह पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
अमेरिका के प्रतिष्ठित अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता समीर यासिर ने भारत जोड़ो यात्रा में चलकर आम लोगों में इसके असर को भांपने की कोशिश की है। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित ख़बर में समीर यासिर लिखते हैं,”अब जब आम चुनाव होने में बस 16 महीने शेष हैं तो राहुल गांधी की यात्रा ये तय करती है कि भारत का बँटा हुआ विपक्ष पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के युग परिभाषित करने वाली महत्वाकांक्षाओं को विराम दे पाएगा। भारत में बहुदलीय लोकतंत्र का भविष्य अधर में लटका हुआ है। भारत के सबसे ताक़तवर नेताओं में से एक नरेंद्र मोदी ने भारत की धर्मनिरपेक्ष नींव को एक नया स्वरूप दिया है जो हिंदू समाज को तरजीह और मुस्लिमों समेत दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को हाशिए पर धकेलता है
इंडियाना यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर सुमित गांगुली ने नूयार्क टाइम्स से कहा, “ये यात्रा राहुल गांधी की ओर से पार्टी की हालत सुधारने के साथ-साथ अपनी राष्ट्रीय छवि मज़बूत करने की दिशा में आख़िरी प्रयास है। लेकिन तमाम शोर-शराबे के बावजूद वह भारत को लेकर एक अलग और स्पष्ट विचार पेश करने में नाकाम रहे हैं। ”
पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अख़बार डॉन ने अपने एक लेख में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और खड़गे की अपेक्षित सफ़लताओं को एक सूत्र में पिराने की कोशिश की है। अख़बार लिखता है,”राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए अपनी पार्टी और देश की ख़राब सेहत सुधारने की कोशिश करना चाहते हैं। लेकिन 12 राज्यों से होते हुए 150 दिनों में 3570 किलोमीटर की यात्रा करना कोई चमत्कारी काम नहीं है। और न ही राहुल गांधी की ओर से कैमरों की मौजूदगी के बिना समुद्र में गोते लगाने की क्षमता दिखाना। लेकिन सांप्रदायिक रूप से बँटे हुए कर्नाटक में हिजाब पहने स्कूली बच्ची का हाथ थामे हुए राहुल गांधी की मुस्कराती तस्वीर ही नेहरू और गांधीवादी भारत का विचार था।