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अतीक-अशरफ हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट का UP सरकार से सवाल, योगी सरकार से पूछा- मीडिया के सामने क्यों कराई परेड

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न्यूज़ डेस्क
माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या को लेकर एक तरफ जहां यूपी की सरकार वाहवाही लूट रही है और वोट बैंक की राजनीति करती दिख रही है वही आज इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार के सामने कई सवाल किये हैं। सवालों की झड़ी इतनी लग गई कि सरकार की तरफ से आये वकील मौन से हो गए।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस हिरासत में मेडिकल जांच के दौरान हुई हत्या के मामले में उठाए गए कदमों और जांच को रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया। यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि हत्यारे समाचार फोटोग्राफरों के भेष में आए थे। जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने पूछा कि उन्हें कैसे पता चला? टीवी पर अतीक और उसके भाई की लाइव शूटिंग का जिक्र करते हुए बेंच ने सवाल किया कि उन्हें अस्पताल तक वैन में क्यों नहीं ले जाया गया, उनकी मीडिया के सामने परेड क्यों कराई गई?

यूपी सरकार के वकील ने कहा कि अदालत के आदेश के अनुसार, उन्हें हर दो दिन में चिकित्सा परीक्षण के लिए ले जाना होता है, इसलिए प्रेस को पता था। सरकार ने मामले की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया है और अदालत से मामले में नोटिस जारी नहीं करने का आग्रह किया है। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता दावा कर रहा है कि एक पैटर्न है। यूपी सरकार के वकील ने कहा कि अतीक और उसका परिवार लंबे समय से आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने झांसी में अतीक अहमद के बेटे असद के पुलिस एनकाउंटर पर भी यूपी सरकार से रिपोर्ट मांगी। असद को 13 अप्रैल को यूपी पुलिस की एक विशेष टास्क फोर्स ने एक कथित मुठभेड़ में मार गिराया था। शीर्ष अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई तीन सप्ताह के बाद निर्धारित की है।

बता दें कि अतीक अहमद और उनके भाई को तीन हमलावरों ने पत्रकारों के रूप में गोली मार दी थी, जब पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा था।

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्याओं के साथ प्रदेश में बीते कुछ सालों में हुए पुलिस एनकाउंटर की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अधिवक्ता विशाल तिवारी ने याचिका में अतीक-अशरफ की हत्या समेत 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हुई 183 मुठभेड़ों की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करके कानून के शासन की रक्षा के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की है।

याचिकाकर्ता ने पुलिस हिरासत में अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या की जांच की भी मांग की है और जोर देकर कहा कि पुलिस द्वारा इस तरह की हरकतें लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए एक गंभीर खतरा हैं और पुलिस राज्य की ओर ले जाती हैं। याचिका में कहा गया है कि अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं या फर्जी पुलिस मुठभेड़ों का कानून के तहत कोई स्थान नहीं है और एक लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को अंतिम न्याय देने का एक तरीका बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि सजा की शक्ति केवल न्यायपालिका में निहित है।

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