अखिलेश अखिल
इस रिपोर्ट में नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा के बारे में क्या कहा है उस पर चर्चा की जाएगी तब पता चलेगा कि आखिर भीतर की राजनीति क्या है ? एक बात साफ़ है कि कुशवाहा कही नहीं जाने वाले हैं ,वे नीतीश के साथ है और रहेंगे भी। लेकिन सबसे पहले बिहार में नीतीश की राजनीति पर एक नजर डालने की जरूरत है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाधान यात्रा पर बिहार की राजनीति और लोगों के मिजाज को पढ़ रहे हैं ताकि आगामी लोकसभा चुनाव की रणनीति बना सके। याद रखने जरूरत है कि पीएम मोदी को टक्कर देने के लिए कई नेता दावेदारी कर रहे हैं और अलग-अलग गुटों के जरिये पीएम पीएम की उम्मीदवारी का दावा कर रहे हैं। लोकतंत्र में सबको राजनीति करने से लेकर पीएम की कुर्सी तक पहुँचने के सपने होते हैं ,और इसमें कोई गलत भी नहीं। लेकिन अगर गुटों में बंटकर बीजेपी को घेरने की तैयारी कोई करना चाहता है तो साफ़ है कि वह अंतिम रूप से विपक्षी एकता की बाजय बीजेपी को लाभ पहुंचाने का प्रयास कर रहा है।
मामला चाहे केसीआर का हो या फिर ममता बनर्जी का। अखिलेश यादव हों या फिर अरबिंद केजरीवाल यह फिर शरद पवार हों या उद्धव ठाकरे। मौजूदा राजनीति का सच यही है कि सब के सब बीजेपी से त्रस्त है और बीजेपी की राजनीति के सामने कमजोर भी। ऐसे में अगर बिखड़े विपक्ष की बात होती है तो सब बेकार की बातें ही है। अगर कांग्रेस को यह लगता है कि भारत जोड़ो यात्रा के जरिये उसका उत्थान हो गया है और राहुल पीएम के सबसे काबिल उम्मीदवार हो सकते हैं। कांग्रेस ऐसा सोंचती है तो यह भी उसकी भूल ही साबित होगी। इस पुरे खेल में नीतीश कुमार अभी मौन है और वहुत कुछ कर रहे हैं।
बता दें कि हिंदी पट्टी में अगर सबसे ज्यादा मोदी के बाद कोई लोकप्रिय नेता हैं तो वह हैं नीतीश कुमार। इस बात को मोदी भी जानते हैं और बीजेपी वाले भी। जातीय खेल को भी नीतीश साधने में सबसे आगे हैं और मोदी से आँख मिलकर सवाल पूछने में भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं। नीतीश की पहुँच हिंदी पट्टी के सभी राज्यों तक है ही पूर्वोत्तर राज्यों में भी उनकी पहुँच है हैं और दक्षिण के राज्यों में भी। यूपी में उनकी जातीय राजनीति मौजूद है और संभव है कि अगर सपा नेता अखिलेश यादव चाहेंगे तो यूपी में चुनावी राजनीति इस बार बड़ी हो सकती है। लेकिन अभी इंताजर करने की जरूरत है।
पीएम मोदी विपक्ष के किसी नेता को भले ही अपने सामने कमजोर समझें लेकिन नीतीश के सामने अगर वे कमजोर नहीं है तो मजबूत भी नहीं। नीतीश की राजनीति और उनके चाल चरित्र ,चिंतन की बात करें तो वे मोदी से आगे निकलते दीखते हैं। उनपर न कोई आरोप है न ही उन पर कोई दाग। वे बेदाग़ है और यही नीतीश की पूंजी है जो बीजेपी को परेशान करती है और खुद पीएम मोदी को भी।
आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता लेकिन इतना सच है कि नीतीश जब कोई कदम उठा लेते ऐन तो फिर वापस नहीं होते। उनके रडार पर बीजेपी की राजनीति है और अब उनकी पूरी राजनीति मौजूदा पीएम मोदी के खिलाफ है। भले ही देश भर में वे विपक्षी एकता नहीं भी कर पाए लेकिन उन्होंने जो तैयारी की है अगर वह सफल हो गया तो फिर बीजेपी की परेशानी बढ़ेगी। नीतीश हर हाल में बिहार ,झारखण्ड और यूपी को साधने की तैयारी कर रहे हैं। यहां उनकी ताकत है। सपा के साथ बढ़कर वे अखिलेश यादव को आगे बढ़ाएंगे और अपने जातीय समीकरण से सपा को और भी मजबूत करेंगे। यही हाल बिहार और झारखण्ड का भी है।
इधर कुछ दिनों से खबर चल रही है कि उनके साथी उपेंद्र कुशवाहा नाराज हैं और बीजेपी उनपर डोरे दाल रही है। कहा जा रहा है कि मंत्री पद नहीं मिलने की वजह से वे खफा है और बीजेपी में जा सकते हैं। वैसे होने को तो कुछ भी हो सकता है क्योंकि बिहार में बीजेपी को कुशवाहा की जरूरत है। चिराग और कुशवाहा का साथ मिलने से करीब 8 फीसदी वोट बीजेपी के पाले में जा सकता है। लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ? क्या उपेंद्र इस बात को नहीं जानते ? क्या नीतीश इस बात को नहीं जानते ? कह सकते हैं कि पिछले कई दिनों से जो खबरे प्लांट हो रही है ,सब बीजेपी की तरफ से है।
इधर नीतीश कुमार ने जो कुछ कहा है उस पर गौर करने की बात है। कुमार ने शनिवार को कहा कि वह अपने प्रमुख राजनीतिक सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा से बात करेंगे। जब सीएम कुमार का ध्यान इन अटकलों की ओर खींचा गया तब सीएम ने ट्रेडमार्क व्यंग्यात्मक हास्य के साथ चुटकी ली, “जरा उपेंद्र कुशवाहा को कहिए हमसे बात करने के लिए।”कुमार ने याद किया, “हर किसी को अपना रास्ता तय करने का अधिकार है। कुशवाहा अलग हो गए हैं, केवल एक से अधिक मौकों पर हमारे पास लौटने के लिए।” कुमार ने अपने पार्टी सहयोगी के बारे में कहा, “वह वर्तमान में ठीक नहीं है। उन्हें वापस आने दो। मैं उनसे बात करूंगा। आखिरी बार मैंने उन्हें बोलते हुए सुना था कि वह दृढ़ता से मेरी तरफ हैं।”