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आखिर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा कि “हम जानते है कि लोकतंत्र के नाम पर क्या हो रहा है..

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न्यूज डेस्क
आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी बातें कही जिसे सुनकर सब हल्का बक्का हो गए। थोडे समय के लिए अदालत के भीतर ही सनसनी फ़ैल गई और सब मौन से जो गए। दागी नेताओं की लगातार बढ़ती संख्या और संसद से विधान सभाओं में मौजूद आरोपी नेताओं की हरकत और चुनाव आयोग की ऐसे नेताओं पर लगाम नहीं लगाने की कोशिश पर आज सुप्रीम कोर्ट भड़क उठा। जस्टिस के एम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने सरकारी दफ्तरों में बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार को रेखांकित करते हुए कहा कि “एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने के लिए हमें अपने मूल्यों की तरफ वापस लौटना होगा।”

फिर पीठ ने कहा, “हम जानते हैं लोकतंत्र के नाम पर क्या हो रहा है, कैसी नौकरशाही है हमारी, चुप रहना ही बेहतर है… कोई टिप्पणी नहीं। एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने के लिए सबसे पहले हमें मूल्यों की ओर लौटना होगा, हमें अपना कैरेक्टर हासिल करना होगा।

पीठ ने कहा कि आप किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाइए। क्या देश का कोई भी नागरिक सरकारी कार्यालयों से बेदाग निकल सकता है? पश्चिमी देशों में चले जाइए, आम आदमी कभी भ्रष्टाचार से नहीं जुड़ा होता। यहां क्या होता है? यही मूल समस्या है। हमें अपने अच्छे चरित्र को फिर से हासिल करने की जरूरत है, इसके बिना कुछ नहीं हो सकता।” न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि सभी स्तरों पर जवाबदेही होनी चाहिए।

दरअसल,यह चर्चा तब हुई जब पीठ उन लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए याचिका पर विचार कर रही थी जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में आरोप तय किए गए हैं। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने आंकड़े दिए कि पिछले वर्षों में आपराधिक मामलों में जिन राजनीतिक व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी, उनकी संख्या कैसे बढ़ रही है।

कोर्ट ने बताया कि पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा द्वारा लिखे गए एक फैसले में कहा गया है कि न्यायालय इसमें मदद नहीं कर सकता है। सरकार को इसके बारे में कुछ करना चाहिए। न्यायालय ने मौजूदा मुद्दे को “महत्वपूर्ण” करार देते हुए संघ को अपना प्रतिवाद दायर करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग की तरफ से वकील अमित शर्मा पेश हुए थे। वे कुछ भी कह नहीं सके।

वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने तर्क दिया कि मैं केवल उन लोगों के लिए कह रहा हूं जिनके खिलाफ आरोप तय किए गए हैं। अगर राजनीतिक दल इन व्यक्तियों की आपराधिक पृष्ठभूमि का पता लगाने में सक्षम नहीं हैं, तो यह समस्या की बात है।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, हमें ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है जो राष्ट्र के निर्माता हों। जस्टिस जोसेफ ने मामले में अंतिम सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तारीख दी है।

सवाल है कि जब कोर्ट बार बार यह कहता है कि सरकार को इस गंभीर मसले पर ध्यान देना चाहिए तब भी सरकार कोई पहल अभी तक क्यों नही कर रही है ।इस देश में हर समय चुनाव के दौरे चलते है ।उसके लिए दागी बागी नेताओं की भीड़ जुटती है लेकिन सरकार को जो काम करना चाहिए नही करती।

दरअसल ,दागी नेताओं पर लगाम कौन लगाए ? कोई भी ऐसा दल नही जहां दागियों को भरमार नही है ।दागियों के सहारे ही जब चुनावी खेल को अंजाम दिया जाता है तो फिर दागियों से कोई कैसे परहेज करेगा ?क्या बायां हाथ कभी दाएं हाथ को बेकार मान सकता है ?

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