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आखिर सुशील मोदी क्या चाहते है ? विपक्ष चुनाव लड़ना छोड़ दे और बीजेपी की परिक्रमा करे ?

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अखिलेश अखिल 
पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी को मिली अप्रत्याशित जीत ने बीजेपी के नेताओं को घमंडी बना दिया है। बीजेपी के नेताओं को लगने लगा है कि अब लोकतंत्र की कोई कोई जरुरत नहीं है और अब देश को एकल पार्टी की ही जरुरत है। एक ही पार्टी चुनाव लड़े और एक ही पार्टी के भीतर देश की जनता सिमट जाए। यह बात इसलिए कही जा सकती है कि बिहार वाले सुशील मोदी मोदी ने नीतीश कुमार के वराणसी में रैली करने और संभावित रूप से फूलपुर से चुनाव लड़ने को लेकर जो बयान सामने आये हैं वह इस बात की तरफा इंगित करते हैं कि देश में अब विपक्ष की कोई जगह नहीं है और देश की पूरी राजनीति बीजेपी के हवाले ही हो गई है।  
  सुशील मोदी ने जदयू और नीतीश कुमार पर बड़ा हमला किया है। सुशील मोदी ने कहा कि अब नीतीश कुमार बनारस में रैली करें या फूलपुर से चुनाव लड़ लें, कहीं उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है। जदयू पहले उत्तर प्रदेश और अब मध्य प्रदेश विधानसभा की 10 सीटों पर जमानत जब्त कराकर बिहार के बाहर अपनी औकात देख चुका है।               
 पूर्व उप-मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बिना सीएम-फेस घोषित किये तीन हिंदी प्रदेशों में चुनाव लड़ने और तीनों राज्यों में स्पष्ट बहुमत पाने के बाद भाजपा ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के विष्णु साय, मध्य प्रदेश में पिछड़े वर्ग के डॉ. मोहन यादव और राजस्थान में सवर्ण समाज के भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर सामाजिक न्याय का ऐसा उदाहरण सामने रखा है, जिससे 2024 से पहले इंडी गठबंधन की हवा निकल गई।
              सुशील मोदी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन ने किसी यदुवंशी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया और बिहार में जिन्हें बनाने के लिए एड़ी-चोट का जोर लगाया जा रहा है, वे ‘नौकरी के बदले जमीन’ मामले में आरोपित हैं। उनकी एक मात्र योग्यता लालू प्रसाद का पुत्र होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम ने नये मुख्यमंत्रियों के चयन में सभी वर्गों को साथ लेकर चलने और सबका सम्मान करने की गारंटी साबित की।
              उन्होंने कहा कि इंडी गठबंधन अब तक उप-समितियों की बैठक नहीं कर पाया, साझा उम्मीदवार तय करना तो बहुत दूर की बात है। तीन प्रदेशों में भाजपा की शानदार विजय और धारा-370 हटाने के पक्ष में आया सुप्रीम कोर्ट का निर्णय 2024 के संसदीय चुनाव का एजेंडा तय कर चुका है, लेकिन सपनों में खोये नीतीश कुमार हवा का रुख देखना नहीं चाहते।     
  तो क्या जदयू को अब राजनीति को छोड़ देनी चाहिए ? क्या इंडिया गठबंधन को आगे की राजनीति नहीं करनी चाहिए ? क्या सभी पार्टियों को बीजेपी के साथ ही जुड़ जाना चाहिए ? कुछ इसी तरह की बातें अब राजनीतिक हलकों में चल रही है।      
 ऐसे में सवाल तो यह भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी इस बात का दावा कर सकती है कि आगामी चुनाव में बीजेपी बिहार की सभी सीटें जीत जाएगी ? अगर्ब यह मान भी लिया जाए प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा आज भी कायम है तो दक्षिण भारत में उसकी हार क्यों हो गई ? हाल में तेलंगाना में ही बीजेपी क्यों हार गई ? पूर्वोत्तर में सबसे मजबूत पार्टी का दावा करने वाली बीजेपी मिजोरम में क्यों चुनाव हार गई ? फिर जिन राज्यों में गैर बीजेपी की सरकार है वहां उसकी जीत क्यों नहीं हो रही है ? 
  जानकार कहते हैं कि बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी बिहार ,बंगाल और यूपी में ही है। बंगाल में उसे टीएमसी से मुकाबला करना है। बिहार में जदयू और राजद से उसका मुकाबला है और यूपी में सपा ,बसपा के साथ उसकी भिड़ंत है। ऐसे में बीजेपी की बौखलाकट बढ़ती जा रही है।  
 जानकार यह भी कह रहे हैं कि अगर आज नीतीश  कुमार फिर से बीजेपी के साथ हो जाए तो बीजेपी के बोल ही बदल जायेंगे। बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि जब वह चुनाव जीत जाती है तो उसके बोल कड़े हो जाते हैं और जहाँ चुनाव हारती है तो वह मौन हो जाती है। लोकतंत्र में हार और जीत तो चलती ही रहती है ऐसे में सुशील मोदी का नीतीश को चुनौती देने वाला बयान लोकतंत्र के लिए हंसी से ज्याद कुछ भी नहीं। 

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