न्यूज डेस्क
दिल्ली एमसीडी के चुनाव तो दिसंबर में समय हो गए। चुनाव परिणाम आप के पक्ष में गया । 250 सीटों में 134 सीटें आप को मिली जा की बीजेपी के हाथ 104 सीटें आई। कांग्रेस को 9 सीट ही मिली। लेकिन अभी तक महापौर के चुनाव को लेकर मारामारी है। यह बात और है कि एमसीडी में महापौर के पास कोई खास ताकत नहीं होती लेकिन उसकी कुछ भूमिका होती है। बीजेपी हर हाल में महापौर अपना चाहती है।
बीजेपी खेल कर रही है। सभी स्थाई समितियों पर कब्जा कर रखा है बीजेपी। अब उसकी कोशिश आप पार्षदों को तोड़कर बहुमत साबित करने की है। इसी खेल को वह आगे बढ़ा रही है। आप के सारे रास्ते बंद किए हुए है। इस बीच गंगा।अभी होते रहे।
छह जनवरी,2023 को महापौर चुनाव से पहले सदस्यों के शपथ-ग्रहण में खूब हंगामा हुआ और सारी मर्यादाएं तार-तार हुईं। पहले तो विवाद पार्षदों (सदस्यों) को शपथ दिलाने के लिए उप राज्यपाल से नियुक्त पीठासीन अधिकारी की नियुत्ति पर हुआ। विवाद उग्र पहले मनोनीत सदस्यों के शपथ ग्रहण के चलते हो गया। तब तक दस मनोनीत सदस्यों में से चार ही शपथ ले पाए थे। आप का आरोप है कि उनके सदस्यों में तोड़फोड़ करके भाजपा उप राज्यपाल के माध्यम से निगम की हारी हुई बाजी पलटने में लगी हुई है।
निगम के विधान में चुने हुए पार्षदों के बावजूद निगम की असली सत्ता निगम आयुक्त और नौकरशाहों के पास है। संसद में हुए संशोधन से तीन निगम 15 साल बाद एक हुआ और साथ ही निगम पार्षदों की संख्या 272 से कम हो कर 250 हुई। उसी संशोधन में निगम पर पूरा नियंत्रण उप राज्यपाल का कर दिया गया। इसीलिए अब मनोनीत सदस्य तय करने का अधिकार भी राज्य सरकार के पास नहीं रहा है।
सदनों में बहुत सारा काम नियमों से अधिक परंपराओं से होता है। पीठासीन अधिकारी वरिष्ठ पार्षद बनेगा यह परंपरा है। कई नाम सरकार भेजती है, उसमें तय करना उप राज्यपाल के अधिकार में है। उसी तरह मनोनीत सदस्यों को कब शपथ दिलाना है यह पीठासीन अधिकारी तय करते हैं।
आप को डर था कि महापौर चुनाव से पहले मनोनीत सदस्यों को शपथ दिलाकर भाजपा अपनी रणनीति कामयाब करने में लगी है। निगम में तो महापौर केवल दिखावटी पद है। वह केवल निगम की बैठक का संचालन करता है और दिल्ली का पहला नागरिक कहलाता है। निगम में अधिकारियों से फैसलों को लागू करवाने वाली संस्था स्थाई समिति है जो निगम के आर्थिक फैसले लेने के लिए सक्षम है।
उसके अध्यक्ष का चुनाव 12 जोन से आने वाले 12 सदस्य और सभी सदस्यों से चुने जाने वाले छह सदस्य करते हैं। भाजपा ने जिन दो निर्दलीय सदस्यों को अपनी पार्टी में शामिल कराया, उसमें से एक को स्थायी समिति ले सदस्य का चुनाव लड़वाना तय किया। ‘आप’ को डर है कि वह उनके सदस्यों के भरोसे चुनाव लड़ रहा है।
आगे एमसीडी पर किसका कब्जा होगा कहना कठिन है। बीजेपी 15 सालो से एमसीडी में बैठी थी। उसे लग रहा है कि एमसीडी की सत्ता चली गई तो अगला चुनाव भी उसके लिए भारी पड़ेगा। लोकसभा चुनाव के साथ ही उसे विधान सभी चुनाव भी चिंता है ।
इधर यह भी बता दें कि दिल्ली में अधिकतर काम एमसीडी से ही जुड़े है। मौजूदा एलजी भी इस खेल में अहम भूमिका निभा रहे है।केजरीवाल को सरकार को कोई भी काम करने से रोकते है। अब देखना होगा की आने वाले समय में एमसीडी किसके पास होता है।चुकी बीजेपी की कोशिश दो दर्जन आप पार्षदों को तोड़ने की है। अगर ऐसा हुआ तो आप जीतकर भी हार जायेगी