Homeदेशआदिशक्ति अंबिका देवी बनीं मां दुर्गा

आदिशक्ति अंबिका देवी बनीं मां दुर्गा

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आदिशक्ति मां दुर्गा के 9 स्वरुपों की आराधना के लिए समर्पित शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से हो रहा है। इस दिन कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा की पूजा विधि विधान से शुरू हो गई है। इस दिन से ही लोग 9 दिनों का व्रत रखेंगे तथा उसके नियमों का पालन करेंगे। शारदीय नवरात्रि के आगमन के अवसर पर आज हम आपको बता रहे हैं कि कौन हैं मां अंबिका और कैसे इनका नाम दुर्गा पड़ा।

शिवपुराण में बताया गया है कि एकबार एकाक्षर ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म भगवान सदाशिव ने अपने विग्रह यानी शरीर से शक्ति का सृजन किया। उस भगवान सदाशिव की पराशक्ति को शक्ति अंबिका कहा गया है, जो गुणवती माया, बुद्धि की जननी, विकार रहित तथा प्रधान प्रकृति हैं। शक्ति अंबिका की आठ भुजाएं हैं, वह अनेक अस्त्रों से युक्त हैं। वह भगवान सदाशिव की पत्नी हैं। सदाशिव उनके बिना अधूरे हैं।कालांतर में यही अंबिका देवी मां दुर्गा कहलाई।

पृथ्वी को समुद्र में डुबाने का प्रयास करने वाले जिस असुर हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर मार दिया था ,उसी हिरण्याक्ष के वंश में एक शक्तिशाली दैत्य ने जन्म लिया।इसका नाम दुर्गमासुर था। वह बड़ा ही बलशाली था। उसके अत्याचार से सब भयभीत थे। देवता भी उससे डरने लगे थे। एक दिन उसने स्वर्ग पर ही आक्रमण कर देवताओं को भारी त्रास देना शुरू कर दिया।देवताओं में उनसे लड़ने की क्षमता नहीं थी।ऐसे में उसकी त्रासदी से बचने के लिए देवताओं के राजा इंद्र समेत सभी देवता स्वर्ग छोड़कर भाग गए और पर्वतों की गुफा में शरण ली।स्वर्ग पर अब दुर्गमासुर का अधिकार हो गया था।

गुफाओं में भी देवतागण सुरक्षित नहीं थे क्योंकि दुर्गामासुर के यहां भी किसी समय आ धमकने का डर था।ऐसे में उनके समक्ष विकट प्रश्न था कि वे दुर्गमासुर को स्वर्ग से कैसे भगाएं? जबाव किसी के पास नहीं था, क्योंकि दुर्गमासुर अतुलित बलशाली था। तब देवताओं ने आदिशक्ति अंबिका की आराधना करने का निर्णय लिया। सभी देवता मां अंबिका की आराधना करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर मां अंबिका ने देवताओं को दुर्गमासुर से निर्भय होने का आशीष दिया।

इधर दुर्गमासुर को भी इस घटना के बारे में जानकारी हो गई। गुप्तचरों ने बताया कि मां अंबिका ने देवताओं को निर्भय होने का वरदान दिया है। इससे दुर्गमासुर क्रोधित हो गया और अपने बल के अहंकार में चूर होकर वह आदिशक्ति को चुनौती देने चल पड़ा।

दुर्गमासुर अपने सभी अस्त्र-शस्त्र और दैत्य सेना को लेकर उस स्थान पर आया,जहां मां अंबिका से अभय वरदान प्राप्तकर देवता स्वछंद विचरण कर रहे थे। यहां आकर वह देवताओं को त्रास देने के लिए उनपर वाण वर्षा करने लगा और अंबिका देवी को युद्ध के लिए ललकारने लगा।दुर्गमासुर के वाणों से आहत देवताओं ने फिर से मां अंबिका देवी से इस संकट से उबरने का निवेदन किया।इसके बाद मां अंबिका वहां प्रकट हुईं और अपने हाथों से चक्र प्रक्षेपित कर देवताओं को सुरक्षा कवच प्रदान किया।दुर्गमासुर झल्ला- झल्ला कर देवताओं पर वाण प्रहार करता, लेकिन अब उसका सब वाण चक्र से टकराकर टूट जाता था। इधर मां अंबिका देवी ने दैत्य सेना को तहस-नहस करना प्रारंभ कर दिया।

इससे क्रोधित होकर दुर्गमासुर अंबिका देवी के सामने आ धमका और उनके साथ के साथ घनघोर युद्ध करने लगा। दोनों के बीच 10 दिनों तक लगातार युद्ध चला रहा। इसके बाद ग्यारहवें दिन मां अंबिका देवी ने सेना सहित दुर्गमासुर का वध कर दिया।तब देवताओं ने मां अंबिका देवी की दुर्गा रूप में विशेष पूजा आराधना की।इसके बाद मां अंबिका देवी मां दुर्गा के नाम से भी पूजी जाने लगी।

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