ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच जिस तरह के संबंध बन गए हैं ,उससे भारत अपनी सुरक्षा को लेकर और चिंतित हो गया और अपनी डिफेंस सिस्टम को और मजबूत करने की दिशा में विचार कर रहा है। इसी क्रम में भारत राफेल लड़ाकू विमानों से आगे की सोच रहा है और संभावना जताई जा रही है कि Su-57 और F-35 की खरीद पर भारत जल्दी ही फैसला लेगा। भारत की रक्षा नीति अब हथियारों की खरीद से आगे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है।भारत यह चाहता है कि वह हथियारों के लिए दूसरों पर निर्भर ना रहे बल्कि वह खुद इसका निर्माण भी कर सके। फ्रांस से राफेल का सोर्स कोड मांगना इसी दिशा की ओर बढ़ाया गया कदम है।
भारत ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों के सोर्स कोड की मांग की है, तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहता हैl अपने स्वदेशी हथियारों और प्रणालियों को विमान में अटैच करना, इस मांग के पीछे बड़ी वजह यह जानना अगर ऐसा संभव हो पाया, तो भारत को विदेशी ताकतों पर निर्भर करती नहीं रहना पड़ेगा । लेकिन राफेल भारत की इस मांग को पूरा करने से मना कर रहा है। राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन इस बात के लिए राजी नहीं है, उनका कहना है कि यह उनकी बौद्धिक संपत्ति है, जिसे वे किसी के साथ साझा नहीं करना चाहते हैं. इस स्थिति में निश्चित तौर पर भारत अपने डिफेंस सिस्टम को और मजबूत करने के लिए अन्य विकल्पों पर विचार करने की सोच रहा है।
फ्रांस द्वारा राफेल का सोर्स कोड देने से मना करने पर भारत ने रूस के Su-57 में रूचि दिखाई है।ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने अपने डिफेंस सिस्टम को मजबूत करने लिए बहु स्वीकार करना होगा कि फोकस किया है। चूंकि फ्रांस ने राफेल के सोर्स कोड को देने से मना कर दिया है, इसलिए भारत Su-57 पर विचार Su-57 खरीदने पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश क्यों करते हैं प्रतिबंध की बात?
भारत जब भी अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कोई हथियार या डिफेंस सिस्टम खरीदता है तो अमेरिका और पश्चिमी देशों को खुजली मचती रही है। जब भारत ने एस-400 डिफेंस सिस्टम खरीदा था, उस वक्त भी अमेरिका द्वारा प्रतिबंध की चर्चा हुई थी, हालांकि ऐसा कुछ हुआ नहीं।अब जबकि भारत Su-57 की ओर देख रहा है, तो संभव है कि अमेरिका की ओर से आपत्ति आए या पश्चिमी देश आपत्ति जताएं, लेकिन भारत को इन चीजों से निपटने के लिए कूटनीतिक पहल करनी होगा।
भारत और रूस ने Su-57 लड़ाकू विमान की डील पर बातचीत फिर से शुरू कर दी है।इस डील में रूस इस बात पर सहमत है कि वह भारत को इस विमान का सोर्स कोड साझा करेगा, ताकि भारत इसमें अपनी सुविधानुसार बदलाव और उपयोग कर पाए।किसी लड़ाकू विमान (fighter jet) का सोर्स कोड (source code) उस विमान के सॉफ्टवेयर का मूल प्रोग्रामिंग कोड होता है, जो विमान के सभी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, हथियार नियंत्रण, रडार और मिशन कंप्यूटर को चलाता है। सोर्स कोड पता होने पर उसे इस्तेमाल करने वाले देश का पूर्ण नियंत्रण विमान पर स्थापित हो जाता है। इसका फायदा यह होता है कि इस्तेमाल करने वाला देश अपने हथियार, रडार और अन्य प्रणाली विमान में जोड़ सकता है।
भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए काफी सजग है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि फाइटर जेट का इंजन बनाने में भारत को अबतक सफलता नहीं मिल पाई है। हालांकि भारतीय वैज्ञानिक प्रयासरत हैं।इसी क्रम में इसने कावेरी इंजन बनाया है, लेकिन वह फाइटर जेट के मानकों तक पहुंच नहीं पाया है। उम्मीद की जा रही है आने वाले वर्षों में भारत फाइटर जेट के इंजन की चुनौती से निपट लेगा।
भारत जब भी अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कोई हथियार या डिफेंस सिस्टम खरीदता है तो अमेरिका और पश्चिमी देशों को खुजली मचती रही है।जब भारत
ने एस-400 डिफेंस सिस्टम खरीदा था, उस वक्त भी अमेरिका द्वारा प्रतिबंध की चर्चा हुई थी।लेकिन
ऐसा कुछ हुआ नहीं।अब जबकि भारत Su-57 की ओर देख रहा है, तो संभव है कि अमेरिका की ओर से आपत्ति आए या पश्चिमी देश आपत्ति जताएं, लेकिन भारत को इन चीजों से निपटने के लिए कूटनीतिक पहल करनी होगी।