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‘द इकोनॉमिस्ट ‘ पत्रिका की कवर स्टोरी ‘द पैरेबल ऑफ़ अडानी ‘ मीडिया और मोदी सरकार पर तमाचा !

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अखिलेश अखिल 

अडानी समूह के  खेल पर देश की जनता भले ही मौन है क्योंकि पांच किलो अनाज पर उनकी गर्दन नीचे झुकी हुई है। भला दया पाए लोग कोई सवाल कैसे करे !आँखों  में पानी जो है। एहसान तो दिखाना ही होगा। पांच किलो अनाज और कुछ हजार रुपये की कीमत पर देश की इज्जत दुनिया में भले ही बदनाम हो जाए ,भारतीय जनता को इससे क्या फर्क पड़ता है ? भारत में अडानी समूह की लूट की गाथा पर विपक्ष ने खूब हंगामा किया लेकिन सरकार ने उस हंगामे को दरकिनार कर दिया। अगर यही खेल किसी दूसरे देश में हुआ होता तो उस देश की जनता सड़को पर उतर गई होती लेकिन धर्म और जाति में बंटे भारतीय समाज को भले ही देश लूट जाए ,उसे कथित हिन्दू राष्ट्र की कहानी खूब सुहाती है ,मन भाती  है। आज देश में जो भी होता दिख रहा है उसमे राजनीति का दोष कम जनता की सोंच और समझ ज्यादा जिम्मेदार है। इसकी परिणति क्या होगी यह कौन जनता है ?                            
इधर सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अडानी समूह और हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर जांच की जाएगी। सरकार जांच करने वाले लोगो की गुप्त जानकारी अदालत को देगी। आगे क्या होगा यह सब देखने की बात है। अब तक जितने भी जांच इस देश में हुए है उससे कोई निदान तो निकला नहीं। लेकिन इसी दौर में दुनिया के अखबारों और मीडिया समूह ने अडानी को लेकर बहुत कुछ लिखा है। आर्थिक मामलों की दुनिया भर में प्रतिष्ठित मैगजीन द इकोनॉमिस्ट ने तो अडानी मामले पर कवर स्टोरी छापी है। द इकोनॉमिस्ट जैसी पत्रिका में कवर स्टोरी तभी छपती है जब मामला बेहद संगीन होता है। हालांकि वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जनरल ने भी अडानी मामले पर विस्तार से कई रिपोर्ट छापी हैं लेकिन द इकोनॉमिस्ट में छपने पर तमाम आर्थिक विशेषज्ञों की नजर इस पर जाती है और पूरी दुनिया में भारत के आर्थिक प्रबंधन को लेकर एक राय कायम की जाती है।                    
    द पैरेबल ऑफ अडानी शीर्षक से प्रकाशित इस स्टोरी को भारतीय पूंजीवाद के लिए एक टेस्ट बताया गया है। यानी अगर अडानी समूह डूबा तो भारतीय पूंजीवाद की बड़ी विफलता की तस्वीर सामने आ सकती है।  द इकोनॉमिस्ट ने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के तथ्यों का उल्लेख करते हुए अडानी के जवाब को भी जगह दी है लेकिन उसने सवाल किया है। उसने कहा है कि अडानी का बिजनेस विस्तार मॉडल बैंक कर्जों से भरपूर है जो बहुत साहसिक दिखता है लेकिन बहुत कम तर्कसंगत लगता है। द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि मोदी के कार्यकाल ने भारत की अदालतों और पुलिस की आजादी को कमजोर कर दिया है। मीडिया कायर है। भारत की समृद्धि के लिए इसके बुनियादी ढांचे की तरह इसके संस्थानों की मजबूती भी जरूरी है। भारतीयों को बिजली और सड़कों से फायदा होगा लेकिन उन्हें स्वच्छ प्रशासन और एक समान अवसर की भी जरूरत है।                     
 द इकोनॉमिस्ट आगे लिखता है कि जितना बड़ा कारोबारी होगा, उतना ज्यादा स्टेक दांव पर होगा। भारत की सबसे बड़ी 500 गैर वित्तीय फर्मों के मुकाबले अकेले अडानी ने ही 7 फीसदी का पूंजी निवेश कर रखा है। लेकिन क्या अब उस निवेश को संघर्ष नहीं करना पड़ेगा, क्या वो अधूरे नहीं रह जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी अभी तक अडानी के खतरों पर चुप हैं। उनके मंत्री भरोसा दे रहे हैं कि भारत का मूलभूत आर्थिक ढांचा बहुत मजबूत है। लेकिन अगर भारत इसी तरह तरक्की करता रहा तो उसे विदेश से बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत होगी जो निवेश के रूप में ही आ सकता है। लेकिन जिन देशों में गवर्नेंस बेहतर या अच्छा नहीं है, वहां विदेशी कंपनियां जाने में हिचकती हैं या चिंतित रहती है।
           द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि जब न्यूयॉर्क की एक छोटी सी फर्म (हिंडनबर्ग रिसर्च) अडानी समूह से तीखे सवाल कर सकती है तो भारतीय रेगुलेटर (सेबी, आरबीआई) क्यों नहीं सवाल कर सकते। भारतीय रेगुलेटर अडानी की जो भी जांच कर रहे हैं, उन्हें उसके बारे में बताना चाहिए। उस जांच का स्टेटस क्या है, यह बताना चाहिए। उसे मॉरीशस रूट की उन वित्तीय संस्थाओं से पूछना चाहिए, जिन्होंने अडानी ग्रुप की कंपनियों में पैसा लगा रखा है। भारतीय स्टॉक मार्केट के स्कैंडल वैसे भी मॉरीशस रूट की कंपनियों की वजह से सामने आते रहते हैं।
              द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि मोदी के कार्यकाल में बहुत सारी तरह से चेक एंड बैलेंस सिस्टम में गिरावट आई है। यानी कहीं गड़बड़ी होने पर सरकार की संस्थाएं उसे फौरन ठीक करती हैं या कार्रवाई करती हैं। मोदी सरकार ने भारतीय अदालतों और पुलिस की आजादी को ताक पर रख दिया। भारतीय मीडिया जो पहले बहुत सक्रियता से तमाम मामलों की जांच करता था या नजर रखता था, अब नपुंसक बन गया है। कुछ अखबारों ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट छापी लेकिन अडानी समूह से कड़े सवाल नहीं कर पाए। अडानी ने खुद उस चैनल एनडीटीवी को खरीद लिया जो कभी सरकार का आलोचक था।
               बता दें कि अमेरिका की जानी-मानी निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर स्टॉक बाज़ार में हेरफेर करने का एक सनसनीखेज आरोप लगाया था। इसने कहा कि अडानी समूह एक स्टॉक में खुलेआम हेरफेर करने और अकाउंट की धोखाधड़ी में शामिल था। हिंडनबर्ग अमेरिका आधारित निवेश रिसर्च फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में एक्सपर्ट है। रिसर्च फर्म ने कहा कि उसकी दो साल की जांच में पता चला है कि “अडानी समूह दशकों से 17.8 ट्रिलियन (218 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के स्टाक  के हेरफेर और अकाउंटिंग की धोखाधड़ी में शामिल था।
             रिसर्च फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने पिछले तीन सालों के दौरान लगभग 120 अरब अमेरिकी डॉलर का लाभ अर्जित किया है जिसमें से अडानी समूह की सात प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक मूल्य की बढ़ोत्तरी से 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक कमाये। जिसमें पिछले तीन साल की अवधि में 819 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई।
                  हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात तक फैले टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियों के नेक्सस का विवरण है। जिसके बारे में दावा किया गया है कि इनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और करदाताओं की चोरी को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है। जबकि धन की हेराफेरी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से की गई थी।

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