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क्या मोदी सरकार अडानी ग्रुप की जांच आरबीआई और सेबी से कराएगी ?

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अखिलेश अखिल 

 अडानी ग्रुप की संपत्ति लगातार लुढ़कती जा रही है। पिछले तीन दिनों में ही अडानी की संपत्ति में लाखो करोड़ की गिरावट दर्ज हुई है और निवेशकों के भी लाखो करोड़ स्वः हो गए हैं। ऐसे में अब कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। उधर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसकी जांच आरबीआई और सेबी से कराने की मांग की है। क्या सरकार ऐसा करेगी ?कांग्रेस ने अडानी ग्रुप को लेकर हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट के बाद भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी से जांच की मांग की है। कांग्रेस ने कहा है कि इस मामले की ‘गंभीर जांच’ होनी चाहिए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा, आरोपों की भारतीय वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा जांच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जैसे वित्तीय संस्थानों के अडानी समूह के उच्च जोखिम वाले संस्थानों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करने से, उन करोड़ों भारतीयों पर प्रभाव पड़ता है, जिनकी बचत वित्तीय प्रणाली के इन स्तंभों द्वारा की जाती है। गौरतलब है कि पहले की रिपोटरें ने अडानी समूह की कंपनियों को कर्ज के बोझ से दबा बताया है।       
इधर अडानी की कंपनी लगातार शेयर बाजार में गोते खा रही है और खुद अडानी की निजी संपत्ति कम होती जा रही है। ऐसे में कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। नियति को कौन जानता है ! यह नियति ही है जो इंसान को नीचे से ऊपर खड़ा कर देता है और फिर वह अपनी कामयाबी का डंका पीटता चलता है। यही वह नियति है जब किसी को नीचे गिराकर उसके सारे खेल को ख़त्म कर देता है। सच तो यही है कि समय के चक्र को कोई नहीं जनता। समय जब अनुकूल होता है तब एक मुर्ख भी ज्ञानी दीखता है। उसके हर चाल को दुनिया आदर्श मानती है लेकिन जब समय विपरीत होता है तो उसकी सारी कलई खुल जाती ही अडानी के साथ अभी तीन दिनों में जो होता दिख रहा है उससे साफ़ है कि नियति के चक्र से कोई नहीं बच सकता।    
 अडानी पिछले आठ सालों में आगे बढे और दुनिया के शिखर पर पहुँच गए। पिछले दिनों उन्होंने प्रायोजित तरीके से कई मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू दिया था और अपनी सफलता का राज बताया था। लेकिन तब भी उनकी सफलता का राज संदेहास्पद की था। किसी को यकीन नहीं हुआ। आखिर ईमानदारी से कोई दुनिया का बादशाह कैसे बन सकता है ? कॉर्पोरेट की कहानी ही बेईमानी से शुरू होती है और बेईमानी पर ख़त्म। और जब किसी कॉर्पोरेट के साथ सत्ता का सहयोग हो तो फिर उसे आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है ?        
  चौंकाने वाली खबर तो यही है कि जो व्यक्ति सप्ताह भर पहले अपनी महानता के गीत गए रहे हो मात्र एक झटके में जमीन पर खड़ा हो गया। यही सबसे बड़ा सवाल है। बीते तीन दिनों में अडानी को चार लाख 20 हजार करोड़ की चपत लगी है। पहले वे दुनिया के सबसे अमीर तीसरे व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे अब सातवें स्थान पर आ गए हैं। अब यहां से आगे बढ़ना और भी मुश्किल है। खुद गौतम अडानी की संपत्ति साढ़े नौ लाख करोड़ से घटकर साढ़े सात लाख करोड़ पर आ गई है। यानि उनकी निजी संपत्ति करीब डेढ़ लाख करोड़ की कमी आयी है। यह कोई मामूली गिरावट नहीं है। कई लोग कह रहे हैं यह सब कोर्पोरेट घराने के बीच चल रहे द्वन्द की कहानी है। लेकिन इससे मोदी सर्कार को भी झटका लगा है। याद रहे अडानी पर देशी बैंको के करीब ढाई लाख करोड़ का कर्ज है और अब डर इस बात का है और अडानी ऐसे ही नीचे खिसकते चले गए तो देश को दिवालिया से कौन बचाएगा ? अडानी के साथ ही पिछले तीन दिनों में शेयर बाजार में निवेश करने वाले लोगों की भी हालत ख़राब हो गई है। करीब दो लाख  75 हजार करोड़ रुपये निवेशकों के भी डूब गए हैं।        
 दरअसल यह सारा खेल हाल में अमेरिकी वित्तीय रिसर्च कंपनी हिंडनवर्ग की एक रिपोर्ट सामने आने के बाद शुरू हुआ है। इस रिपोर्ट में अडानी की कंपनी को गलत तरीके से मार्किट में अपनी स्थिति मजबूत बनाये रखने की पोल पट्टी खोली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी का कारोबार झूठ और ठगी पर आधारित है और शेल कंपनियों के जरिये अडानी के शेयर बढ़ते रहे हैं। रिपोर्ट में कई और तरह के आरोप लगाए गए हैं। 
    सबसे ज्यादा परेशानी तो इस बात को लेकर है कि जिन सरकारी बैंको से कर्ज लेकर अडानी आगे बढ़ रहे हैं कही उस बैंक का पैसा डूब गया तो देश का क्या होगा। देश की इकॉनमी का क्या होगा ?       
कांग्रेस नेता ने कहा कि इसने उन करोड़ों भारतीयों को चिंता में डाल दिया है, जिनकी बचत को एलआईसी और एसबीआई ने वित्तीय जोखिम में डाल दिया है। यदि, जैसा कि आरोप लगाया गया है, अडानी समूह ने हेरफेर के माध्यम से अपने स्टॉक के मूल्य को कृत्रिम रूप से बढ़ाया है, और फिर उन शेयरों को गिरवी रखकर धन जुटाया है, तो एसबीआई जैसे बैंकों को उन शेयरों की कीमतों में गिरावट की स्थिति में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

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