दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने 4 सितंबर को होने वाले एमसीडी वार्ड समिति के चुनावों को रोक दिया था, जिसके बाद उपराज्यपाल वीके सक्सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा। कमिश्नर की ओर से जारी निर्देश में कहा गया कि उपराज्यपाल के आदेशानुसार, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और स्थायी समिति के सदस्यों के पदों के लिए चुनाव निर्धारित समय पर ही होंगे।
दरअसल, एमसीडी कमिश्नर ने 30 अगस्त को नामांकन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद मेयर के पास पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने के लिए फाइल भेजी थी, लेकिन मेयर शैली ओबेरॉय ने ‘अलोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया’ में भाग लेने से इनकार करते हुए पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने से मना कर दिया।उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें कई पार्षदों से ज्ञापन मिले हैं जो नामांकन के लिए पर्याप्त समय न मिलने की शिकायत कर रहे थे।
इस घटनाक्रम की जानकारी एमसीडी कमिश्नर ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना को दी, जिन्होंने इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के ध्यान में लाया।
इसके बाद, गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर उपराज्यपाल को पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार दिया। उपराज्यपाल के आदेश पर एमसीडी कमिश्नर ने सभी जोन के डिप्टी कमिश्नरों को 4 सितंबर को वार्ड समितियों के चुनाव कराने के निर्देश जारी किए।
अब उपराज्यपाल के आदेश के अनुसार, प्रत्येक जोन के डिप्टी कमिश्नर पीठाशीन पदाधिकारी पद की भूमिका निभाएंगे ताकि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो सकें।सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में दिए एक आदेश में कहा था कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के परामर्श के बिना एमसीडी में एल्डरमेन नियुक्त कर सकते हैं, जिससे एमसीडी में 12 वार्ड समितियों के चुनाव का रास्ता खुला। इन चुनावों में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के 60 पार्षद शामिल होंगे।हालांकि मेयर द्वारा चुनाव रोकने का निर्णय उस समय आया, जब उन्हें आशंका थी कि बीजेपी, जो कि कुछ वार्ड कमेटियों में एल्डरमेन की नियुक्तियों के कारण संख्या में बढ़त ले सकती है, उनके पार्षदों को अपनी ओर कर सकती है।इससे 12 में से 7 या 8 वार्ड समितियों पर बीजेपी का कब्जा होने की संभावना है।
उपराज्यपाल ने संसद में किए गए कानून परिवर्तनों का उपयोग करते हुए पीठासीन पदाधिकारी की नियुक्ति कर दी, जिससे 12 वार्ड समितियों के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है, जो अब एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटी की प्रभावशीलता को तय करेगा।