न्यूज़ डेस्क
उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से कन्हैया कुमार को कांग्रेस आलाकमान ने चुनावी मैदान में तो उतार दिया है, लेकिन वह अपनी पार्टी के चक्रव्यूह में उलझते नजर आ रहे हैं। वे एक सप्ताह बाद भी प्रचार करने के लिए नहीं उतर सके हैं। आलम यह है कि शुक्रवार को प्रदेश स्तर पर बुलाई गई परिचय बैठक में उनकी दूसरे वरिष्ठ नेताओं से कहासुनी भी हो गई। माना जा रहा है कि आने वाले समय में उन्हें एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि कन्हैया कुमार को कई चक्रव्यूह तोड़ने होंगे। सबसे पहले तो उन्हें अपनी ही पार्टी की रणनीति के जाल से बाहर निकलने की चुनौती होगी। साथ ही, गठबंधन के तहत चुनावी मैदान में होने से आम आदमी पार्टी का भी समर्थन जुटाना होगा।
इतना ही नहीं, जेएनयू में बनी छवि से भी बाहर निकलना होगा। इस बाधा के पार करने के बाद दो बार से सांसद चुने गए सांसद मनोज तिवारी चुनौती होंगे। फिर उन्हें बाहरी उम्मीदवार होने का भी खामियाजा उठाना होगा और वोटरों के बीच पहुंचकर आश्वासन देना होगा कि वह गठबंधन के तहत चुनावी मैदान में उतरे हैं। अल्पसंख्यक और दलितों को भी साधना होगा।
कन्हैया को जीत हासिल करने के लिए कई बाधाओं को पार करना होगा। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस की बैठक में ही आलाकमान के फैसले से पार्टी में नाखुशी स्पष्ट रूप से देखने को मिली। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस कार्यकर्ता किस तरह से उनके प्रचार में जुटते हैं, यह देखने वाली बात होगी। भाजपा सांसद मनोज तिवारी की पूर्वांचली वोटरों में गहरी पैठ है।