विकास कुमार
केदारनाथ धाम की महिमा अपरंपार है। केदारनाथ में देवों के देव महादेव विराजमान हैं, इसलिए यहां आने वाले भक्त की हर इच्छा पूरी हो जाती है। इस स्थान की महिमा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है और केदारनाथ से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है। महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृ हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे लेकिन शिव जी उन लोगों से रुष्ट थे।
वहीं केदारनाथ के दर्शनों के लिए बैशाखी बाद गर्मियों में इस मंदिर को खोला जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ सबसे ऊंचाई पर स्थित है। यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। भगवान शिव के यहां पर विराजमान होने की भी एक रोचक कथा है। जो भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालय के केदार श्रृंग पर नर-नारायण तपस्या कर रहे थे,उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उनको दर्शन दिए। उन दोनों ने भगवान शिव से केदार श्रृंग पर बसने का निवेदन किया। जिस पर भगवान शिव वहीं पर ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विराजमान हो गए।
भगवान केदारनाथ से जुड़ी दूसरी कथा है। पांडव महाभारत के युद्ध में अपने सगे-संबंधियों की हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए काशी पहुंचे,लेकिन उनसे नाराज भगवान शिव केदार आ गए। पांडव उनको खोजते हुए केदार तक पहुंच गए। इस पर महादेव बैल का रूप लेकर पशुओं में शामिल हो गए। पांडवों को इस बात का भान हो गया तो भीम ने विकाराल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए लेकिन भोलेनाथ नहीं गए। बैल रूपी भगवान शिव भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे तभी भीम उन पर झपट पड़े और पीठ को पकड़ लिया। पांडवों की इच्छाशक्ति और भक्ति देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और पांडवों को दर्शन दिए। भगवान शिव के दर्शन से पांडव पापमुक्त हो गए। तभी से बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में भगवान केदारनाथ की पूजा होती है।
केदारनाथ की महिमा की चर्चा देश दुनिया में होती है,भक्तों के बीच केदारनाथ की महिमा अपरंपार है।