भारतीय संविधान के प्रस्तावना की शुरुआत हम भारत के लोग से होती हैं। संविधान निर्मात्री समिति ने तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए हम भारत के लोग के मार्ग में आने वाले अवरोधों को हटाने के लिए एक निश्चित समयावधि में आरक्षण जैसे कुछ विशेष प्रावधानों की संस्तुति की थी, ताकि तय की गई समयावधि के अंदर ही देशभर से समस्त ऐसे अवरोधों को हटाकर भारत के समस्त लोगों को संविधान की प्रस्तावना के अनुसार सही मायने में हम भारत के लोग बना सकें ,जिनके बीच हर स्तर पर समानता हो और जो भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी,पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक। न्याय,विचार,अभिव्यक्ति, विश्वास ,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली बंधुता बढ़ाने वाले सिद्ध हो सकें।
लेकिन परवर्ती राजनीति में हर राजनीतिक दल के राजनेताओं ने संविधान निर्मात्री समिति की मूल अवधारणा में विकृति लाते हुए संविधान में वर्णित आरक्षण को अपनी पार्टी के हित में एक हथियार के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि देश में संविधान के लागू होने के 75 साल पूरा होने के बावजूद इस देश के नागरिक, संविधान में वर्णित हम भारत के लोग नहीं बन सके, बल्कि आज भी इन राजनेताओं की करतूत की वजह से ये विभिन्न जातियों, प्रजातियों, धर्म और पंथ के लोगों के रूप में इस देश मे एक जगह रहते हुए भी विचारों में अलग-अलग रह रहे हैं।
संविधान में वर्णित हम भारत के लोगों को विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, और ज्यादा दिनों तक बांटकर न रख सके ,इसके लिए जरूरी है कि हम भारत के लोग ,भारत के लोगों के समानता को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों की नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन करें और चुनाव में उन राजनीतिक दलों को सबक सिखाएं, जिनकी वजह से आजतक भारत के लोग संविधान की प्रस्तावना के अनुकूल हम भारत के लोग नहीं बन पाए और अलग – अलग जाति – पाति और धर्म – सम्प्रदायों में बंटे हुए हैं और जिससे हमारा देश कमजोर हो रहा है।
समानता को लेकर कांग्रेस पार्टी के विचारों का अध्ययन किया जाए तो यह पार्टी मूल रूप से जाति जनगणना और जाति की संख्या के आधार पर देश के नागरिकों को आरक्षण देने को लेकर प्रतिबद्ध है। साथ ही यह पार्टी आरक्षण के सुप्रीम कोर्ट के आधार ,50% आरक्षण और 50 % मेरिट को हटाकर 100% तक करने की बात करती है।ऐसे में जिन जातियों की संख्या ज्यादा रहेगी, सरकारी नौकरियों से लेकर विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उस जाति वर्ग के लोगों को मिल जाएगा और कम जनसंख्या वाले लोग योग्यता रहने के बावजूद उससे वंचित रह जाएंगे और इसके साथ ही धरी रह जाएगी,संविधान के हम भारत के लोग की परिकल्पना।
कांग्रेस से इतर भारतीय जनता पार्टी की समानता को लेकर विचारधारा का अध्ययन किया जाए तो यह प्रत्यक्ष तौर पर भले ही जाति- पाति या धर्म – संप्रदाय के नाम पर आरक्षण या विशेष सुविधा देने की संविधान से हटकर कोई बात नहीं करता है,लेकिन बटोगे तो कटोगे और एक रहोगे तो नेक रहोगे जैसे नारों के साथ मुसलमान के लिए किसी भी हालत में अलग से आरक्षण न देने की बात करती है।
समानता को लेकर देश की नवसृजित उदय भारतम् पार्टी की बात की जाय तो इसके सूत्र वाक्यों में एक सूत्र वाक्य समानता भारतम् है। इसके अनुसार यह भारत में समान अवसर सुनिश्चित करके और सभी भारतीयों के साथ उचित व्यवहार को बढ़ावा देकर असमानता के मुद्दों को संबोधित करता है, जिससे सामाजिक एकता और समृद्धि को बढ़ावा मिलता है। यह समानता , न्याय और पारस्परिक सम्मान का समर्थन करता है, जाति धर्म या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का दृढ़ता से विरोध करता है और उचित व्यवहार तथा संप्रभुता की वकालत करता है।
विश्व स्तर पर यह शांतिपूर्ण सह अस्तित्व पर जोर देते हुए संघर्ष पर संवाद और कूटनीति को प्रधानता देता है और गुटनिरपेक्षता तथा साझा मूल्यों पर आधारित सहयोग को बढ़ावा देता है। यह विचारधारा जलवायु परिवर्तन और गरीबी उन्मूलन जैसे गंभीर मुद्दों से निपटने में सहयोग के महत्व को पहचानती है तथा यह सभी देशों के बीच आपसी समझ को बढ़ाने के लिए समावेशी विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रयास करती है।