न्यूज डेस्क
विपक्षी एकता की अंतिम कहानी किस रूप में सामने आएगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन अभी जो अभियान शुरू हुआ है उसमे नीतीश कुमार की भूमिका अभी बड़ी रखी गई है ।कांग्रेस की जिम्मेदारी उन पार्टियों से बात करने की है जो अभी यूपीए के साथ है ।नीतीश कुमार इन दलों से बात करेंगे जो अभी यूपीए के हिस्सा तो नही है लेकिन बीजेपी के खिलाफ खड़े हैं । हालाकि दिल्ली की इस रणनीतिक बैठक में राजद के नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी शामिल थे। लेकिन वे पहले से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा हैं इसलिए आगे की राजनीति में उनकी कोई खास भूमिका नहीं होने वाली है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए से बाहर की कई पार्टिया हैं, जिसके नेता कांग्रेस से बात नहीं करना चाहते हैं। उनके बीच पुल का काम करेंगे नीतीश। अब देखना है कि नीतीश कुमार इस अभियान में कितने सफल होते हैं ।
जानकारी के मुताबिक नीतीश कुमार ने मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ बातचीत में अपनी तरफ से प्रस्ताव दिया है कि वे छह गैर यूपीए दलों से बात कर सकते हैं। इस बैठक में यह भी तय हुआ कि यूपीए के घटक दलों के साथ कांग्रेस खुद बात करेगी। यानी एनसीपी, जेएमएम, राजद, डीएमके, मुस्लिम लीग आदि पार्टियों से कांग्रेस बात करेगी। दूसरी ओर नीतीश कुमार तृणमूल नेता ममता बनर्जी, भारत राष्ट्र समिति के नेता के चंद्रशेखर राव, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से बात करेंगे।
इन चार भाजपा विरोधी दलों के अलावा वे भाजपा के साथ सद्भाव रखने वाली दो पार्टियों- बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस से भी बात करेंगे। ध्यान रहे पिछले दिनों डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने सामाजिक न्याय पर एक सम्मेलन किया था तो उसमें भी नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी को न्योता भेजा था लेकिन दोनों ने अपना प्रतिनिधि उस सम्मेलन में नहीं भेजा।
हालाकि नीतीश कुमार जहां रेड्डी और नवीन पटनायक से भी बात करेंगे ।खबर है कि बहुत जल्द ही नीतीश कुमार इस अभियान पर निकलेंगे ।जानकारी के मुताबिक इसी महीने के अंत में विपक्षी दलों की एक बैठक दिल्ली में भी होगी ।इससे पहले नीतीश कुमार सभी दलों से बात कर एकता की तैयारी करेंगे ।