अखिलेश अखिल
कोई नहीं जानता कि देश की राजनीति किधर जा रही है ? राहुल गाँधी के साथ जो हुआ वह तो अभी अपील का विषय है लेकिन जिस तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ऊपर गुजरात हाई कोर्ट ने 25 हजार का जुर्माना लगाया है वह बहुत कुछ कह रहा है। केजरीवाल की गलती यही है कि उन्होंने पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी गुजरात यूनिवर्सिटी से होते हुए गुजरात हाई कोर्ट से मांगी थी। वह भी सूचना के अधिकार के तहत। अगर किसी की डिग्री के बारे में सवाल उठाना अपराध है तो फिर देश के भीतर डिग्री की महत्ता क्यों है ? राजनीति करने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती लेकिन जब सामने वाला ही अपनी डिग्री का ढिंढोरा पीटने लगे और कोई उसे दिखाने की बात करे तो इसमें गलती क्या है ?
तो कहानी ये है कि गुजरात हाई कोर्ट ने आज केंद्रीय सूचना आयोग यानी सीआईसी के 2016 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पीएम मोदी के नाम पर डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। उन्होंने पीएम मोदी के डिग्री सर्टिफिकेट की डिटेल मांगी थी। सीएम केजरीवाल को ये रुपए गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करानी होगी।
प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री दिखाने की मांग वाली याचिका हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद अरविंद केजरीवाल की प्रतिक्रिया भी सामने आई। केजरीवाल ने ट्वीट किया, ”क्या देश को ये जानने का भी अधिकार नहीं है कि उनके पीएम कितना पढ़े हैं? कोर्ट में इन्होंने डिग्री दिखाए जाने का ज़बरदस्त विरोध किया। क्यों? और उनकी डिग्री देखने की मांग करने वालों पर जुर्माना लगा दिया जायेगा? ये क्या हो रहा है? अनपढ़ या कम पढ़े लिखे पीएम देश के लिए बेहद ख़तरनाक हैं।’
गौरतलब है कि केंद्रीय सूचना आयोग ने 2016 में दिल्ली और गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री की जानकारी उपलब्ध करवाए। केजरीवाल ने पीएम के डिग्री प्रमाण पत्र का विवरण मांगा था। वहीं प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक, उन्होंने 1978 में गुजरात विश्वविद्यालय से स्नातक और 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले महीने हुई सुनवाई में विश्वविद्यालय की ओर से पेश होकर तर्क दिया कि जब छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, तब भी विश्वविद्यालय को जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।