न्यूज डेस्क
जिस तरह से देश भर के विपक्षी नेताओं पर लगातार जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है उससे आम जनता के में में भी अब यह धारणा बैठ रही है कि बीजेपी विपक्षी नेताओं के खिलाफ कारवाई करके भ्रष्टाचार को एक मुद्दा बनाना चाहती है। बीजेपी इसी के जरिए अगले चुनाव में खेल करने को तैयार है। लेकिन क्या इससे बीजेपी को कोई बड़ा लाभ मिल सकता है ? यह बड़ा सवाल बीजेपी को भी घेरे हुए है।
इंडिया टुडे ने 2024 के चुनाव को लेकर एक सर्वे किया है। इसमें लोगों से देश की सबसे बड़ी समस्या के बारे में पूछा गया है। इस सर्वे में सबसे ज्यादा 24.7 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी को देश की सबसे बड़ी समस्या बताया है। नंबर-2 पर महंगाई थी जिसे 23.3 फीसदी ने सबसे बड़ी समस्या माना है। 6.2 प्रतिशत ने गरीबी को जबकि 5.5 प्रतिशत ने ही भ्रष्टाचार को समस्या माना है। सर्वे के नतीजे को देखें तो यही समझ में आता है कि अगर कोई पार्टी करप्शन को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ती है तो ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है।
इंडिया टुडे ने एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर भी लोगों से सवाल किया है। इसमें 44.2 प्रतिशत लोगों ने माना है कि बीजेपी सरकार दूसरी सरकारों के मुकाबले एजेंसियों का ज्यादा दुरुपपयोग कर रही है। इससे असहमत होने वालों की संख्या 41.4 फीसदी है। खास बात ये है कि अगस्त 2022 में सिर्फ 38 फीसदी लोग बीजेपी द्वारा एजेंसियों के दुरुपयोग की बात से सहमत थे और इसके विरोध में 40.9 प्रतिशत थे। यानी धीरे-धीरे एजेंसियों के एक्शन को लेकर बीजेपी को जिम्मेदार मानने वालों की संख्या बढ़ रही है।
बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी पिछले कई दिनों से एक्शन में है। शनिवार (11 मार्च) को बीआरएस नेता और तेलंगाना सीएम केसीआर की बेटी के कविता दिल्ली आबकारी घोटाले में ईडी के सामने पेश हुई हैं । इसके एक दिन पहले ही ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की रिमांड हासिल की है। 10 मार्च को ही ईडी के अधिकारी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और उनके परिवार के परिसरों में देर रात तक पूछताछ करते रहे और अब सीबीआई ने तेजस्वी यादव को भी पूछताछ के लिए बुला लिया है। लालू परिवार के खिलाफ रेलवे में नौकरी के बदले जमीन लेने के आरोपों की जांच चल रही है ।
अचानक से ईडी की सक्रियता से एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अभी भी भ्रष्टाचार एक राष्ट्रीय मुद्दा है? या फिर राजनीतिक स्कोर तय करने के लिए एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। पहले ईडी की कार्रवाई पर एक नजर डालते हैं और फिर एक सर्वे की रिपोर्ट के जरिए इस पूरे मामले को समझते हैं।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के राज में 54 फीसदी ईडी के मामले विपक्षी नेताओं के ऊपर थे जो बीजेपी नीत एनडीए के राज में बढ़कर 95 फीसदी पहुंच गए। सीबीआई केस की बात करें तो यूपीए के समय में विपक्षी नेताओं के खिलाफ सीबीआई केस का आंकड़ा 60 फीसदी थी जो एनडीए के राज में बढ़कर 95 फीसदी हो गई।
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के केस की बात करें तो यूपीए 2 (2009-2014) के दौरान ईडी ने 430 मामले दर्ज किए थे जो एनडीए 1 के दौर में 832 और एनडीए-2 के कार्यकाल में बढ़कर 2723 हो गए ।
यूपीए-2 के कार्यकाल में विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के तहत 2763 मामले दर्ज किए गए थे। एनडीए-1 के कार्यकाल में ईडी के द्वारा फेमा के तहत दर्ज मामलों की संख्या 17,710 पहुंच गई और एनडीए 2 में यह आकंड़ा 11,420 पहुंच गया।