अखिलेश अखिल
सालो भर चुनाव की तैयारी में जुटी बीजेपी का नया अभियान अब दक्षिण भारत को लेकर है। उत्तर पूर्व के तीन राज्यों में चुनावी सफलता के बाद बीजेपी अब दक्षिण में अपना पैर मजबूत करने की रणनीति बना रही है। यह रणनीति कर्नाटक चुनाव में अपनी वापसी को लेकर तो है ही ,तेलंगाना को भी फतह करने की रणनीति है। बीजेपी को लग रहा है कि कर्नाटक और तेलंगाना के चुनाव में पार्टी बेहतर करती है और सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो आगामी लोकसभा चुनाव में उसकी राह आसान हो जाएगी।
यह बात और है कि उत्तर पूर्व के तीन राज्यों में हुए चुनाव में बीजेपी सहयोगी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल दिख रही है लेकिन सच तो यही है कि त्रिपुरा को छोड़कर बाकी के दो राज्यों मेघालय और नागालैंड में उसका परफॉर्मेंस काफी कमजोर ही रहा है। मेघालय और नागालैंड में बीजेपी की सरकार नहीं बनेगी बल्कि सच तो यही है कि जिन स्थानीय पार्टियों की सरकार बनेगी उसमे बीजेपी जबरन अपनी सहभागिता जाता रही है। चुनाव से पहले बीजेपी इन सभी पार्टियों से लगभग अलग होकर ही मैदान में उतरी थी। मेघालय में तो साफ़ तौर पर एनपीपी पर इल्जाम लगाकर उसे बाहर किया गया था। लेकिन देश की मीडिया में यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि तीन राज्यों में बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही है। इसे आप नए एनडीए की सरकार तो कह ही सकते हैं लेकिन बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार कतई नहीं। यह भी स्पष्ट है कि इस तीन राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की राजनीति भी धराशायी हुई है और उसकी जमीन पहले से ज्यादा कमजोर भी हुई है। जिस कांग्रेस का पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में डंका बजता था अब वही पूर्वोत्तर कांग्रेस से दूर जा चुका है। भविष्य में भी कांग्रेस की राह यहां आसान नहीं होगी क्योंकि दर्जन भर से ज्यादा पार्टियां यहाँ पहुँच गई है और आने वाले समय में और भी पार्टियां यहां नर्तन करेंगी।
लेकिन बीजेपी का इकबाल अभी बरकरार है। यह इकबाल का ही फल है कि मेघालय और नागालैंड में बड़ी जीत एनपीपी और एनडीपीपी की होती है और नाम बीजेपी का होता है। मौजूदा राजनीति में यह सब बीजेपी के इकबाल को ही स्थापित करता है।
अब बीजेपी दक्षिण भारत पर नजर टिकाये हुए है। पार्टी के अधिकतर नेता कर्नाटक से लेकर तेलंगाना और तमिलनाडु से लेकर आंध्रा तक का दौरा कर रहे हैं। बीजेपी किसी भी सूरत में कर्नाटक में वापसी चाहती है तो तेलंगाना में केसीआर को कमजोर करना चाहती है। कर्नाटक में अभी बीजेपी की सरकार है लेकिन इस बार कांग्रेस से उसे बड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। कर्नाटक अगर बीजेपी के लिए अहम है तो कांग्रेस के लिए भी कम अहम् नहीं। कांग्रेस अगर कर्नाटक में कोई कमाल नहीं कर पाती है तो दक्षिण की राजनीति उसके लिए ख़त्म हो सकती है इसके साथ ही बीजेपी को अगले लोकसभा चुनाव में टक्कर देना कठिन भी हो जाएगा।
कर्नाटक संघ और बीजेपी का गढ़ तो है ही हिंदुत्व का भी नया अखाड़ा है। कांग्रेस इस अखाड़े को कैसे मात देगी ,बड़ा सवाल है। अब वहाँ आप जैसी पार्टी भी चुनाव लड़ने जा रही है ऐसे में इस बात की संभावना ज्यादा है कि इस लड़ाई में बीजेपी को लाभ मिल सकता है।
उधर बीजेपी की लड़ाई तेलंगाना में भी दिलचस्प है। बीजेपी किसी भी सूरत में केसीआर को हराना चाहती है। बीजेपी के पास अभी वहाँ कुछ भी नहीं है। केसीआर की मजबूत राजनीति बीजेपी को आगे बढ़ने नहीं देती। केसीआर की असली लड़ाई कांग्रेस के साथ ही है लेकिन कांग्रेस के पास अभी भी संगठन का अभाव है। इसी का लाभ बीजेपी वहाँ लेना चाहती है। अब देखना है कि केसीआर को बीजेपी कितना कमजोर कर पाती है। तेलंगाना में अभी बीजेपी के सांसद तो है लेकिन विधान सभा में उसके कोई विधायक नहीं है।
बीजेपी आंध्रा में भी पैर फैला रही है लेकिन जगन रेड्डी और चंद्र बाबू नायडू की राजनीति में उसे कोई स्पेस नहीं मिल रहा है। लेकिन उसकी कोशिश है कि उसकी उपस्थिति वहाँ बने। इसके लिए ग्रासरूट पर कई कार्यक्रम बीजेपी चला भी रही है। बीजेपी तमिलनाडु में भी अपनी उपस्थिति बना रही है। अन्नाद्रमुक की कमजोरी का लाभ बीजेपी उठाना चाहती है और पार्टी में कई ऐसे नेता अभी शामिल हुए है जो बीजेपी के लिए रामबाण साबित भी हो सकते हैं लेकिन तमिलनाडु को भेदना अभी भी बीजेपी के लिए मुश्किल ही है।