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पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव परिणाम पर आगे की राजनीति तय होगी !

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अखिलेश अखिल
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा,मेघालय और नागालैंड के चुनाव संपन्न हो गए और इन चुनाव से जुड़े एग्जिट पोल भी सामने आ गए हैं। सभी एग्जिट पोल तो यही बता रहे हैं कि त्रिपुरा और नागालैंड में सत्तारूढ़ बीजेपी की फिर से वापसी हो रही है और मेघालय की विधान सभा हंग हो सकती है लेकिन सबसे बड़े दल के रूप में मेघायल की एनपीपी पार्टी उभर सकती है। एग्जिट पोल यह भी बता रहा है कि इन तीनो राज्यों में कांग्रेस की हालत काफी ख़राब है। कांग्रेस से आगे टीएमसी निकटि दिख रही है। चुनाव परिणाम 2 मार्च को आएंगे।

एग्जिट पोल में जो भी कहा गया है ऐसा हो भी सकता है। क्योंकि एग्जिट पोल को सिरे से तो नहीं नकारा जा सकता। एग्जिट पोल को माने तो कांग्रेस इन राज्यों में कुछ कर नहीं पायी जबकि पार्टी के कई नेता चुनावी मैदान में उतरे थे ,खूब भाषण दिए थे ,कई लुभावने वादे जनता के सामने रखे थे। जाहिर है एग्जिट पोल के मुताबिक़ ही परिणाम आते हैं तो कांग्रेस के लिए सोंचने की बात होगी। अभी जब दो दिन पहले ही पार्टी ने अपना रायपुर अधिवेशन को ख़त्म किया है और उसमे पार्टी को लेकर कई तरह के बदलाव की बाते हुई है और साथ ही विपक्ष को साथ लेकर आगे की चुनावी रणनीति का ऐलान हुआ है ,ऐसे में पूर्वोत्तर राज्य के विपरीत परिणाम कांग्रेस के लिए किसी धक्का से कम नहीं।

यहां बता दें कि त्रिपुरा और नागालैंड से वैसे भी कांग्रेस को कोई बड़ी संभावना तो नहीं थी लेकिन फिर भी वाम दलों के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया था। अगर एग्जिट पोल को माने तो त्रिपुरा की जनता ने इस गठबंधन को नकार दिया है। परिणाम अगर इसी तरह के आते हैं तो फिर कांग्रेस और वाम दलों के संभावित अगले गठबंधन पर भी इसके असर पड़ सकते हैं। संभव है कि खड़गे से लेकर राहुल गाँधी पर कई तरह की बातें कही जा सकती है। लेकिन इसका सबसे बड़ा असर अगले संभावित विपक्षी एकता पर होगा।

जहां तक नागालैंड की कहानी है, वहाँ हमेशा स्थानीय दल का ही जनता पर असर रहा है। बीजेपी की जबसे इस राज्य में इंट्री हुई है बीजेपी के सहयोग से स्थानीय दल मिलकर सरकार बनाएगी इसकी संभावना पहले से ही लगाईं जा रही थी। लेकिन उम्मीद की जा रही थी इस बार के चुनाव में कांग्रेस कुछ बेहतर कर सकती है जो एग्जिट पोल के मुताबिक़ नहीं लग रहा।

मेघालय में मतदान और उसके बाद जारी एग्जिट पोल में सरकार बनाने को लेकर मामला फंस गया है। एग्जिट पोल में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने का दावा किया गया है। हालांकि, एनपीपी यहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती दिख रही है। इस बीच मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने गठबंधन बनाने के संकेत दिए हैं।

संगमा ने कहा कि वह स्थिर सरकार बनाने के लिए सभी विकल्प खुले रखेंगे। उन्होंने कहा, हम एक स्थिर सरकार बनाने के लिए अपने सभी विकल्प खुले रखेंगे। हम यह देखकर खुश हैं कि रुझान हमारे पक्ष में हैं, क्योंकि हमें पिछली बार की तुलना में अधिक सीटें मिलने की उम्मीद थी। उन्होंने कहा, राज्य में एक स्थिर सरकार बनाने के लिए राज्य के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाएगा। बता दें, पिछली बार संगमा ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। इसके बावजूद दोनों पार्टियों ने अगल-अगल चुनाव लड़ा है।

मेघालय में भाजपा, कांग्रेस, एनपीपी और तृणमूल कांग्रेस समेत इस बार 13 राजनीतिक दल मैदान में हैं। कुल 375 उम्मीदवार चुनावी मैदान में है। इनमें 36 महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं। मेघालय चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने 60-60 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 56 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसके अलावा सीएम कोनराड के. संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी ने 57 उम्मीदवारों, यूडीपी ने 46, एचएसपीडीपी ने 11, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ने 9, गण सुरक्षा पार्टी ने एक, गारो नेशनल काउंसिल ने दो, जनता दल (यूनाइटेड) ने तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। एक सीट पर एक प्रत्याशी के निधन के चलते अभी 59 सीटों पर ही मतदान हुआ है। ऐसे में नतीजे भी  इन्हीं 59 सीटों के आएंगे। बची हुई सीट पर बाद में उपचुनाव होगा।

मेघालय 60 सदस्यीय विधानसभा सीटों वाला राज्य है। यहां सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी के पास कम से कम 31 सीटें जीतनी होती हैं। पिछले चुनाव में यहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस के 21 उम्मीवारों ने जीत हासिल की थी, तो एनपीपी के 20 प्रत्याशी जीते थे। हालांकि, सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी कांग्रेस को सत्ता से बाहर रहना पड़ा था। भाजपा समेत कुछ अन्य दलों ने एनपीपी को समर्थन दे दिया और सरकार बनवा दी।

अभी भी कांग्रेस को मेघालय से उम्मीद है। अगर एग्जिट पोल सही साबित होता है तो कांग्रेस एनपीपी के साथ गठजोड़ कर सकती है। हालांकि एनपीपी के सामने टीएमसी भी है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अगर इन तीन राज्यों में कांग्रेस के पक्ष में परिणाम नहीं आते हैं तो आगामी चुनाव और विपक्षी एकता की कहानी में कांग्रेस कोई ज्यादा बार्गेन करने की हालत में नहीं होगी।

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