न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने शादी की न्यूनतम आयु महिला-पुरुष दोनों के लिए समान करने की मांग वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि कानून में संशोधन करना संसद के क्षेत्राधिकार में आता है। कोर्ट संसद को कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकता। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार को वकील अश्वनी कुमार उपााध्याय की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि याचिका में महिलाओं के लिए शादी की तय 18 वर्ष की न्यूनतम आयु को रद्द करने की मांग की गयी है।
कहा गया है कि महिला और पुरुष दोनों के लिए शादी की न्यूनतम आयु समान की जाए। महिलाओं के लिए शादी की तय 18 वर्ष की न्यूनतम आयु के प्राविधान को रद्द करने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा। ऐसा करने से महिलाओं के लिए शादी की कोई न्यूनतम आयु नहीं रहेगी। पांच साल की बच्ची की भी शादी हो जाएगी। महिला और पुरुष दोनों की शादी की नयूनतम आयु समान करने का आदेश देना कानून में संशोधन होगा। कोर्ट कानून संशोधित नहीं कर सकता। यह काम संसद का है। कोर्ट संसद को कानून संशोधित करने का आदेश नहीं दे सकता है।
जब याचिकाकर्ता ने लिंग आधारित समानता और कोर्ट के संविधान का संरक्षक होने की दुहाई दी तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि सिर्फ कोर्ट ही संविधान का संरक्षक है। संसद भी बराबरी की संविधान रंरक्षक है। अगर संसद को लगता है तो संसद कानून संशोधिति करेगी। कोर्ट उसे आदेश नहीं दे सकता। उपाध्याय ने कोर्ट में कहा कि यह स्थानांतरण याचिका है। इसमें हाई कोर्ट में लंबित मामला सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करनेकी मांग की गई थी। केस हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित कर लिया गया है। अब सरकार का जवाब आने दिया जाए। तब तक के लिए सुनवाई टाल दी जाए। लेकिन कोर्ट सुनवाई टालने को राजी नहीं हुआ। तब उपाध्याय ने कहा कि केंद्र सरकार ने लड़की की शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष से बढ़ा कर 21 वर्ष करने पर विचार के लिए जया जेटली की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी।
कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद संसद में इस बारे में विधेयक भी पेश हुआ,जो अभी स्थायी समिति के समक्ष विचाराधीन है। पीठ ने कहा कि याचिका में मांगी गयी राहत कोर्ट नहीं दे सकता। याचिका खारिज होने पर उपाध्याय ने कहा कि ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने का क्या मतलब हुआ? हाई कोर्ट में ही सुनवाई होती रहती।