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 हार्ट का आपके ब्रेन से होता है सीधा कनेक्शन,कमजोर हुआ दिल तो होने लगेगी यह दिक्कत

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दिल और दिमाग इंसान के शरीर के दो सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं। हम सब जानते हैं कि दिमाग सोचने का काम करता है और दिल खून पंप करने का, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों के बीच गहरा रिश्ता है? आपका दिल और दिमाग एक-दूसरे से सीधा जुड़ा हुआ है और जब दिल कमजोर होता है, तो इसका असर सीधा आपके सोचने, याद रखने और समझने की क्षमता पर पड़ता है।चलिए आपको बताते हैं कि कैसे दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन के अनुसार, जब आप दौड़ने या किसी शारीरिक गतिविधि में शामिल होते हैं, तो आपका दिमाग आपके दिल को सिग्नल भेजता है कि उसे तेज़ी से धड़कना है, ताकि शरीर को ज्यादा ऑक्सीजन और ऊर्जा मिल सके।यह प्रक्रिया आपके ऑटोमैटिक नर्वस सिस्टम के ज़रिए होती है, यानी शरीर का वो हिस्सा जो बिना सोचे-समझे सांस लेने, पसीना आने और दिल की धड़कन को नियंत्रित करता है।इस सिस्टम का एक अहम हिस्सा है वेगस नर्व, जो गर्दन के दोनों ओर से गुजरती है।यह नस दिमाग और दिल के बीच मैसेंजर का काम करती है। दिमाग को बताती है कि दिल कितना काम कर रहा है, और दिल को आदेश देती है कि कब तेज या धीमा धड़कना है।

रिसर्च से पता चला है कि जो लोग नियमित रूप से एक्सरसाइज करते हैं, उनका दिमाग और दिल के बीच का तालमेल ज्यादा प्रभावी होता है।जब हम फिट रहते हैं, तो हमारा ऑटोमैटिक नर्वस सिस्टम बेहतर काम करता है। दिमाग और दिल के बीच कम्युनिकेशन तेज रहता है।लेकिन जब दिल बीमार होता है या हार्ट डिजीज होती है, तो यही सिस्टम सुस्त पड़ जाता है, जिससे दिल को शरीर की जरूरतों का जवाब देने में दिक्कत होती है।

दिल सिर्फ खून नहीं पंप करता, बल्कि दिमाग को ऑक्सीजन और ग्लूकोज भी पहुंचाता है।जब दिल की पंपिंग कमजोर हो जाती है, तो दिमाग तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंचती। इससे व्यक्ति की याददाश्त, सोचने और निर्णय लेने की क्षमता घटने लगती है।लंबे समय तक हार्ट फेल्योर वाले मरीजों में अक्सर ध्यान की कमी, थकान और ब्रेन फॉग जैसी समस्या देखने को मिलती है।

अत्यधिक इमोश्नल या मानसिक तनाव भी दिल पर असर डाल सकता है।इसे ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम कहा जाता है।इस स्थिति में व्यक्ति को अचानक सीने में दर्द या सांस लेने में दिक्कत होती है, जो हार्ट अटैक जैसी लगती है। दरअसल यह तनाव के कारण दिल की पंपिंग में अस्थायी गड़बड़ी होती है।मेयो क्लिनिक की रिसर्च बताती है कि एक नई तकनीक मेग्नेटोकार्डियोग्राफी से इस सिंड्रोम की पहचान अब पहले से ज्यादा आसानी से हो सकती है।

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