हर साल देश में एक बड़ी आबादी लिवर की समस्या से जूझती रही है, जिन्हें लिवर सिरोसिस, हेपेटाइटिस, लिवर फेल्योर और कैंसर जैसी दिक्कतें हैं।इन मरीजों को जब दवाओं या अन्य तरीके से राहत नहीं मिलती, तो डॉक्टर लिवर ट्रांसप्लांट करने की सलाह देते हैं। ऐसे में आम लोगों के बीच हमेशा से एक सवाल रहता है कि क्या लिवर ट्रांसप्लांट में मरीज को पूरा लिवर लगाया जाता है या फिर आधा लिवर।
आपको बताते चलें कि लिवर ही हमारे शरीर का वह अंग है, जो खुद को रीजेनरेट यानी दोबारा विकसित कर सकता है।यही कारण है कि मरीज को पूरा लिवर नहीं लगाया जाता है।इसमें दो प्रोसेस होते हैं।पहला है लिविंग डोनर। इसमें आमतौर पर डोनर के लिवर का सिर्फ 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा निकाला जाता है और मरीज को ट्रांसप्लांट किया जाता है।कुछ ही महीनों के बाद दोनों का लिवर शेप ले लेता है।दूसरा प्रोसेस है कैडेवरिक डोनर का यानी मृत व्यक्ति के लिवर को पूरा भी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है, लेकिन इसे दो हिस्सों में भी बांटकर अलग-अलग मरीजों में लगाया जा सकता है।
भारत में एक कानून है Transplantation of Human Organs and Tissues Act, 1994 (THOTA Act)।इसके अनुसार, जीवित डोनर केवल करीबी रिश्तेदार ही हो सकते हैं जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे, पति-पत्नी. इनके अलावा अगर कोई लिवर देता है, तो उसको अनुमति की जरूरत होती है।लिवर लेने के लिए पहले मरीजों की जांच की जाती है। पहले मरीज के खून की जांच, इमेजिंग, लिवर फंक्शन टेस्ट और फुल बॉडी की जांच की जाती है।लिवर को लगाने के लिए सर्जरी की जाती है, जिसमें डोनर से लिवर का हिस्सा निकालकर मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है।
सर्जरी 8 से 12 घंटे तक चल सकती है और ICU में निगरानी की जरूरत होती है।इसके बाद डोनर आमतौर पर 10 से 15 दिनों में सामान्य जीवन में लौट सकता है और मरीज को 3 से 6 महीने तक दवाइयों और नियमित जांच की जरूरत होती है।अगर बात करें कि इसके लिए कितने पैसे लगते हैं तो लीवर ट्रांसप्लांट के लिए औसतन 12 से 21 लाख रुपये तक एक नॉर्मल फीस ली जाती है।हालांकि स्थान और चिकित्सक के अनुसार यह घट – बढ़ भी सकती है।
