डायनासोर का नाम तो आपने सुना होगा।उसी की बिरादरी का या कहिए कि उसका रिश्तेदार था टेरोसोर, जो उड़ सकता था। काफी समय पहले डायनासोर के साथ उसका भी धरती से पतन हो गया और आज तक रहस्य बना हुआ है। अब जर्मनी में मिले टेरोसोर के जीवाश्मों से रिसर्चरों ने पता लगा लिया है कि करीब 15 करोड़ साल पहले उनकी प्रजाति के सैकड़ों जीवों का दुखद अंत कैसे हुआ था।जी हां, जो जीवाश्म मिले हैं वो दो युवा टोरोसोर के टूटे हुए पंख हैं।उन्हीं से सारी कहानी पता चली है।
इन जीवाश्मों को ‘लकी I’ और ‘लकी II’ नाम दिया गया है। इसे अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है। इन जीवाश्मों के विश्लेषण से पता चला कि हर युवा टेरोसोर की ह्यूमरस हड्डी (जिससे पंख और कंधे जुड़े होते हैं) तिरछे कोण पर स्पष्ट रूप से टूटी हुई थी। इससे संकेत मिलता है कि उनकी भुजाएं किसी शक्तिशाली मोशन में तेजी से मुड़कर टूटी होंगी। इंग्लैंड के लीसेस्टर विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानी रॉबर्ट स्मिथ और उनकी टीम का कहना है कि संभवतः यह एक प्रचंड तूफान रहा होगा, जो इन युवा जीवों के लिए बहुत खतरनाक साबित हुआ।अभी धरती पर चक्रवाती तूफान मकान, गाड़ी भी उड़ा ले जाते हैं।यह उससे भी विनाशकारी रहा होगा।
टेरोसोर के विनाश का रहस्य करीब 15 करोड़ साल पहले की बात है।उस समय जर्मनी का ज्यादातर हिस्सा आज की तरह नहीं था। तब यह एक गर्म और समुद्री पानी वाला क्षेत्र हुआ करता था।कोरल रीफ ने कुछ हिस्सों को मोटी, मुलायम, कार्बोनेट मिट्टी वाली तली जैसे कई लैगून में बदल दिया था।उसी कीचड़ में टेरोसोर जैसे उड़ने वाले जीवों का जीवाश्म भी सुरक्षित रहा।
ऐसा ही एक लैगून अब चूने पत्थर की खदान है जो जुरासिक काल (14.5 करोड़ साल) के जीवाश्मों से भरी है। इसमें छोटे डायनासोर भी हैं। सोलनहोफेन लाइमस्टोन के नाम से जाना जाने वाला यह प्राचीन कब्रिस्तान टेरोसोर के जीवाश्मों से भरा है, जो ज्यादातर युवा जीवों के हैं. ये जीवाश्म शोधकर्ताओं को टेरोसोर के विकास, पुरापाषाण पारिस्थितिकी और वे कब और कैसे उड़ सकते थे, इसे बेहतर ढंग से समझने में मदद कर रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि इस जगह पर वयस्क टेरोसोर के जीवाश्म टुकड़ों में पाए जाते हैं जबकि युवा टेरोसोर के सैंपल पूरे मिलते हैं। यह विरोधाभासी है क्योंकि शिशुओं के कंकाल बुजुर्ग जीवों की तुलना में और ज्यादा नाजुक होने चाहिये शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रचंड तूफान इस रहस्य को समझा सकते हैं।टीम का मानना है कि हो सकता है युवा टेरोसोर हवा की उल्टी दिशा में संघर्ष करते हुए आखिर में लैगून में गिर गए होंगे, जहां वे डूब गए और तल में दब गए।
उधर, बुजुर्ग टेरोसोर ने तूफानों से बचने और लैगून में दम तोड़ने से पहले काफी संघर्ष किया होगा। उनके अवशेष डूबने से पहले पानी में इधर-उधर उछले होंगे जिससे हड्डियां बिखरी हुई होंगी।शोधकर्ताओं की यह रिपोर्ट ‘करंट बायोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित हुई है।
