आज के डिजिटल युग में जब हर चीज इंटरनेट से जुड़ी है, तो एक बड़ा सवाल अक्सर उठता है – क्या मिसाइलें भी हैक हो सकती हैं? इस सवाल का जवाब तकनीकी रूप से हां है, लेकिन हकीकत में ऐसा करना बेहद कठिन और लगभग नामुमकिन जैसा होता है।आइए समझते हैं क्यों।
मिसाइलें एक बेहद जटिल और सुरक्षित टेक्नोलॉजी पर आधारित होती हैं।इनका संचालन हाई-ग्रेड मिलिट्री सॉफ्टवेयर और एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल से किया जाता है।ज्यादातर मिसाइल सिस्टम air-gapped होते हैं, यानी ये किसी भी पब्लिक इंटरनेट नेटवर्क से जुड़े नहीं होते।इसका मतलब है कि इन्हें दूर बैठकर हैक करना लगभग असंभव होता है।
Air-gapped सिस्टम वो होते हैं जो किसी भी तरह की वायरलेस या ऑनलाइन कनेक्टिविटी से पूरी तरह अलग रहते हैं।मिसाइल कंट्रोल यूनिट्स में इस तरह के सुरक्षा उपाय लागू होते हैं ताकि बाहरी दुनिया से कोई छेड़छाड़ न हो सके। इसके अलावा, इन सिस्टम्स में multi-layered firewalls, hardware-level encryption, और manualauthorizationprotocols जैसे फीचर्स होते हैं।
अब तक दुनिया में ऐसा कोई पुख्ता उदाहरण नहीं मिला है जिसमें किसी देश की मिसाइल को पूरी तरह से हैक करके उसकी दिशा या कमांड बदली गई हो। हालांकि, साइबर वॉरफेयर में सैटेलाइट सिस्टम, रडार और कम्युनिकेशन चैनल्स को टारगेट करने के मामले सामने आ चुके हैं।लेकिन मिसाइल की कोर टेक्नोलॉजी तक पहुंचना अभी भी काफी कठिन है।
AI और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों के आने से साइबर हमलों की क्षमता जरूर बढ़ी है। अगर कोई सिस्टम फिजिकल ऐक्सेस या अंदरूनी लीक के जरिये खतरे में पड़ता है, तो हैकिंग संभव हो सकती है। इसलिए हर देश अपनी डिफेंस टेक्नोलॉजी को लगातार अपडेट करता रहता है।
मिसाइल को हैक करना तकनीकी रूप से संभव जरूर है, लेकिन इतनी मजबूत सुरक्षा व्यवस्था के चलते यह लगभग असंभव और अत्यंत जोखिम भरा कार्य है।हालांकि, आने वाले समय में साइबर सुरक्षा को और मजबूत करना देशों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।