शिव,ब्रह्मा और विष्णु के तेज के साथ अन्य देवताओं के तेज से उत्पन्न ,विविध आयुधों से संपन्न सिंह वाहिनी माता दुर्गा सर्वशक्तिशालिनि थीं,इसके बावजूद महिषासुर का वध करने में उन्हें 10 दिन लग गए। इस दौरान महिषासुर कभी भयंकर असुर के रूप धारणकर जगत का संहार करता तो कभी क्रोधमत्त भयानक महिष रूप धरकर भयानक हुंकार से दशों दिशाओं को प्रकंपित करते हुए प्रलय मचाता। लेकिन किसी खास कारण की वजह से मां दुर्गा सर्वसमर्थ होते भी अपने हाथ को रोक लेती थीं।आइए जानते हैं कि मां दुर्गा महिषासुर का वध करने से क्यों हिचक रही थी और उसके वध के पूर्व उन्हें क्यों करना पड़ा मधुपान ?
कालिका पुराण के अनुसार आज से कई हजार वर्ष पूर्व महिषासुर के पिता रंभाभासुर ने पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से उत्तराखंड के सघन जंगल में घोर तपस्या करनी प्रारंभ की। वहीं दूसरी तरफ अति दयालु भगवान शंकर बहुत दिनों से भगवान विष्णु को भगवती महामाया के सिंह स्वरूप वहन कार्य करते देख,उन्हें इस वहन कार्य से मुक्त करने की इच्छा से वहन कार्य के लिए एक दूसरे शेर की तलाश में उसी जंगल में गए,जहां रंभासुर भगवान शंकर की तपस्या में लीन था। इसकी घोर तपस्या से अति प्रसन्न भगवान शंकर उसे देख उसे वर देने को उद्यत हुए और बोले भक्ति तुम पर मैं प्रसन्न हूं ।तुम अपने अभिलषित वर्ग को मांग लो।शंकर जी के बार-बार कहने पर भी ध्यानसागर में निमग्न रम्भासुर ने अपने नेत्रपट नहीं खोले। तब अंत में भगवान शंकर अपने सच्चे रूपों से उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें आश्वासन दिया ।तब रम्भासुर ने अपने नेत्र पट खोलकर उनसे यह कहते हुए अपने अभिलषित वर को मांगा।
अपुत्रोsहम महादेव,यदि ते मयूनुग्रह:,। मम जन्मत्रये पुत्रो भवान भवति शंकर:।।
अवध्य: सर्वभूतानां जेता त्रिदिवोकसाम।
चिरायुष्यच यशस्वी च लक्ष्मीवान सत्यशंकर:।।
अर्थात हे महादेव यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो तीन जन्म तक आप मेरे पुत्र होवें,जो कि प्राणिमात्र से न मरने वाला, देवताओं को जीतने वाला, यशस्वी, दीर्घायु ,श्रीमान एवं दृढ़ प्रतिज्ञ हो। शिव के द्वारा एवं , एवमस्तु कहने पर रम्भासुर ने अपने आसुरी स्वभाव के कारण कामोन्मत होकर रास्ते में ही एक महिषी के साथ रमन किया,जिसके परिणाम स्वरूप भगवान शंकर को महिषासुर के रूप में आविर्भुत होना पड़ा।
यही कारण था कि जब-जब मां दुर्गा महिषासुर को करने के लिए उद्यत होती, तब तब महिषासुर में समाहित भगवान शिव के अंश को देखकर वह विचलित हो जाती। ऐसे में उन्होंने निर्णय लिया कि वे जगत कल्याणनार्थ मधुपान कर मदोन्मत हो जाएगी ,जिसके फलस्वरूप उसे शिवांश का दर्शन नहीं होगा और वे महिषासुर का वध कर देंगी। फिर उन्होंने मधुपान कर महिषासुर का अंत कर दिया। देवी के हाथों महिषासुर का अंत देखकर देवताओं ने उनके ऊपर पुष्प वर्षा करते हुए स्तुति की।