अखिलेश अखिल
जिस तरह से हिंडेनवर्ग रिपोर्ट के बाद देश की सबसे धनी कंपनी लगातार गोता खा रही है ,अगर यही हाल किसी दूसरे देश में किसी कंपनी के साथ घटित हुई होती तो आज सत्ता सरकार उस पर जांच बैठाती और सच को उजागर करती। लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। चारो तरफ सन्नाटा पसरा है। देश भगत जन को इससे कोई मतलब नहीं क्यों कि उन्हें मतलब है कि जो बोले वह सही। बाकी सब झूठ।
जिस दिन अडानी के शेयर गोते खा रहे हैं थे और दुनिया के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति की सूची में शुमार अडानी लुढकर सातवे स्थान पर जा रहे थे उस दिन भारत की सरकार किसान निधि की अगली किश्त जारी करने की बात कर रही थी। और उसके एक दिन बाद राष्ट्रपति भवन स्थित मुग़ल गार्डन बदल कर अमृत उद्यान करने की दुदुम्भी बजायी जा रही थी। देश को अधिकतर लोगों की नजर सरकार से मिलने वाली दो हजार की सहयोग राशि पर टिकी रही तो भगत जन और कथित धर्मांध लोगो को लग रहा था कि चलो मुग़ल गार्डन का नाम तो बदल गया। फिर शाम को एक खबर आयी कि मुग़ल गार्डन वाली साइन कैसे बुलडोजर से हटाया जा रहा है। मानो यह सब स्क्रिप्टेड हो।
लेकिन अडानी के साथ क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है और सबसे बड़ी बात कि जो इल्जाम अडानी की कंपनी पर हिंडनवर्ग रिपोर्ट में लगाए गए हैं उस पर सरकार ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। किसी जांच की बात तो कतई सामने नहीं आयी। कल्पना कीजिए अगर ऐसा ही कुछ देश के अन्य कारोबारियों पर रिपोर्ट आयी होती या फिर विपक्ष से जुड़े किसी कारोबारी के बारे में रिपोर्ट आयी होती तो क्या यह सरकार चुप बैठती ? सच तो यही है कि अब तक न जाने जांच कितनी जांच एजेंसियां बैठ गई होती। सेबी ,सीबीआई ,ईडी से लेकर इनकम टैक्स वाले अभी तक उस कंपनी के मालिक का कचूमर निकाल चुके होते। अगर कोई नेता ऐसा होता तो अभी जेल के सलाखों में बंद होता और देशद्रोही करार कर दिया गया होता। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। सब जगह सन्नाटा पसरा है। याद रहे अडानी ग्रुप पर सरकारी बैंकों का सबसे ज्यादा कर्ज है। बैंक से कर्ज लेकर ही अडानी ग्रुप अभी तक आगे बढ़ा है। बिना पूंजी का रोजगार। इधर पिछले तीन दिनों में अडानी ग्रुप ने शेयर बाजार में करीब साढ़े चार लाख करोड़ खोया है। कहा जा रहा है कि करीब 23 हजार करोड़ का नुक्सान एलआईसी को भी हुआ है। एलआईसी ने बड़े स्तर पर अडानी के शेयर खरीद रखे हैं। ये जनता के पैसे हैं। कंपनी गई तो एलआईसी कहाँ जाएगी ,कौन बताये।
देश के लोगों में अडानी को लेकर जब आशंका हुई और सवाल उठे कि एसबीआई के कर्ज का क्या होगा तो बैंक की तरफ से एक बयान सामने आ गया। यह बयान चौंकाता है। अडानी ग्रुप को लेकर आई एक रिपोर्ट के बाद उठे विवाद के बीच देश के सबसे बड़े कर्जदाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि वो ग्रुप को बांटे गए लोन को लेकर कोई चिंता नहीं कर रहे हैं। स्टेट बैंक के कॉर्पोरेट बैंकिंग के एमडी स्वामीनाथन जे ने सीएनबीसी टीवी 18 के साथ खास बातचीत में कहा कि फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं है जिसकी वजह से अडानी ग्रुप को दिए गए कर्ज को लेकर चिंता करनी पड़े। वहीं उन्होने साफ किया कि ग्रुप को एसबीआई से मिला कर्ज रिजर्व बैंक की सीमा के अंदर ही है और उसको सुरक्षित रखने के लिए नियमों के मुताबिक सभी जरूरी उपाय पहले से ही किए जा चुके हैं।
एमडी ने कहा कि बैंक नीतियों के मुताबिक किसी एक क्लाइंट पर कमेंट नहीं करता हालांकि मौजूदा स्थितियों को देखते हुए हम साफ करना चाहते हैं कि एसबीआई का अडानी ग्रुप में एक्सपोज़र रिजर्व बैंक के लार्ज एक्सपोजर फ्रेमवर्क सीमा से काफी नीचे है। वहीं सभी कर्ज आय उत्पन्न कर रहे एसेट्स के जरिए सिक्योर्ड हैं। ऐसे में कर्ज को चुकाने को लेकर बैंक कोई चिंता नहीं कर रहा है। उन्होने कहा कि वास्तव में भारतीय बैंकिंग सिस्टम का ग्रुप में एक्सपोजर पिछले 2-3 साल में लगातार घट रहा है। इसी के साथ डेट टू एबिटडा रेश्यो में सुधार हो रहा है ऐसे में पूरी उम्मीद है कि ग्रुप कर्ज से जुड़ी शर्तें आसानी से पूरा कर लेगा। वहीं उन्होने कहा कि बैंक नियमों के मुताबिक समय समय पर अपने बड़े कर्जदारों के बकाया का रीव्यू करता रहता है और फिलहाल ग्रुप को लेकर कोई चिंता सामने नहीं आई है।
सवाल है कि क्या बैंक का यही रवैया देश के आम नागरिको के साथ होता है ? क्या बैंक यही व्यवहार उन किसानो के साथ करता है जो मामूली कर्ज के लिए अपनी जान तक गवा बैठते है। इस पर देश के लोगों को सोंचना जरुरी है। लेकिन एक सच ये भी है कि बैंक का इसमें कोई दोष नहीं। जब सरकार ही चाहती है कि अडानी को किसी भी तरह मदद करनी है।
हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट ने भारतीय शेयर बाजार और अडानी ग्रुप की हालत खराब कर दी है। पहले बुधवार और फिर शुक्रवार को शेयर बाजार में आई गिरावट ने दुनिया में तीसरे नंबर के सबसे अमीर गौतम अडानी को सातवें नंबर पर धकेल दिया। इस रिपोर्ट ने दो दिन के अंदर भारत के सबसे दौलतमंद शख्स की कंपनियों के 4 लाख 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा साफ कर दिये। इस रिपोर्ट का ही असर रहा कि अडानी की कंपनियों के शेयर धूल चाटने लगे।
लेकिन असली सवाल यह नहीं है कि अडानी वर्वादी के कगार पर हैं। असली बात तो ये है कि अडानी पर रिपोर्ट में जो सवाल उठाये गए हैं उस पर सरकार क्या करती है ?हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में बताया गया कि ‘दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स ने कैसे कॉरपोरेट इंडस्ट्री की सबसे बड़ी धोखाधड़ी को अंजाम दिया?’ रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर धोखाधड़ी करके कंपनियों की मार्केट वैल्यू को मैन्युपुलेट करने के बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोप नंबर-1: अडानी ग्रुप की कंपनियों ने शेयरों की कीमत को मैनिपुलेट किया है और अकाउंटिंग फ्रॉड किया है। आरोप नंबर-2: अडानी ग्रुप ने विदेशों में कई कंपनियां बनाकर टैक्स बचाने का काम किया है। आरोप नंबर-3: मॉरिशस और कैरेबियाई द्वीपों जैसे टैक्स हैवन देशों में कई बेनामी कंपनियां हैं, जिनकी अडानी ग्रुप की कंपनियों में हिस्सेदारी है। आरोप नंबर-4: अडानी की लिस्टेड कंपनियों पर भारी कर्ज है, जिसने पूरे ग्रुप को एक अस्थिर वित्तीय स्थिति में डाल दिया है। आरोप नंबर-5: ऊंचे मूल्यांकन की वजह से कंपनी के शेयरों की कीमत 85 फीसदी तक ज्यादा बताई जा रही है।
इस रिपोर्ट का असर इतना ज्यादा पड़ा है कि सिर्फ दो दिन में ही अडानी ग्रुप को भारी नुकसान उठाना पड़ गया है। लेकिन सरकार क्या अडानी ग्रुप पर लगे आरोपों की जांच करेगी ? जो आरोप लगाए गए हैं वे बेहद गंभीर है। ऐसा सरकार नहीं कर पाई तो आने वाले समय में इसके गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं। संभव है कि आगामी चुनाव में यह एक मुद्दा बने और सरकार घिरती चली जाए।
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