अखिलेश अखिल
चीन ने श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाकर कही का नहीं छोड़ा। चीन की विस्तारवादी राजनीति का शिकार हुआ है श्रीलंका। जब गोटबाया वहां के राष्ट्रपति थे चीन से खूब कर्ज लिया। कहा गया कि इस कर्ज से देश का विकास होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जबतक श्रीलंका भारत के साथ खड़ा था उसकी हालत ठीक थी ,सुरक्षित भी था और विकास के पथ पर अग्रसर भी था ,लेकिन जैसे ही लालच में पड़कर वह चीन का सहभागी बना ,कही का नहीं रहा। आज श्रीलंका कही का नहीं है।
हालत इतनी ख़राब हो गई है कि श्रीलंका गरीबी के चक्रव्यूह में फंस गया है और इसका सबसे ज्यादा असर वहाँ के बच्चो और महिलाओं पर पड़ता दिख रहा है। बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं और बिन खाये स्कूल जाने को अभिशप्त हैं। वहाँ के स्कूलों में भी बच्चो को भोजन नहीं मिल मिल रहा है। बच्चो के लिए चलाये जा रहे सभी कल्याणकारी योजनाएं बंद है।
तंगहाली के चलते श्रीलंका की दर्दनाक स्थिति भी उजागर हो रही हैै। स्कूलों में बच्चों को खाना नहीं बंट पा रहा है। पैरेंट्स से स्कूल कह रहे हैं कि बच्चों को खाली पेट और लंच दिए बगैर स्कूल न भेजें। प्रार्थना में रोज 20-25 बच्चे बेहोश होते हैं। मिडडे मील के लिए हम दान पर आश्रित हैं। संस्था फूड फर्स्ट इंफॉर्मेशन एंड एक्शन नेटवर्क के अध्यक्ष एस विश्वलिंगम के अनुसार, श्रीलंका में इस वक्त 20% बच्चे बगैर नाश्ते के स्कूल पहुंच रहे हैं। इधर, पैरेंट्स के सामने भी संकट है।
बच्चो के साथ ही श्रीलंका में उन महिलाओं की भी स्थिति खराब है, जो गर्भवती हैं। कुछ एनजीओ का कहना है कि देश की 10% गर्भवती इस वक्त कुपोषण का शिकार हैं। उन्हें पौष्टिक खाना तो दूर दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल रही है।
श्रीलंका में रोगियों की हालत खराब है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को दवाएं नहीं मिल रही हैं। मुख्य कैंसर अस्पताल में दवाओं की खासी किल्लत है। सरकारी मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता वासन रत्नासिंगम ने कहा- ओपीडी में पैरासिटामोल, विटामिन सी और सलाइन जैसी बुनियादी दवाएं भी मुश्किल से मिल रही है।
चीन के कर्ज में डूबे श्रीलंका का संकट कम नहीं हो रहा है। महंगाई 57% पर चल रही है। आर्थिक तंगी के चलते खाने-पीने की चीजों के साथ ही फ्यूल और मेडिसिन की खासी किल्लत है। इसके चलते श्रीलंका सुरक्षा से समझौता करने को मजबूर हो गया है। वह मौजूदा दो लाख जवानों के बल को एक तिहाई घटाएगा। वह करीब 1.35 लाख जवान ही रखेगा। इतना ही नहीं, 2030 तक वह जवानों का आंकड़ा कम कर 1 लाख तक सीमित करेगा।
इस बीच, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के दौरे से श्रीलंका को बड़ी राहत मिली है। उनके कोलंबो पहुंचने से श्रीलंका को इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड से कर्ज मिलने का रास्ता साफ हो गया। दूसरी ओर, श्रीलंकाई सरकार के सूत्रों का कहना है कि जयशंकर के पहुंचते ही चीन दबाव में आ गया। उसने भी श्रीलंका को राहत देने की दिशा में कदम बढ़ाया है।