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कर्नाटक में येदियुरप्पा की वापसी की सम्भावना बढ़ी, चुनावी राज्यों में गुजरात मॉडल की तैयारी

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अखिलेश अखिल 
बीजेपी की कार्यकारिणी की बैठक आज समाप्त हो गई। सभी प्रदेशों के बड़े नेता और सीएम भी हाजिर रहे। संगठन की मजबूती और चुनाव जीतने की रणनीति पर खूब चर्चा हुई। बीजेपी में जिन नेताओं की खूब चलती है ,वे खूब बोले ,दमखम दिखाया और सुनने वाले सहमति के सिर हिलाते रहे। मुख्यमंत्रियों को अपने अपने राज्यों में पार्टी को मजबूत करने से लेकर संगठन की मजबूती का पाठ सिखाया गया और फिर इस साल होने वाले 9 राज्यों के चुनाव में जीत हाशिल करने की दुदुम्भी भी बजाई गई।

लेकिन इसके इतर भी कुछ राजनीति हुई ,रणनीतियां बनी। बैठक से पहले ही पीएम मोदी की मुलाकात कर्नाटक के पूर्व सीएम येदीयुरप्पा से हुई। करीब 20 की यह बातचीत सबसे ज्यादा चर्चित रही। पार्टी के बाहर भी और पार्टी के भीतर भी। हवा बनी की येदियुरप्पा की वापसी होगी। मौजूदा सीएम बोम्मई की विदाई होगी। सच क्या होने वाल है कौन जाने ! लेकिन कुछ तो होगा ही।
कर्नाटक में बीजेपी की परेशानी बढ़ी है। बोम्मई सरकार बदनाम हुई है और खुद सीएम पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं। कांग्रेस वालों ने तो पे सीएम कहना शुरू किया है। पोस्टर भी लगा दिए गए हैं। उधर पार्टी के भीतर भी टूट होने की सम्भावना है। कर्नाटक बीजेपी के लिए कभी महानायक बने रेड्डी बंधू अलग पार्टी बनाकर बीजेपी को चुनौती देने तैयारी में हैं तो राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का बड़ा असर भी कर्नाटक में पड़ा है।

बीजेपी की परेशानी वहाँ काफी बढ़ी हुई है। ऐसे में बीजेपी को लग रहा है कि मुस्तैदी से चुनाव नहीं लड़ा गया तो कर्नाटक बेहाथ हो सकता है।

75 साल से ज्यादा के हो गए येदियुरप्पा की वापसी होती है तो उनके लिए वरदान के सामान है लेकिन बीजेपी के लिए यह संकट का कारण भी हो सकता है। मोदी तय कर चुके हैं कि 75 साल के बाद किसी को पार्टी टिकट नहीं देगी। येदियुरप्पा के साथ यह सब होता है तो आगे चलकर पार्टी में विद्रोह भी हो सकता है। लेकिन अभी येदियुरप्पा की लौटने की सम्भावना ज्यादा प्रबल हो गई है। लेकिन मूल बात तो यही है कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं, पार्टी में येदियुरप्पा की अहमियत बढ़ रही है। वे पार्टी के संसदीय बोर्ड में भी हैं। लिंगायत समुदाय का सपोर्ट उनके साथ है। कर्नाटक में पार्टी फिर येदियुरप्पा को चेहरा बना सकती है। दूसरी ओर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई महाराष्ट्र के साथ सीमा विवाद से उलझ गए हैं। सूत्र बता रहे हैं कि उनकी विदाई हो सकती है।

कार्यकारिणी से जुडी दूसरी खबर भी चुनावी रणनीति से ही है। बताया गया कि गुजरात मॉडल को पनाकार की कर्नाटक के साथ ही सभी चुनावी राज्यों को फतह किया जा सकता है।

बैठक में गुजरात मॉडल की खूब चर्चा हुई। 2018 के चुनाव में गुजरात बीजेपी के हाथ से फिसलते-फिसलते बचा था। पार्टी को 182 में से 101 सीटें ही मिली थीं। 2022 में ऐसा न हो इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह, पीएम मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा केंद्रीय मंत्री लगातार राज्य में रैलियां करते रहे। चुनाव से 20 दिन पहले 150 से ज्यादा जनसभाएं हुईं। इनमें 35 से ज्यादा पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की थीं। इसी दौरान बिलकिस केस के दोषियों की रिहाई जैसे फैसले हुए। गुजरात में सब कुछ बदल गया। कांग्रेस चित हो गई और आप वालो ने कांग्रेस को और कमजोर कर बीजेपी को अमृत पान करा दिया। गुजरात मॉडल यही है कि एक साथ सब मिलाकर जनता के बीच जाओ और हाहाकार करो और सामने वाले को पस्त कर दो। राजनीति का यह नया तरीका बीजेपी का है। इस तरीके में चुनाव जीतने के तमाम तंत्र होते हैं भले ही देश की जनता कराहती ही क्यों न रहे।

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