न्यूज डेस्क
गंगोत्री, यमुनोत्री, बाबा केदारनाथ के बाद अब बैकुंठ धाम के कपाट भी खुलने वाले हैं। यह वो मंदिर है जहां बारहों महीने भगवान विष्णु विराजमान होते हैं। बद्रीनाथ को आठवें बैकुंठ धाम के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां 6 महीने विश्राम करते हैं और 6 महीने भक्तों को दर्शन देते हैं तो वहीं दूसरी मान्यता यह भी है कि साल के 6 महीने मनुष्य भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तो बाकी के 6 महीने यहां देवता भगवान विष्णु की पूजा करते हैं जिसमें मुख्य पुजारी खुद देवर्षि नारद होते हैं। जोशीमठ के नरसिंह मंदिर से शंकराचार्य की गद्दी बद्रीनाथ के लिए रवाना हो चुकी है। बद्रीविशाल के जयकारों के बीच बड़ी संख्या में श्रद्धालु धाम पहुंचे हैं। बद्रीनाथ मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। कल रविवार सुबह छह बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। गाड़ू घड़ा यात्रा उद्धव और कुबेर की डोली के साथ बदरीनाथ धाम पहुंच गई है।
ऐसे की जाती है भगवान बद्रीनाथ की पूजा
सबसे पहले यात्रा काल में भगवान बदरी विशाल को लगाए जाने वाले तेल को पीसने की प्रक्रिया शुरू हुई। प्रथा है कि भगवान बद्री विशाल को प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में 4 बजे स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद भगवान बद्री विशाल को तिल के तेल का लेप लगाया जाता है। भगवान के अभिषेक के लिए तिल का तेल शुद्ध माना जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग अखंड ज्याति में भी किया जाता है। इसलिए इस तेल को सिलबट्टे पर पीसा जाता है। ताकि इसमें किसी भी तरह की मिलावट ना हो। ऐसी परंपरा है कि यह तेल केवल विवाहित महिलाएं ही बनाती हैं। इस तेल को टिहरी राज दरबार की महारानी के सहयोग से पीसा जाता है। इसके बाद इसे एक कलश में रखा जाता है जिसे (गाडू घड़ा) कहा जाता है।
कल सुबह 6 बजे खुलेंगे बद्रीनाथ के कपाट
कल रविवार सुबह 6 बजे बद्रीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही इसे गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद इस तेल को प्रतिदिन भगवान बद्री विशाल को लगाया जाएगा।