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एससी के अंदर 22 जातियां, चार को मिलता रहा राजनीतिक प्रतिनिधित्व, 18 हासिये पर

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देश में समरस समाज स्थापित करने के उद्देश्य से बाबा भीमराव की अध्यक्षता में बने भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए न सिर्फ शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई, बल्कि लोक सभा और विधान सभा के चुनावों में भी आरक्षण की व्यवस्था की गई।लेकिन इस संविधान के लागू होने के 73 साल बीत जाने के बावजूद बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सोच के अनुसार भारत का समाज समरस नहीं हो सका।दरअसल संविधान प्रदत्त इस आरक्षण का लाभ उसका कुछ खास तबका और उसके खास परिवार ही बार – बार उठाते रहे और बाकी बचा तबका और परिवार सिर्फ अपने अधिकार को इस प्रकार लूटते देखने को अभिशप्त रहे।बिहार में हाल के जातीय गणना के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं।

आंकड़ों में छलकता है अनुसूचित जातियों में वंचितों का दर्द

बिहार में हाल के जातीय गणना के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी करीब 19.65 प्रतिसत है।इसमें करीब 22 जातियां शामिल हैं, लेकिन इन 22 जातियों में से केवल तीन जातियां ही राजनीतिक रूप से सशक्त दिखती हैं।इनका प्रतिनिधित्व हर स्तर के राजनीतिक मंच पर इस वर्ग की अन्य जातियों की अपेक्षा कहीं अधिक है।अनुसूचित जाति के अंतर्गत आने वाली इन दबंग जातियों में पासवान (दुसाध), मुसहर और रविदास शामिल हैं। इन तीनों की आबादी करीब 13.6 फीसदी है।वहीं अन्य 19 जातियों की आबादी करीब छह फीसदी है।ये जातियां राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में लगभग हाशिये पर हैं।

19 अनुसूचित जाति को नहीं मिला प्रतिनिधित्व

अनुसूचित जाति के लिए शिक्षा और नौकरी के साथ ही चुनाव में मिले आरक्षण के बावजूद इसके लाभ से इस वर्ग का जो बड़ा तबका वंचित है, उसमें बंटार,बौरी,भोगता,भुइया,चौपाल, चमार, (रविदासिया, मोची),दबगर,धोबी ,(रजक),डोम्बा  ( चांडाल सहित ),घसिया,हलालखोर( भंगी , वाल्मिकी ),हेला /मेहतर,कंजर,कुरारियार , ( कुरील सहित ),लाल बेगी,
मुसहर,नेट,पानो,पासी,रजुआर (रजवार) और तुरी शामिल है।

पिछली बार पासवान जाति के जीते थे चार उम्मीदवार

बिहार की राजनीति के हिसाब से देखा जाए तो बड़ा सच यह भी है कि बिहार के अनुसूचित जातियों में 4-5 जातियां ही प्रमुख रूप से राजनीति में सक्रिय रहती हैं ।ऐसे में ये पार्टियां भी इन्हीं जातियों के बीच से अपने-अपने प्रत्याशियों की तलाश करती हैं। बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों पर छह उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। इसमें से चार सीटों पर पासवान जाति के उम्मीदवार जीते थे। वहीं एक सीट पर मुसहर और एक अन्य सीट रविदास जाति के खाते में गयी थी।2014 के लोकसभा चुनाव में भी यही समीकरण था। इस चुनाव में भी चार सीटों पर पासवान जाति के उम्मीदवार ही जीते थे,जबकि एक सीट पर मुसहर और एक सीट पर रविदास जाति के उम्मीदवार को जीत मिली थी।

जातीय जनगणना के बावजूद कोई राजनीतिक दल इन्हें आगे लाने का नही कर रहा है प्रयास

बिहार में जातिगत गणना के बावजूद राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में हासिये पर खड़ी जातियों को कोई दल आगे लाने की कोशिश नहीं कर रहा है। अनुसूचित जातियों में इस इस बार भी उन्हीं तीन-चार जातियों को मौका दिया जा रहा है, जिन्हें पहले भी यह मौका मिलता रहा है।यहां तक की चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी ने भी अपनी पार्टी से खुद के अलावा ज्यादातर सीटों पर अनुसूचित जाति में दबंग माने जाने वाले पासवान को ही उम्मीदवार बनाया है।इनमें भी ज्यादातर कुछ खास परिवार से ही होते हैं।

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