रांची (बीरेंद्र कुमार): झारखंड के अधिवक्ता पिछले दो दिनों से लगातार अपने आपको न्यायिक कार्यों से अलग रख रहे हैं। अधिवत्ताओं का यह विरोध झारखंड सरकार से स्टांप शुल्क में किए गए वृद्धि को वापस करने जे लिए है।
शीत कालीन सत्र में की थी स्टांप शुल्क में वृद्धि
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने दिसंबर महीने में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में स्टांप शुल्क अधिनियम 2021 में संशोधन करते हुए कोर्ट के स्टांप के 6 से लेकर 10 प्रतिशत तक की वृद्धि की है। हेमंत सोरेन सरकार द्वारा कोर्ट के स्टांप शुल्क में इस भारी वृद्धि को लेकर राज्यभर के 33 हजार अधिवक्ता पिछले दो दिनों से अपने आप को न्यायिक कार्यों से अलग रख रहे हैं। अधिवक्ताओं का कहना है कि वे सरकार से कोर्ट के स्टांप शुल्क में किए गए इस वृद्धि को घटवाकर ही दम लेंगे।
शुल्क वृद्धि से लोगो के सार्वभौमिक न्याय पाने के अधिकार का होगा उल्लंघन
हमारे देश में लोगों को सार्वभौमिक न्याय पाने का सैद्धांतिक अधिकार है। लेकिन व्यवहार में देखें तो खर्चीली न्याय प्रक्रिया की वजह से कई बार लोग न्याय से वंचित रह जाते है और कई लोग उसका नाजायज फायदा उठा के जाते है। खासकर संथाल परगना जैसे गरीब इलाके में जहां पैसे के अभाव में गरीब रांची जाकर हाई कोर्ट में मुकदमा नहीं लड़ सकते है,इस बात को जानते हुए कई बार अमीर लोग जानबूझकर गरीबों की हकमारी कर लेते हैं। ऐसे में झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा कोर्ट स्टांप फी में की गई इस शुल्क वृद्धि से राज्य सरकार के खजाने तो जरूर भरेंगे लेकिन इससे अब कई गरीब लोग हाई शायर तो क्या पैसे के अभाव में अनुमंडल और जिला अदालतों में भी अपना मुकदमा बहु लड़ पाएंगे और अन्याय सहने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़ी भूमिका थी स्टांप शुल्क की
आराम से चल रहे युद्ध में अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य ग्रेट ब्रिटेन ने अपने उपनिवेश अमेरिका पर भी 1765 में स्टांप शुल्क लगाया था। अमेरिका में रह रहे ब्रिटानिया लोगों ने इसे अपना अपमान माना और उन्होंने कहा कि जब तक उनका प्रतिनिधित्व ब्रिटेन की संसद में नहीं होगा तब तक स्टांप शुल्क नहीं दिया जाएगा। स्टांप शुल्क को लेकर उनका विरोध धीरे-धीरे बढ़ता चला गया और फिर अंत में ब्रिटेन की संसद को 1766 में स्टांप शुल्क को वापस लेना पड़ा।