विकास कुमार
महाराष्ट्र में विदर्भ का इलाका विकास की दौड़ में सबसे पीछे छूट गया है। विदर्भ में अमरावती, अकोला, भंडारा, बुलढाणा, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, नागपुर, वर्धा, वाशिम और यवतमाल जिले आते हैं। नागपुर को छोड़कर विदर्भ के बाकी दस जिले काफी पिछड़े हुए हैं,इसलिए लंबे अरसे से विदर्भ को अलग राज्य बनाने का आंदोलन चल रहा है। विदर्भ के लोगों को ये महसूस होता है कि अगर उन्हें अलग राज्य मिलेगा तो उनका विकास होगा। उत्तराखंड,झारखंड और तेलंगाना जैसे राज्य बनने के बाद विदर्भ के लोग भी अपना एक अलग राज्य पाना चाहते हैं। 90 के बाद से विदर्भ में किसानों की आत्महत्या की वजह से भी अलग राज्य बनाने के मुद्दे ने जोर पकड़ा है। विदर्भ के गांवों की हालत और भी ख़राब है,हर जगह गरीबी नज़र आती है। क़र्ज़ों में डूबे यहां के किसान आज भी आत्महत्या कर रहे हैं। विदर्भ के लोगों की यह शिकायत है कि उनके साथ भेदभाव होता है। इसलिए प्रकाश पोहरे जैसे गंभीर पत्रकार भी विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग का समर्थन करने लगे हैं। प्रकाश पोहरे लगातार विदर्भ को अलग राज्य बनाने के आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं,वहीं दूसरे राज्य आंदोलनकारी भी विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे हैंं
विदर्भ के ग्यारह जिलों के साथ भेदभाव ही मुख्य कारण है विदर्भ के लिए अलग राज्य की मांग का। पिछले दिनों कराए गए एक ग़ैर-सरकारी जनमत संग्रह में 96 प्रतिशत लोगों ने विदर्भ को एक अलग राज्य बनाने का समर्थन किया है। तेलंगाना के जन्म के बाद अब विदर्भ के लोगों में भी उम्मीद बंधी है कि विदर्भ भारत का तीसवां राज्य बन सकता है। समय-समय पर इसके पक्ष में सड़कों पर भी आवाज़ें सुनाई देती हैं।
अलग विदर्भ राज्य की मांग पहली बार एक सौ साल पहले उठी थी। मध्य प्रांत विधानमंडल ने 1 अक्टूबर 1938 को नागपुर में एक अलग राज्य ‘महाविदर्भ’ बनाने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था। इसलिए कुछ लोग एक अक्टूबर को ‘विदर्भ दिवस’ के रूप में मनाते हैं। 1953 का नागपुर समझौता प्रस्तावित मराठी राज्य के सभी क्षेत्रों के समान विकास का आश्वासन देता है,लेकिन अब तक विदर्भ के लोगों को उसका हक नहीं मिला है। बीजेपी ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह विदर्भ राज्य बनाएगी। आज जब केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी की ही सत्ता है,इसलिए बीजेपी की सरकार को विदर्भ राज्य बनाने की पहल करनी चाहिए।