अखिलेश अखिल
मध्यप्रदेश में बज रही चुनावी दुदुम्भी के बीच अचानक एक बड़ी खबर सामने आयी है। इस सूबे कभी बसपा कुछ ताकत रखती थी। उसके कई विधायक चुनाव जीतते थे लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। बसपा के साथ जितने नेता जुटे सबने पार्टी को धोखा दिया। जो जीते वे भी दूसरी पार्टी के साथ चले गए। बसपा वही की वही खड़ी रही। आज की हालत तो यही है कि पार्टी तो है लेकिन उसके पास कोई नेता नहीं है और नहीं कोई जनाधार। दूसरी तरफ गोंडवाना समाज में धमक रखने वाली पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की तूती बोलती थी। उसके नेता के सामने कोई टिक नहीं पाता था। चुनावी खेल में वह जीत भी हासिल करती थी और सामने वाले का पानी भी उतार देती थी लेकिन नेता गए तो पार्टी जनाधार हीन हो गई। इस पार्टी की भी यही सच्चाई है कि इसके पास भी पोस्टर ,बैनर तो है लेकिन न नेता है और न ही जनता। जन आधारहीन कह सकते हैं।
लेकिन अब बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मिलान हुआ है। दोनों के बीच गठबंधन। मिलकर एमपी का चुनाव लड़ेंगे। दोनों पार्टी के नेता कह रहे हैं कि इस बार के चुनाव में बड़े परिणाम सामने आ सकते हैं। प्रदेश में लगातार जनाधार खो रहे दोनों राजनीतिक संगठनों ने राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दोनों पार्टियों के बीच बनी सहमति के अनुसार, गठबंधन सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगा- बीएसपी 178 सीटों पर और जीजीपी 52 सीटों पर।
बड़े पैमाने पर गोंड जनजाति-प्रमुख जीजीपी, जो आदिवासी-बहुल महाकोशल क्षेत्र में धीरे-धीरे प्रासंगिकता खो रही है, और मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी, जिसकी उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगे क्षेत्रों में ताकत कम हो रही है, ने अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए हाथ मिलाया है। बता दें कि जीजीपी लंबे समय से आदिवासी बहुल महाकौशल क्षेत्र में एक ताकत रही है। वहीं विंध्य, ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड क्षेत्र वर्षों से बीएसपी के प्रभाव क्षेत्र रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों और चुनावों में दोनों पार्टियों का राज्य में प्रभाव कम हुआ है।
जीजीपी, जिसने पिछली बार 2003 के चुनावों के दौरान राज्य में अपनी अधिकतम तीन विधानसभा सीटें जीती थीं, 2008, 2013 और 2018 के चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई। वहीं, दूसरी ओर बीएसपी ने 2008 में सात सीटें, 2013 में चार सीटें और 2018 के चुनावों में सिर्फ दो सीटें जीतीं। बीएसपी के इन दो विधायकों में से भी भिंड विधायक संजीव कुशवाह ‘संजू’ जुलाई 2022 में राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले सत्तारूढ़ बीजेपी में शामिल हो गए।
मध्य प्रदेश में अपनी उपस्थिति फिर से बनाने के चरण में दिख रहे बीएसपी-जीजीपी गठबंधन का लक्ष्य एससी और एसटी वोट को मजबूत करना है, जो 82 एससी/एसटी आरक्षित सीटों पर महत्वपूर्ण है। एससी-एसटी वोट (जो मध्य प्रदेश में कुल वोटों का लगभग 38 प्रतिशत है) में गठबंधन द्वारा कोई भी सेंध राज्य में प्रमुख विपक्षी कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।हालांकि, तीन दशक पुरानी जीजीपी पिछले कुछ वर्षों में परित्याग और समझौतों से पीड़ित है। बीएसपी को अभी तक एक प्रमुख नेता नहीं मिला है जो राज्य में इसका मार्गदर्शन कर सके।