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जनता दल सेक्युलर के एनडीए में शामिल होने से क्या बीजेपी को लाभ होगा ?

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अखिलेश अखिल 

जनता दल सेक्युलर आज शुक्रवार को एनडीए में शामिल हो गई है। दिल्ली में आज जेडीएस के नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमार स्वामी ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नाडा और गृह मंत्री शाह से मिले और फिर बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने बताया की जेडीएस एनडीए में शामिल हो गई है। जानकार मान रहे हैं कि जेडीएस के इस कदम से इंडिया गठबंधन को झटका लगा है। कर्नाटक में जेडीएस पहले कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला चुकी है ऐसे में माना जा रहा था कि देर सवेर जेडीएस भी इंडिया गठबंधन में शामिल हो सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ लोग यह भी मान रहे हैं कि इस बात की संभावना अब जयदा बढ़ गई कि बीजेपी और जेडीएस मिलकर कर्नाटक में कोई खेला कर सकते हैं और ऑपरेशन कमल भी किया जा सकता है। बीजेपी के कई नेता कई बार इस तरह की बात भी कह चुके हैं।            
          जानकारी के मुताबिक़ कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता दल सेक्युलर  के नेता एचडी कुमारस्वामी ने शुक्रवार को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी  के राष्ट्रीय अध्यक्ष  नड्डा से मुलाकात की। यह मुलाकात गृहमंत्री के आवास पर हुई। सूत्रों के मुताबिक तीनों नेताओं ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए कर्नाटक में सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा की।
     अब सबसे बड़ी बात है कि क्या जेडीएस के साथ आने के बाद बीजेपी लोकसभा चुनाव में अधिकतम सीटें जीत पाएंगी। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 28 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी।  लेकिन कांग्रेस के यहां मजबूत होने से पार्टी को यहां बड़ा नुकसान होने की आशंका थी जिसे समाप्त करने के लिए भाजपा को मजबूत क्षेत्रीय दल के सहयोगी की आवश्यकता थी जो जेडीएस के रूप में पूरी हुई। कई जानकार यह भी मान रहे हैं कि अब कर्नाटक में कुछ नया खेल भी हो सकता है। या तो एनडीए के घटक दलों में टूट होगी या फिर कांग्रेस से कुछ नेता बाहर निकल सकते हैं। बीजेपी को हर हाल में कर्नाटक की जीत को दोहराने की चुनौती है क्योंकि कर्नाटक से  लोकसभा की सीटें बीजेपी को नहीं मिली तो दिल्ली की सत्ता दूर होती जाएगी। जेडीएस के आने के बाद बीजेपी कितना सफल होती है इसे देखने की जरूरत है।              
     बता दें कि इस बार इंडिया गठबंधन के आकार लेने से भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ी हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने जिन राज्यों में सबसे ज्यादा असर दिखाया था, उनमें कर्नाटक भी शामिल है। कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत हासिल की है। सरकार बनाने के साथ ही कांग्रेस ने राज्य में लोकप्रिय योजनाओं की झड़ी लगा दी है। ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में भी कर्नाटक में कांग्रेस का प्रदर्शन बरकरार रह सकता है। यदि  ऐसा हुआ तो पिछली बार 25 सीट जीतने वाली भाजपा के सामने कड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है।
                पीएम मोदी और अमित शाह के तेवर देखने के बाद एक बात स्पष्ट तौर पर समझ आ रही है कि वे 2024 के लोकसभा चुनाव में हर हाल में जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं। लेकिन उनकी इस राह में इंडिया गठबंधन चुनौतियां पेश करता दिखाई पड़ रहा है। इस गठबंधन के कारण बिहार-पश्चिम बंगाल के बाद जिन राज्यों में भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, उनमें कर्नाटक भी एक हो सकता है। यही कारण है कि भाजपा एक-एक कर अपना किला दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है।
                जेडीएस के साथ आने से भाजपा को उत्तर और दक्षिण कर्नाटक की पिछड़ी-दलित जातियों में सेंध लगाने में सफलता मिल सकती है। बंगलूरू कर्नाटक में भाजपा की पकड़ अभी भी मजबूत बनी हुई बताई जाती है, लेकिन अन्य इलाकों में पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है। इस कमजोरी को मजबूती में तब्दील करने के लिए पार्टी लगातार प्रयास कर रही थी।
                  भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसके लिंगायत वोटरों के बिखरने के रूप में सामने आई है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान लिंगायत मतदाताओं ने उससे मुंह मोड़ लिया जिससे पार्टी की करारी हार हुई। हार को सुनिश्चित करने में पार्टी की अपनी गलतियां भी कम जिम्मेदार नहीं रहीं। पार्टी ने अपने दिग्गज लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्य भूमिका से पीछे खींच लिया, लक्ष्मण सावदी और जगदीश शेट्टार को उनकी सीटों से टिकट देने से इनकार कर दिया गया।

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