अखिलेश अखिल
किसानो के नाम पर राजनीति आज से नहीं वर्षों से चली आ रही है। हर साल गरीबी ,भुखमरी। कर्जखोरी और बीमारी से परेशान हजारो किसावो की मौत हो जाती है। ये मौत कुछ बीमारियों की वजह से होती है तो अधिकतर मौत आत्महत्या की वजह से होती है। इस हर एक मौत की जानकारी सरकार के लोगों के पास होती है लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकलता है।
सीधा सा सवाल है कि इस देश के किसान ही आखिर आत्महत्या क्यों नहीं करते ? बड़ा सवाल है कि इस देश के बहुत से नेता और अधिकतर सांसद -विधायक जो खुद की किसान बताने से नहीं चूकते उनकी मौत आत्महत्या से क्यों नहीं होती ?उनके बच्चों की मौत आत्महत्या से क्यों नहीं होती ?आखिर ये मुर्ख टाइप ले लोग एक चुनाव जीतकर हमारे आका बन जाते हैं और फिर सारा तंत्र उनके आगे पीछे ही नाचता दिखता है। ऐसे में इस लोकतंत्र पर भी सवाल उठा है। लेकिन अभी किसानो पर बात करने की जरूरत है।
खबर आयी कि इसी साल अभी तक महाराष्ट्र में 685 किसानो ने आत्महत्या कर ली है। फिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? क्या मरने वाला वह किसान जिम्मेदार है या फिर यह सरकार और सरकारी तंत्र /यह देश के भीतर पल रहे सूदखोर और महाजनी प्रथा ? इसका जवाब आज तक न तो केंद्र सरकार के पास है और ना ही राज्य सरकार के पास ही। किसानो की किस्मत में यही कि हर साल वह किसी पार्टी के फेवर में कभी सनातन के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर तो कभी किसी नेता की कथित उपलब्धि के नाम पर वोट डालता रहे। चुनाव से पहले बड़े -बड़े वादे और नकदी बांटकर नेता लोग चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन किसान वहीँ खड़ा सब कुछ देखता ही रह जाता है। महाराष्ष्ट्र के किसानो की हालत काफी गंभीर है।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। खराब फसल, कर्ज चुकाने का दबाव और खराब माली हालत के चलते यहां साल 2023 में ही 685 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि यह आंकड़ा 31 अगस्त तक का ही है, जिससे अधिकारियों और सरकार की चिंता बढ़ गई है।
एक आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, मौतों का सबसे ज्यादा आंकड़ा बीड जिले से है, जहां अब तक 186 किसान मौत को गले लगा चुके हैं। बीड महाराष्ट्र के मौजूदा कृषि मंत्री धनंजय मुंडे का गृह जिला है। मुंडे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अजित पवार गुट का हिस्सा हैं, जिसने हाल ही में शरद पवार के नेतृत्व को ठुकराते हुए सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होने का फैसला किया था। मुंडे को इसके दो हफ्ते बाद ही शिंदे सरकार में कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी मिल गई थी।
बता दें कि मध्य महाराष्ट्र का इस शुष्क क्षेत्र में आठ जिले- औरंगाबाद, जालना, बीड, परभनी, नांदेड, उस्मानाबाद, हिंगोली और लातूर हैं। यहां के डिवीजनल कमिश्नर के दफ्तर की रिपोर्ट के मुताबिक, एक जनवरी 2023 से 31 अगस्त 2023 के बीच मराठवाड़ा में 685 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इनमें से 294 ने अपनी जान मानसून के महीनों यानी जून से अगस्त के बीच दे दी।
महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र इस साल भी बारिश की कमी से जूझ रहा है। यहां इस मानसून सीजन में 20.7 फीसदी तक कम बारिश हुई है। क्षेत्र में 11 सितंबर तक 455.4 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो कि मानसून में होने वाली औसत 574.4 मिमी बारिश से काफी कम है।
मराठवाड़ा में सबसे ज्यादा किसानों ने बीड में जान दी। इसके अलावा 2023 में अब तक उस्मानाबाद में 113 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। तीसरा नंबर नांदेड का है, जहां 110 किसानों ने जान दी है। औरंगाबाद में 95, परभनी में 58, लातूर में 51, जालना में 50 और हिंगोली में 22 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
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