अखिलेश अखिल
सनातन पर बहस जारी है। लगता है सनातन को किसी ने लूट लिया। सनातन को ख़त्म हो गया। अब सनातन का क्या होगा ? जब सनातन ही नहीं तब जीवन कैसा ? जीने का मतलब कैसा ? जब धर्म ही नहीं तो जीवन में तरंग कैसा ? धर्म बचे तो जीवन बचे। धर्म हो तो संस्कार बचे। संस्कृति बचे। सामाजिक सरोकार बचे और देवी देवताओं के प्रति सद्भाव और आस्था बचे।
लेकिन भारत में तो सनातनी सब हैं। भारत तो सनातनी देश ही है। कोई आज से नहीं। लाखों वर्षों से हम सनातन अपनाये हुए हैं। यह तो हमारी जीवन शैली है। जीवन शैली कही किसी के विरोध से ख़त्म होती है क्या ? यह सब ठीक वैसा ही है जैसे इसी देश में किसी धर्म को नहीं मानने वाले लोग हैं। हमारे देश में लाखों लोग ऐसे हैं जो किसी भी धर्म को नहीं मानते। धर्म को वे पाखंड मानते हैं। लेकिन ऐसा उन नास्तिको का मानना है जो किसी भी धर्म को नहीं मानते। लेकिन जो हिन्दू हैं वे तो सनातनी है। चाहे वे किसी जाति से जुड़े हों। सवर्ण भी सनातनी हैं और आवरण भी। दलित भी और पछड़े भी। सबके अपने देवी देवता भी हैं। दक्षिण भारत में भी मंदिरों की श्रृंखला है। एक से बढ़ कर एक मंदिर। एक से बढ़कर एक देवता ! जो डीएमके वाले सनातन पर हमला कर रहे हैं वे भी सनातनी हैं। उनकी पूजा पद्धति भी है। उनके भी देवी देवता है। वे आस्था रखते हैं। चाहे उनकी आस्था जिसमे भी हो।
लेकिन दक्षिण से सनातन पर हमला हुआ। यह राजनीतिक हमला है। इसके अपने मायने हैं। उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक में ब्राह्मणववाद के खिलाफ बहुत पहले से आवाज उठती रही है। एक से बढ़कर एक समाज सुधारक ब्राह्मणवाद पर हमला करते रहे हैं। कहना नहीं चाहिए क्या बसपा प्रमुख मायावती ब्राह्णवाद और मनुवाद के खिलाफ नहीं रही है ? क्या पिछड़ों की राजनीति करने वाले नेता ब्राह्मणवाद पर हमला नहीं करते रहे हैं ?क्या आज भी देश के भीतर दक्षिण से उत्तर तक ब्राह्मणवाद पर हमले नहीं हुए हैं ? और हो रहे हैं ?तब तो कोई कुछ भी नहीं बोलता। अगर किसी नेता के बयान से सनातन खतरे में आ गया है तो ऐसे में सनातन धर्म की ही तौहीन की जा रही है। सनातन तो अजर अमर है। उसे भला कौन मिटा सकता है। लेकिन सनातन के नाम पर जो पाखंड है उसमे तो सुधार लाने की ही जरूरत है। धर्म को अगर विज्ञानं के साथ जोड़कर आगे बढ़ाया जाए तो सनातन से बढ़कर कुछ भी नहीं। लेकिन जब कोई भी धाम कट्टरता धारण कर लेता है। तर्कहीन होता है और धर्म के नाम पर पाखंड का बोलबाला होता है तो उसमे सुधार की जरूरत होती है। और इस तरह के सुधार हमेशा हमारे देश में होते भी रहे हैं। एक से बढ़कर एक धर्म और समाज सुधारक हमारे देश में हुए हैं।
खैर ,अब तो सनातन को लेकर राजनीति उबलने लगी है। यह राजनीति हालांकि पहले से ही चल रही थी लेकिन तमिलनाडु की यह आग अब पुरे देश में फ़ैल रही है। दक्षिण की यह राजनीति अब उत्तर भारत में हिलोरे मार रही है। बीजेपी अब इसका जवाब देगी और बीजेपी ने इसकी तैयारी भी कर ली है।
तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने जब सनातन पर विवादित बयान दिया तो उनको इस बात का अंदाजा जरूर रहा होगा कि इसका असर कितना व्यापक होने वाला है। अब उसी सनातन के विवादित बयान के आधार पर बीजेपी ने जब तमिलनाडु के रास्ते नॉर्थ इंडिया के राज्यों में ‘लॉन्ग डिस्टेंस सियासत’ की रणनीति बनाकर आगे बढ़ना शुरू किया है।योजना के मुताबिक, तमिलनाडु के मंत्री की सनातन पर की गई तल्ख टिप्पणी के बाद अब अयोध्या और बनारस के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी अपनी सियासत को मजबूत करने जा रही है। इसके लिए बाकायदा तमिलनाडु बीजेपी से लेकर केंद्रीय भाजपा नेतृत्व के पदाधिकारियों से विचार विमर्श भी किया गया है। इसमें तमिलनाडु के तीन प्रमुख शहरों से स्टालिन को काउंटर करने और वहां से सनातन की सियासत की बड़ी रणनीति बनाई जा रही है।
बीजेपी ने डीएमके के नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन पर दिए गए विवादित बयान के बाद राजनीतिक सरगर्मियों को आगे बढ़ा दिया है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक उदयनिधि ने भले ही तमिलनाडु में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए अपने बाबा एम करुणानिधि की सियासत का दांव चला है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु के विवादित बयान को उत्तर भारत में सियासी रूप से बहुत बड़ा बनाने की योजना बना डाली है।
योजना के मुताबिक बीजेपी अब सनातन के मुद्दे पर तमिलनाडु को सीधे अयोध्या और बनारस से जोड़ने जा रही है। भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि अयोध्या में अगले साल होने वाले राम मंदिर के शुभारंभ पर तमिलनाडु से आने वाले राम भक्तों की संख्या सबसे ज्यादा होने वाली है। वह कहते हैं कि अभी भी बनारस और अयोध्या में लगातार दक्षिण भारत के राज्यों में तमिलनाडु के लोगों की संख्या इन शहरों में सबसे ज्यादा हो रही है। रणनीति के मुताबिक तमिलनाडु में ज्यादा से ज्यादा लोगों को अयोध्या और बनारस में दर्शन के माध्यम से सनातन को मजबूत करने का सफल प्रयास करने की योजना बनाई गई है।
योजना के मुताबिक, रामलला के दर्शन करने के साथ काशी विश्वनाथ के दर्शन को आने वाली ट्रेनों और वहां से आने वाले भक्तों की संख्या को देखते हुए भाजपा की तमिलनाडु इकाई ने बड़ा अभियान शुरू किया है। तमिलनाडु के एक वरिष्ठ भाजपा नेता बताते हैं कि जनवरी में रामलला के दर्शन की शुरुआत वाले दिन के आसपास सिर्फ तमिलनाडु से ही पांच लाख लोगों के जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। तमिलनाडु बीजेपी के नेता बताते हैं कि यह संख्या वह दोगुनी करने की तैयारी में लगे हुए हैं।
तमिलनाडु में बीजेपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक राज्य के तीन प्रमुख शहरों से मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन वाले बयान का जवाब देने की बड़ी योजना बनी है। इसमें रामनाथपुरम (रामेश्वरम), मदुरै और कोयंबटूर शामिल किए गए हैं। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि वैसे तो बीते कुछ समय से तमिलनाडु के अलग अलग हिस्सों से न सिर्फ बनारस में आयोजित किए जाने वाले समागम बल्कि अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग जा चुके हैं। लेकिन रामेश्वरम, मदुरई और कोयंबटूर में जिस तरीके से उदयनिधि स्टालिन के बयान के बाद यहां के लोगों में नाराजगी है वह बताती है कि आने वाले दिनों में इन्हीं शहरों से तमिलनाडु की सियासत में बड़ी हुंकार भरी जानी है।
बीजेपी ने भी सनातन पर दिए गए बयान पर अपनी रणनीति में उन इलाकों को केंद्रित किया है जहां से ज्यादातर लोग अयोध्या और बनारस में लगातार जा रहे हैं। भाजपा की रणनीति के मुताबिक जनवरी में होने वाले अयोध्या राम मंदिर के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में इन इलाकों से लोगों को भेजे जाने की तैयारी भी चल रही है।

