Homeदेशआर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की बड़ी बातें

आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की बड़ी बातें

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बीरेंद्र कुमार झा

सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 पर आज याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने जोरदार दलीलें रखी। जम्मू कश्मीर से केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ 20 से ज्यादा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। वकीलों की दलीलों के बीच कई सारे सवाल पूछे गए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अध्यक्षता वाली बेंच पूरे दिन सुनवाई कर रही है।

एडवोकेट राकेश द्विवेदी

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि सिर्फ भारत संघ में शामिल होने से कश्मीर ने सारी आंतरिक संप्रभुता को नहीं दी ।

इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा की धारा 370 की ऐसी कौन सी विशेषताएं हैं जो दर्शाती हैं कि जम्मू कश्मीर संविधान बनने के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा?

भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पूछे गए सवाल को लेकर वरीय अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 370 के संबंध में 238 लागू नहीं होगा ,क्योंकि इसे बदला नहीं गया है और न ही इसे बदलने की शक्ति है ।

इस पर सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 5 कहता है कि राज्य की विधायी और कार्यकारी शक्तियां उन मामलों को छोड़कर सभी मामलों तक विस्तारित होंगी,जिनके संबंध में संसद के पास कानून बनाने की शक्ति है। यानि भारत के संविधान के प्रावधान। इससे पता चलता है कि भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है। जब तक हमें स्वीकार नहीं करते की धारा 370 2019 तक अस्तित्व में थी ,संसद के अधिकार क्षेत्र पर कोई रोक नहीं होगी। अगर हम आपकी दलीलें को मान भी लें तो संसद की शक्ति पर कोई रोक नहीं लगेगी।

वरिष्ठ वकील सीयू सिंह

याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कहा कि मेरा मानना है कि राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित करना, यदि किया जा सकता है, तो केवल अनुच्छेद 368 के तहत किया जा सकता है, क्योंकि स्पष्ट रूप से कम से कम 6 – 7 प्रावधानों का उल्लंघन करता है । इसलिए इसके लिए विशेष बहुमत और 50% से अधिक के समर्थन दोनों की आवश्यकता होगी ।लद्दाख और जम्मू कश्मीर दोनों के लिए जो किया गया है वह अनुच्छेद तीन के दायरे से बाहर है। भले ही वह सही तरीके से किया गया हो। यह अनुच्छेद 3 का दायरा नहीं है।

इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने पूछा कि क्या राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलना – क्या यह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से अलग हो सकता है?

इस पर इसके जवाब में वरिष्ठ वकील शिव सिंह ने कहा हां, दोनों अलग हैं। उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 1 में कहा गया है कि भारत राज्यों का एक संघ होगा। जब केंद्र शासित प्रदेशों का गठन हुआ तो इसे 7वें संशोधन द्वारा संशोधित किया गया। लेकिन अनुच्छेद 1 (1) और 1(2) में संशोधन नहीं किया गया।यूनियन टेरिटरी को अनुच्छेद 1(3) (बी) में जोड़ा गया था। इंडिया की मूल अवधारणा यानि भारत राज्यों का एक संघ होगा, कायम रखी गई। अनुच्छेद 2 को यथावत रखा गया।अनुच्छेद 3 में 18 में संशोधन तक संशोधन नहीं किया गया था, जब उन दो स्पष्टीकरणों को शामिल किया गया था।अब स्पष्टीकरण वह पूछ बन गए हैं जो कुत्ते को घसीट रहा है।अब कोई भी परम्यूटेशन और कांबिनेशन अनुच्छेद 3 के तहत संसद के लिए उपलब्ध है।

वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख

याचिकाकर्ताओं की तरफ से बोलते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि संप्रभुता लोगों में निहित है और वे अपनी संप्रभुता को एक विशेष तरीके से व्यक्त करते हैं। इस संप्रभुता को जम्मू कश्मीर संविधान में शामिल किया गया।जब लिखित संविधान होता है तो लिखित संविधान ही सर्वोच्च हो जाता है।

उन्होंने आगे कहा कि केंद्र ने अनुच्छेद 92 का सहारा क्यों लिया, केवल अनुच्छेद 356 पर ही भरोसा क्यों नहीं किया?इसका जवाब यह है कि क्योंकि उस घोषणा के बाद अगली तारीख पर वह एस 53(2 ) (बी) का सहारा लेकर विधानसभा को भंग कर देते हैं, जो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना नहीं किया जा सकता था। उन्होंने परोक्ष रूप से अनुच्छेद 370 को ही बदल दिया ।उन्होंने संविधान सभा की पूर्व अनुशंसा के बिना स्पष्टीकरण बदल दिया। संविधान सभा की सिफारिश को संसद की सिफारिश से बदल दिया गया। जो आप प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकते, वह अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं कर सकते हैं।

 

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