रोहतकः आपने वह डॉयलाग तो सुना होगा जिसमें हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, लेकिन हरियाणा में हारने वाले को सिकंदर कहा जाता है। आप ज्यादा कन्फ्यूज मत होइए, हम आपको पूरा मामला ठीक से समझा देते हैं, जिसे सुनकर आप भी जान जाएंगे कि हार कर जीतने वाले को बाजीगर क्यों कहते हैं।
हार कर जीतने वाले को क्यों कहते हैं बाजीगर ?
हरियाणा के रोहतक में लाखनमाजरा खंड के गांव चिड़ी में समर्थकों को अपने चहेते प्रत्याशी काला चेयरमैन की सरपंच चुनाव में हार बर्दाश्त नहीं हुई। फिर क्या था समर्थकों ने काला चेयरमैन की हार को जीत जैसे जश्न में तब्दील करने की ठानी और अपने चहेते उम्मीदवार को 2.11 करोड़ रुपये कैश और स्कॉर्पियो गाड़ी देकर सम्मानित किया। हारे हुए उम्मीदवीर का ये सम्मान पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है।
हार के बाद भाईचारे की पेश की भव्य मिसाल
चिड़ी गांव के लोगों ने अपने उम्मीदवार के लिए सारा रुपया इकट्ठा किया और फिर गांव में ही एक बड़ा समारोह रखा। जिसमें यही नहीं अब खाप पंचायत में भी हारे उम्मीदवार को बड़ा पद देने की तैयारी है। गांव वालों का कहना है कि उन्होंने गांव में भाईचारा कायम रखने के लिए ऐसा किया।
66 वोट की हार और स्वागत में पूरा गांव तैयार
रोहतक में पंचायती चुनाव दूसरे चरण में हुए। इस दौरान चिड़ी गांव से 2 उम्मीदवार नवीन कुमार और धर्मपाल उर्फ काला चेयरमैन ने चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए उतरे । चुनाव का जब रिजल्ट आया तो जीत का सेहरा नवीन के सिर सजा और वो सरपंच बन गए। वहीं धर्मपाल को 66 वोट से हार का सामना करना पड़ा।
2.11 करोड़ रुपये और स्कॉर्पियो की सौगात
काला चेयरमैन अपनी जीत सुनिश्चित मानकर चल रहे थे। हार पर उनके समर्थक मायूस हो गए। इसके बाद 20 से 22 समर्थक एक मकान में जमा हुए और काला चेयरमैन के हार के गम को जश्न में तब्दील करने की प्लानिंग करने लगे। हार को जश्न में तब्दील करने की प्लानिंग में लोग जुड़ते चले गए। 18 नवंबर तक समर्थकों ने 2.5 करोड़ रुपये का चंदा जमा कर कर लिया। उसमें से 22 लाख की स्कॉर्पियो गाड़ी खरीदी और 2 करोड़ 11 लाख रुपये सम्मान के तौर पर काला चेयरमैन को देने का फैसला किया गया।
भाईचारे का प्रतीक है सम्मान समारोह
काला चेयरमैन का कहना है कि हार-जीत मायने नहीं रखती, बल्कि लोगों के दिलों के अंदर सम्मान मायने रखता है। साल 2005 से 2010 तक काला चेयरमैन पंचायत समिति के चेयरमैन रहे। जबकि 2010 से 2015 तक उसकी चाची गांव की सरपंच रही। 2016 में गांव में सरपंच पद रिजर्व सीट घोषित हो गया। साल 2022 में उन्होंने खुद सरपंच का चुनाव लड़ा लेकिन हार मिली।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा के क्षेत्र का गांव है चिड़ी
अब काला चेयरमैन की हार के बावजूद पूरे इलाके में उनके भव्य स्वागत की चर्चा हो रही है। शायद ये पहला ऐसा कार्यक्रम होगा, जिसमें हारे हुए उम्मीदवार का इस तरह सम्मान मिला हो।