अखिलेश अखिल
बिहार में जातिगत जनगणना अब अंतिम पड़ाव पर है। सर्वे का काम अब लगभग पूरा हो चूका है और डाटा तैयार करने पर जोड़ है। इधर जातिगत जनगणना के विरोधी सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दे चुके हैं। विरोधी पक्ष का कहना है कि यह जनगणना केवल केंद्र सरकार का काम है और फिर इससे व्यक्तिगत आकड़े सामने आने से समाज में निजता का हनन होगा। सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई हुई। दोनों पक्षों के वकीलों ने खूब जिरह किया और अंत में अदालत ने कहा कि अगली सुनवाई 21 तारीख सोमवार को होगी। हालांकि सुनवाई के दौरान ही शीर्ष अदालत ने साफ़ तौर पर बिहार सरकार को जाति-आधारित सर्वेक्षण के नतीजे प्रकाशित करने से रोकने के लिए अंतरिम निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा, “जब तक प्रथम दृष्टया कोई मजबूत मामला न हो, हम किसी भी चीज़ पर रोक नहीं लगाएंगे।” याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन ने कहा कि सर्वेक्षण शुरू करने के लिए राज्य विधानमंडल द्वारा कोई कानून पारित नहीं किया गया था और प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा एक कार्यकारी अधिसूचना के आधार पर शुरू हुई। इस प्रकार गोपनीयता का उल्लंघन हुआ।उन्होंने तर्क दिया, “निजता के अधिकार का उल्लंघन वैध उद्देश्य के साथ निष्पक्ष और उचित कानून के अलावा नहीं किया जा सकता है। यह एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से नहीं किया जा सकता है।”
इस पर पीठ ने कहा, ”यह अर्ध-न्यायिक आदेश नहीं बल्कि एक प्रशासनिक आदेश है। कारण बताने की कोई जरूरत नहीं है।” इसमें आगे कहा गया है कि डेटा के प्रकाशन से व्यक्ति की गोपनीयता प्रभावित नहीं होगी क्योंकि व्यक्तियों का डेटा सामने नहीं आएगा, लेकिन संपूर्ण डेटा का संचयी ब्रेकअप या विश्लेषण प्रकाशित किया जाएगा।
शीर्ष अदालत समय की कमी के कारण दोनों पक्षों की ओर से बहस नहीं सुन सकी क्योंकि मामला बोर्ड के अंत में सूचीबद्ध था। इसने निर्देश दिया कि याचिकाओं का बैच सोमवार, 21 अगस्त को सुनवाई के लिए पोस्ट किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार सर्वेक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था, हालांकि यह तर्क दिया गया था कि राज्य सरकार द्वारा सर्वेक्षण प्रक्रिया के शेष भाग को तीन दिनों के भीतर पूरा करने के लिए 1 अगस्त को अधिसूचना जारी करने के बाद याचिकाएं निरर्थक हो जाएंगी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर विशेष अनुमति याचिकाओं में कहा गया है कि भारत में जनगणना करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है और राज्य सरकार को बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण के संचालन पर निर्णय लेने और अधिसूचित करने का कोई अधिकार नहीं है।
पटना उच्च न्यायालय ने 1 अगस्त को पारित अपने फैसले में कई याचिकाओं को खारिज करते हुए, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के सर्वेक्षण कराने के फैसले को हरी झंडी दे दी। हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार ने उसी दिन प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी।उच्च न्यायालय ने कई याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, “हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं, जिसे ‘न्याय के साथ विकास’ प्रदान करने के वैध उद्देश्य के साथ उचित क्षमता के साथ शुरू किया गया है।”
अब आगे का का खेल क्या होगा इसको लेकर राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ी हुई है। जातिगत जनगणना के समर्थकों का कहना है कि जब डाटा सामने आ जायेगा तब आबादी के मुताबिक आरक्षण की मांग की जाएगी। अगर दलित और पछड़ों की आबादी बढ़ती है तो उसके मुताबिक ही आरक्षण की बात होनी चाहिए। अभी तक पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता है जबकि दलितों को 16 फीसदी आरक्षण निर्धारित हैं। जाहिर है कि आबादी जिसकी जितनी होगी उसके मुताबिक आरक्षण की मांग होगी। बीजेपी और खासकर केंद्र सरकार इससे अभी बचना चाहती है। बीजेपी को पता है कि पिछड़ों की आबादी काफी अधिक है। कई लोग मान रहे हैं कि यहआबादी 50 फीसदी से भी ज्यादा हो सकती है और ऐसा हुआ तो देश के भीतर फिर से मंडल पार्ट 2 की राजनीति शुरू होगी और बीजेपी का धार्मिक खेल और हिंदुत्व की राजनीति प्रभावित होगी।
अभी तक बीजेपी जातियों से ऊपर हिंदुत्व को आगे रखकर राजनीति करती रही है। बीजेपी जातियों की बात भी करती है लेकिन वह कहती है कि साडी जातियां हिन्दू है और हिन्दू एक होकर देश का विकास करे। लेकिन बिहार जैसे धर्म से बड़ी जाति है। जाती के आधार पर ही वहां की राजनीति फलती फूलती है और जाती के आधार पर ही नेताओं की उत्पत्ति भी होती। आज भी जितने नेता है सब अपनी जाती की राजनीति ही करते हैं। ऐसे में जब जब ताइयों का आंकड़ा सामने आएगा तो देश की राजनीति बदल सकती है। फिर इसी तरह की जातीय जनगणना की मांग और भी राज्यों में उतनी शुरू होगी। कई राज्यों में तो इसकी मांग भी की जाने लगी है।
उधर केंद्र सरकार की दिक्कत ये है ये है कि अगर जातिगत जनगणना के आधार पर आरक्षण की मांग की जाती है और केंद्र सरकार ऐसा नहीं करती है तो वह कई जातियों के निशाने पर आ जाएगी। उसका हिंदुत्व का खेल बिखड़ सकता है। बीजेपी के लिए यह बड़ा संकट होगा। फिर अगड़ी समाज के लोग भी आरक्षण के खिलाफ जा सकते हैं और समाज में फिर से एक नया आंदोलन शुरू हो सकता है। अगले साल चुनाव है। ऐसे में बिहार की जातिगत जनगणना सत्ता पक्ष और प्रभावित करेगा यह निश्चित है। बीजेपी अभी से ही इसकी काट निकलने की तैयारी में है।

