विकास कुमार
देश में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कानूनों में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। अमित शाह ने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन के लिए तीन विधेयक पेश किए हैं। अमित शाह का कहना है कि इससे भारत से पुलिस राज खत्म हो जाएगा। शाह का कहना है कि इन संशोधनों के जरिए लोगों को दंड नहीं न्याय दिया जाएगा।
इन बदलावों के जरिए साल 2027 से पहले देश की सभी कोर्ट को कंप्यूटराइज किया जाएगा। अगर किसी भी शख्स को गिरफ्तार किया जाएगा तो उसके परिवार वालों को तुरंत जानकारी दी जाएगी। इसके लिए जिले में एक पुलिस अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। वहीं तीन साल तक की सजा वाली धाराओं का समरी ट्रायल होगा। इससे मामले की सुनवाई और फैसले में तेजी आएगी। नए बदलाव होने के बाद चार्ज फ्रेम होने के 30 दिन के भीतर जज को अपना फैसला देना होगा। वहीं सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अगर कोई मामला दर्ज है तो एक सौ 20 दिनों में केस चलाने की अनुमति देनी जरूरी है। संगठित अपराध के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। मृत्य की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है, लेकिन अब पूरी तरह बरी करना आसान नहीं होगा। वहीं राजद्रोह को पूरी तरह से खत्म किया जा रहा है,साथ ही अपराध के दोषियों की संपत्ति कुर्क करने का आदेश कोर्ट देगा, ना कि पुलिस अधिकारी। शाह का कहना है कि नए बदलाव से सबको तीन साल के अंदर न्याय मिलेगा।
एफआईआर से जजमेंट तक सभी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाएगी। जीरो एफआईआर कहीं से भी रजिस्टर किया जा सकता है। अगर किसी को भी गिरफ्तार किया जाता है तो उसके परिवार को तुरंत सूचित किया जाएगा। अब एक सौ 80 दिन में जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेजना होगा। गलत पहचान बताकर यौन संबंध बनाने वाले को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अब आईपीसी में पांच सौ 33 धाराएं बचेंगी, इसमें एक सौ तैंतीस नई धाराएं जोड़ी गई है। 9 धाराओं को बदला गया है और 9 धाराओं को हटा दिया गया है। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल, एसएमएस, लोकेशन साक्ष्य, ईमेल आदि सबकी कानूनी वैधता होगी। सर्च और जब्ती में वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। पुलिस को दोष सिद्ध करने के लिए यह सबूत जरूरी तौर पर कोर्ट में पेश करने होंगे।
गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि देश में न्याय में इतनी देरी होती है कि लोगों का कानून से विश्वास ही उठ गया है। उनका कहना है कि नए बदलावों से कोर्ट और पुलिस की कार्यशैली में भारी बदलाव आएगा। हालांकि इतना तो तय है कि नए बदलावों से पुलिस को जिम्मेदार बनाया जा सकेगा,लेकिन ऐसा किस हद तक हो पाएगा ये तो समय ही बताएगा।