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टीएमसी पर पीएम मोदी का तीखा हमला ,बदले में सीएम ममता ने दिया तीखा जवाब !

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अखिलेश अखिल 
अब राजनीति में मान -सम्मान की बात कहाँ ? न सत्ता पक्ष का दूसरे पार्टियों और नेताओं के लिए कोई मान सम्मान है और न ही विपक्षी दल और उसके नेता  के मन में प्रधानमंत्री समेत किसी मंत्री के लिए कोई आदर का भाव रह गया है। लेकिन आदर पाने का तकरार जरूर चलता है। अक्सर लोग कहते हैं कि व्यक्ति विशेष के प्रति भले ही आदर का भाव नहीं हो लेकिन पद के प्रति आदर भाव रखना चाहिए। लेकिन पद पर बैठा व्यक्ति ही उस पद के अनुकूल कोई काम न करे तो आप क्या कहेंगे ? पिछले काफी समय से यह देखा जा रहा है कि राजनीति अब दुश्मनी में बदल गई है। पहले ऐसा नहीं था। अब एक दल के लोग सामने वाले को दुश्मन मानते हैं। फिर वही भाव सामने वाले भी रखते हैं। जब लोकतंत्र में बहुदलीय व्यवस्था की गई है तो एक एक नेता महान और  चोर कैसे हो सकता है ? एक दल महान और दूसरा दल भ्रष्ट कैसे हो सकता है ? अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि राजनीति में निजी हमले होने लगे हैं ? जब सरए नेता यही कहते हैं कि वे देश की सेवा कर रहे हैं। देश में जो रहा है उसे जनता देख रही है तो सत्ता पक्ष जो कर रहा है वह भी देश रहा है और विपक्ष जो देख रहा है उसे भी देश देख रहा है।  
     सबके कुकर्म और सबके सुकर्म भी देश देख रहा होता है। सत्ता पक्ष हमेशा कहता है कि वही महान है।  ही सबसे अच्छी है। उसकी सरकार ही सबसे अच्छी है। ऐसे में यही बात तो कोई और दल और नेता भी कह सकता है। या कैसे हो सकता है कि आप ईमानदार हैं और सामने बेईमान ! सच तो यही है कि पूरी राजनीति ही बेईमान है और भ्रष्ट भी। किसी भी नेता का कोई भी सही आचरण नहीं है। झूठ पर टिकी राजनीति को सत्ता पक्ष भी आगे बढ़ाती है और यही काम विपक्ष वाले भी करते हैं। लेकिन यह जनता ही है सबका आंकलन करती है और  विवश होकर किसी को वोट भी दाल देती है। उसकी मज़बूरी है।    
अब जरा चुनावी बयानों पर नजर डालें। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने बंगाल में हुई हिंसा को लेकर टीएमसी की राजनीति  मुख्यमंत्री ममत बनर्जी को  खूब घेरा। तीखा हमला किया। कई ऐसे हमें भी किये जो उचित नहीं कहे जा सकते। संसद में  भी विपक्षी नेताओं ने कई ऐसे हमले पीएम पर किये जो नहीं होने चाहिए थे। लेकिन अब इससे परहेज कौन करता है ?खैर ममता पर किये गए हमले से ममता तैश में आ गई। तैश में तो संसद में प्रधानमंत्री भी आ गए थे। आये थे मणिपुर पर बोलने लेकिन भड़ास निकाल रहे थे विपक्षी दलों पर। कांग्रेस पर और राहुल पर। देश यह भी देख ही रहा था।  
  अब ममता बनर्जी ने प्रधानमत्री पर तीखा हमला किया है। ममता ने कहा कि प्रधानमंत्री को हिंसा और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर बोलने का “नैतिक अधिकार” नहीं है।बनर्जी ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे को संबोधित करना ऐसे समय में प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता जब वह खुद भ्रष्टाचार के घेरे में हों। उन्‍होंने कहा, “प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल रहे हैं लेकिन अपनी ही पार्टी के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में असमर्थ हैं। पीएम केयर फंड से लेकर राफेल डील तक हर जगह भ्रष्टाचार हुआ है। यहां तक कि देश में नोटबंदी और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण का प्रयास भी सवालों से परे नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री को आम लोगों को हल्के में नहीं लेना चाहिए और उन्हें मूर्ख नहीं समझना चाहिए।       
        उन्होंने कहा, ”नोटबंदी भाजपा के हितों की पूर्ति के लिए की गई थी। नोटबंदी के फैसले के पीछे कोई राष्ट्रीय हित शामिल नहीं था। यदि आप कहीं से शुरुआत करना चाहते हैं तो आपको अपनी पार्टी की सफाई से शुरुआत करनी चाहिए। आप अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं जो आम लोगों को आतंकित करने और महिलाओं को परेशान करने में शामिल हैं? आप मणिपुर हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं?”
    दरअसल ,प्रधानमंत्री  ने भाजपा के पूर्वी क्षेत्र पंचायती राज कार्यशाला को वर्चुअल माध्‍यम से संबोधित करने के दौरान ममता की सरकार पर बहुत कुछ कहा था। कई तरह के हमले किये थे। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान कांग्रेस पर ग्रामीण नागरिक निकाय चुनावों में “खून से खेलने” का आरोप लगाया।उन्‍होंने कहा, “पूरे देश ने तृणमूल कांग्रेस के खून के इस खेल को देखा है, जहां न केवल भाजपा समर्थक और नेता बल्कि आम मतदाता भी तृणमूल कांग्रेस द्वारा की गई हिंसा का शिकार बने।       
       बाद में जारी वीडियो में मुख्‍यमंत्री ने कहा, “प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हिंसा के बारे में बात की है। यह वास्तव में भाजपा की राज्य इकाई द्वारा योजनाबद्ध और प्रचारित किया गया था। ग्रामीण निकाय चुनावों के दौरान भाजपा समर्थित गुंडों ने लगभग 17 लोगों की हत्या कर दी। प्रधानमंत्री को ऐसी बातें कहने से पहले राजनीतिक शिष्टाचार सीखना चाहिए। उन्हें ऐसे समय में पश्चिम बंगाल में हिंसा के बारे में बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है जब वह मणिपुर में स्थिति को नियंत्रित करने में वह असमर्थ हैं।”
       

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