न्यूज़ डेस्क
अदालत तो समाज को राह दिखाती है और समाज में अच्छे और बुरे का फर्क कर फैसला देती है। लेकिन जब कोई अदालती मजिस्ट्रेट ही दंगों के बीच फंस जाए, अपनी आँखों से वह खुनी खेल देखे जिसकी कहानी उनकी अदालत में जाती। इस पर आप की राय चाहे जो भी हो लेकिन एक अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने जो कुछ भी हुआ उसे सुनकर भी रूहें काँप जाती है।
खबर ये है कि नूंह के एक अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उनकी तीन वर्षीय बेटी और कर्मचारी उस समय बाल-बाल बच गए, जब नूंह में एक धार्मिक जुलूस पर हमले के दौरान भीड़ ने उनकी कार पर हमला कर दिया और आग लगा दी।जज अपनी बेटी के साथ नूंह जिला अदालत के पास पुराने बस स्टैंड पर एक वर्कशॉप के अंदर छिप गईं। नूंह की एक स्थानीय अदालत में प्रोसेसर सर्वर टेक चंद की शिकायत पर मंगलवार को अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।सिटी नूंह पुलिस स्टेशन में एफआईआर से पता चला कि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) अंजलि जैन, उनकी बेटी और कर्मचारियों को सोमवार को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा, क्योंकि हमलावर उन पर पथराव और गोलीबारी कर रहे थे।
खबर के मुताबिक “दोपहर करीब 1 बजे, अंजलि जैन, उनकी बेटी, गनमैन सियाराम और टेक चंद एसीजेएम के नाम पर पंजीकृत वोक्स वैगन कार में कुछ दवाएं लेने के लिए एसकेएम मेडिकल कॉलेज, नलहर गए थे।
एफआईआर में कहा गया है, “दोपहर करीब 2 बजे, जब वे लौट रहे थे, तो पुराने बस स्टैंड के पास करीब 100-150 दंगाइयों ने उन पर हमला कर दिया।” जज, उनकी बेटी और स्टाफ को वकीलों ने बचाया। अगले दिन जब जज का एक स्टाफ सदस्य मौके पर लौटा, तो उसने देखा कि कार जलकर खाक हो गई है।
मजिस्ट्रेट ने अपनी आँखों से सब कुछ देखा। उन लोगों को भी देखा जो किसी की जान के प्यासे बने पत्थरबाजी कर रहे थे। कल्पना कीजिए अगर मजिस्ट्रेट का पूरा अमला दंगा के चपेट में आ जाता तो क्या होता ?

